anil srivastava

सूचना विभाग के लिपिक अनिल पर दुराचरण का आरोप

खुद बनता है जिला सूचना अधिकारी
सूचना भेजने व पास बनाने में माँगता है घूस
अनिवार्य प्रश्न के कार्यकारी संपादक और संवाददाता से की बदसलूकी
किया जाति सूचक टिप्पणी व अभद्र भाषा का प्रयोग

अनिवार्य प्रश्न। विशेष संवाददाता


वाराणसी। जिला सूचना विभाग के क्लर्क अनिल श्रीवास्तव की लापरवाही और मनमानी अक्सर सामने आती तो रहती ही है पर हाल ही में एक बड़ा प्रकरण घटित हुआ है। वाराणसी जिला सूचनाधिकारी कार्यालय का लिपिक अनिल श्रीवास्तव इस बात को निर्धारित करता है कि प्रशासनिक क्रिया व योजना की किस समाचार पत्र को सूचना दी जाए या न दी जाए। नियम कानून को ताक पर रख मनमाने ढ़ंग से समाचार पत्रों की हैसियत तक तय कर रहा है।

इतना ही नहीं जनपद के विकास के लिए आने वाली योजनाओं और आला अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियों की सूचना देने से साफ इनकार भी कर रहा है। दुर्भाग्य इस बात की है कि सूचना विभाग के अधिकारी इसकी बे-अदबी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। इस संदर्भ में जिला सूचना अधिकारी का कहना है कि हम बड़े समाचार पत्रों से सरोकार रखते हैं शहर में बहुत सारे फर्जी पत्रकार ऐसे घूमते रहते हंै जो खुद को बड़े अखबार का बताते हैं। लिपिक अनिल की बदसलूकी की बात जब उनसे कही गयी तो वह उसके समर्थन में कसीदे पढ़ने लगे।

अनिवार्य प्रश्न समाचार पत्र की ओर से जिला प्रशासन द्वारा आयोजित होने वाली विकास योजनाओं समेत तमाम जानकारियां जो अन्य अखबारों को ई-मेल और ह्वाट्सऐप द्वारा भेजी जाती हैं की प्राप्ति के लिए कई बार अनुरोध पत्र भेजा गया और पत्र नियुक्त संवाददाता भी लिपिक अनिल से मिलकर सूचना के आदान प्रदान के लिए अनुरोध किए। हमारे संवाददाता रविन्द्र प्रजापति के अनुसार उसने पहले तो महीनों तक दौड़ाया फिर दो हजार का खर्चा-बर्चा बताने लगा। अख़बार समूह ने जब बिना रिसिविंग के पैसा न देने की बात कही तब वह कहने लगा कि साप्ताहिक और मासिक समाचार पत्रों को समाचार पत्र नहीं मानता है।

संवाददाताओं के कई बार अनिल से मिलने के बाद बीते दिनों उसने एक संवाददाता से बदसलूकी की और उसने स्पष्ट कह दिया का तुम्हारे समाचार पत्र को मैं सूचना नहीं भेजूँगा जो करना हो कर लो। पैसा नहीं मिलेगा तो सूचना नहीं मिलेगी। फोकट में तो पानी नहीं मिलता। तुम चमार हो क्या? तुम्हें किस भाषा में समझाएँ हिन्दी में, संस्कृत में या उर्दू में?

इस मामले में अनिवार्य प्रश्न के कार्यकारी संपादक ने जब अनिल से बात की तो उसने पहले ई-मेल में गड़बड़ी होने की बात कही फिर बताया कि आपके समाचार पत्र को सूचना नहीं भेजी जा सकती है, और आगे भी नहीं भेजी जाएगी। इस बारे में जब और जानकारी मांगी गयी तो उसने फोन काट दिया। दोबारा फोन मिलाने के बाद उसने बात करने का लहजा बदल लिया और गलियाई शब्दों में सूचना देने से इनकार कर दिया और अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया।

इसी के दुव्र्यवहार की शिकायत कई पत्रकारों ने दबी जबान में की है। उनका कहना है कि वीआईपी कार्यक्रमों के दौरान पास बनाने में भी अनिल भेदभाव करता है। कम ज्यादा सभी पत्रकार व छायाकार अनिल से पीड़ित हैं।  सूचना विभाग को अपनी जेब में समझने वाला लिपिक अनिल लगभग आठ वर्षों से वाराणसी में जमा हुआ है। वह दबंगई और मनमानी करता है एवं हर बार अपना तबादला रोक लेता है।

कार्यकारी संपादक ने प्रबंधन एवं विधिक सलाहकार से बात की है तथा अनिल के खिलाफ शिकायत व वाद की कार्यवाई की जा रही है। सत्य का संघर्ष न्याय तक चलेगा। 


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