ढोंगी तीर्थ पुरोहितों से मुक्ति के लिए चीखते तीर्थ स्थल : छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’
आलेख।
पूरे भारत में कुछ एक तीर्थ स्थानों को छोड़कर लगभग सभी प्रदेशों के सभी तीर्थ स्थानों पर 80 प्रतिशत तीर्थ पुरोहितों या कहें कथित पंडितों द्वारा जो मायाजाल फैलाया गया है उसके धर्म और आस्था पर पड़ने वाले व्यापक दुष्प्रभाव पर प्रकाश डाल रहे हैं वरिष्ठ लेखक छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’
मैं सनातन धर्म का हूँ और मैं किसी भी धर्म व धर्म के अनुयाई का अपमान न करता हूँ न करना चाहता हूँ। इस लेख को लिखने के पीछे सिर्फ इतनी मंशा रही है कि तीर्थों की जो यथास्थिति है उसे सभी नागरिकों द्वारा और सत्ता द्वारा समझा जाये।
देश भर के लगभग सभी तीर्थ स्थानों पर हर दिन पुजारियों और प्रसाद विक्रेताओं के साथ दर्शनार्थियों से धक्का मुक्की तथा शोषण की घटना आम बात हो गई है। वहाँ के पुलिस रिकार्ड से परे यह एक अगल सच है जो विभिन्न तीर्थों में जाने के बाद देखने को मिलता है। पूरे भारत में कुछ एक तीर्थ स्थानों को छोड़कर लगभग सभी प्रदेशों के सभी तीर्थ स्थानों पर 80 प्रतिशत तीर्थ पुरोहितों या कहें कथित पंडितों द्वारा जो मायाजाल फैलाया गया है, वह बड़ी लज्जाजनक है। 80 प्रतिशत दर्शनार्थियों को किसी भी तीर्थ में जाकर भगवान के दर्शन का जो सुख-आनंद मिलता है उसका संपूर्ण क्षरण इन तीर्थ पुरोहितों के आचरण से हो जाता है। वर्तमान समय में सरकारों द्वारा बहुत सुधार के बाद तीर्थों से दूर के लोग भले ही आकर्षित होकर आ जायें लेकिन काशी जैसे धर्म स्थान के रहने वाले आम लोग भी खूब जानते हैं कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन में अनेक कथित ढोंगी तीर्थ पुरोहित ठेका लेते हैं। आप 5000 दे दीजिए उच्च कोटि का और खाली दर्शन मिल जाएगा। यहाँ सरकार भी अधिनियम बनाकर आरती तक को बेचती है। ऐसे ही मिर्जापुर में विश्वविख्यात देवी माँ विंध्यवासिनी और कालिखोह के दर्शनों में भी कथित ढोंगी तीर्थपुरोहितों का दुर्व्यबहार तथा तांडव देखने को मिलता है।
सनातन संस्कृति में पूजा और उसके किए गए पाठ के अपने बृहद सांसारिक फायदे हैं। यही नहीं इस माध्यम से आध्यात्मिक उन्नयन के लिए भी परंपरा व कर्मकांड का उचित विधान बताया गया है लेकिन वर्तमान समय में पुरोहितों के वेश में निकृष्ठों ने अपने कार्यों से धर्मिक आस्था को नुकसान पहुँचाया है।
कई तीर्थ स्थानों पर न जाने कौन-कौन लोग जो कर्मकाण्ड, विप्रकर्म तथा उसकी महत्ता को जानते भी नहीं तीर्थ पुरोहित बनकर बैठे हुए हैं। न उन्हें ब्राह्मण धर्म पता है, ना उन्हें ब्राह्मणत्व पता है और ना ही उन्हें ब्राह्मण शब्द का अर्थ पता है। अब आप समझ सकते हैं कि जिसे नाचना ना आए और वह नाचने लगे तो नृत्य का कितना मान रखेगा और कितना निर्वाह करेगा।
अतीत में सनातन धर्म के अनुयायिओं में धर्म व उसकी संस्कृति के प्रति लम्बे समय से बंधी आस्था में जो व्यापक गिरावट देखी गयी थी वह ऐसे तीर्थ व कथित ढोंगी पुरोहितों के आचरण के कारण ही थी अन्यथा भारत विद्वानों की धरती रही है।
मनीषीजन लोक रीतियों, पूजा-पाठ विधियों, तीर्थ स्थानों, वंदना प्रणालियों, यज्ञकारक जड़ी-बूटियों, खाद्य-पदार्थों में निर्देशित औषधियों के माध्यम से जीवन को उच्च कोटि की शैली से जोड़ गये हैं। यह अतीत के पुरोहित विद्वानों व समाज पंडितों द्वारा ही संभव कराया गया। जिसको भविष्यकाल तक चलाते रहने का जिम्मा तीर्थोें पर था। तीर्थ पुरोहित और वहाँ के पण्ठितजन उसके प्रचारक थे।
लेकिन अब देशभर के विभिन्न तीर्थों पर बैठे हुए रोजगार के मायाजाल को फैलाए हुए ढोंगी तीर्थ पुरोहित जैसा आचरण कर रहे हैं उससे आम जनमानस का धर्म व उसकी मान्यताओं से विश्वास उठ रहा है। इससे अधिक दुख की बात है कि किसी भी सरकार ने इस विषय पर गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया। लेकिन इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो जीवन से जुड़ी उच्च कोटि की संस्कृति के प्रति आम आदमी का विश्वास टूट जाएगा। जैसा कि अभी धीरे-धीरे सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। आदरणीय पुरोहित का चोला पहनकर अपनी अय्याशी के लिए धर्म को माध्यम बनाने वालों पर कठोर प्रतिबंध लगना चाहिए।
वर्तमान सरकार में तीर्थ स्थानों का उद्धार किया तो गया है लेकिन तीर्थ स्थानों पर व्यापार, दलालीबाजों, प्रसाद की दुकान लगाकर धर्म की भावना को तार-तार करने वाले डपोर-संखियों को अभी भी आजादी मिली हुई है। सरकारों को तीर्थ स्थानों के जिर्णोद्वार अभियान से पहले इन स्थानों में मानवता बचाने के लिए यहाँ कायम सिंडीकेट को तोड़ना चाहिये। वर्तमान समय में सभी वर्गों के अपने संगठन सक्रिय हैं। ढोंगी तीर्थ पुरोहितों के भी। इसलिये ऐसा करना थोड़ा कठिन है लेकिन असम्भव नहीं। ऐसे में सत्ता को न्यायप्रिय होकर थोड़ा साहस करना होगा। तीर्थस्थल चीख कर मांग कर रहे हैं कि ऐसे जालसाजों से हमें मुक्ति का इंतजार है, और उस नायक का इंतजार है जो देशभर के सभी धर्मिक स्थलों से ढकोसलेबाजों को बेदखल कर देगा।
लेखक छतिश छिवेदी ‘कुंठित’ स्याही प्रकाशन के प्रकाशक भी हैं।