Community Radio completes 20 years

सामुदायिक रेडियो के 20 साल पूरे हुए


अनिवार्य प्रश्न। संवाद।


दिल्ली। सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत में सामुदायिक रेडियो के 20 साल पूरे होने पर उत्सव मनाते हुए 13 और 14 फरवरी 2024 को चेन्नई के अन्ना विश्वविद्यालय में एक क्षेत्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन (दक्षिण) का आयोजन कर रहा है। इस कार्यक्रम में दक्षिणी राज्यों/केन्द्र-शासित प्रदेशों के सभी 117 सामुदायिक रेडियो स्टेशन भाग लेंगे। सूचना और प्रसारण मंत्री द्वारा इस क्षेत्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन के दौरान सामुदायिक रेडियो क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से इस क्षेत्र के लिए कुछ नीतिगत बदलावों की घोषणा किए जाने की भी उम्मीद है। भारत में सामुदायिक रेडियो की यात्रा वर्ष 2002 में उस समय शुरू हुई, जब भारत सरकार ने आईआईटी/आईआईएम सहित विभिन्न प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों को सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की स्थापना के लिए लाइसेंस देने की नीति को मंजूरी दी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि सामुदायिक रेडियो समुदाय की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है, सरकार ने नागरिक समाज और स्वैच्छिक संगठनों आदि जैसे गैर-लाभकारी संगठनों को इसके दायरे में लाकर इस नीति को व्यापक बनाने का निर्णय लिया ताकि विकास एवं सामाजिक परिवर्तन से संबंधित मुद्दों पर नागरिक समाज की अधिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके। परिणामस्वरूप, पहले सामुदायिक रेडियो स्टेशन का उद्घाटन भारत रत्न लालकृष्ण आडवाणी जी द्वारा 1 फरवरी 2004 को किया गया। यह यात्रा धीमी गति से शुरू हुई और बाद में इसे गति उस समय मिली जब अन्य समुदाय-आधारित संगठनों को भी सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने की अनुमति दी गई। क्षेत्रीय सम्मेलन का उद्घाटन 13 फरवरी को किया जा रहा है, जो “विश्व रेडियो दिवस” ​​​​का प्रतीक है। सामुदायिक रेडियो, रेडियो प्रसारण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तीसरा स्तर है जो सार्वजनिक सेवा रेडियो प्रसारण और वाणिज्यिक रेडियो से अलग है। सामुदायिक रेडियो स्टेशन (सीआरएस) कम शक्ति वाले रेडियो स्टेशन हैं, जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा स्थापित और संचालित किया जाता है। सामुदायिक रेडियो स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कृषि आदि से संबंधित मुद्दों पर स्थानीय समुदाय के बीच स्थानीय आवाजों को प्रसारित करने का एक मंच प्रदान करता है। यही नहीं, सामुदायिक रेडियो समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए अपनी चिंताओं को अभिव्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम भी है। इसके अलावा, इसमें प्रसारण स्थानीय भाषाओं और बोलियों में होने के कारण लोग इससे तुरंत जुड़ जाते हैं। सामुदायिक रेडियो में अपने समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी को मजबूत करने की भी क्षमता है। भारत जैसे देश में, जहां हर राज्य की अपनी भाषा और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है, सीआरएस स्थानीय लोक संगीत और सांस्कृतिक विरासत के भंडार भी हैं। कई सीआरएस भावी पीढ़ी के लिए स्थानीय गीतों को रिकॉर्ड व संरक्षित करते हैं और स्थानीय कलाकारों को समुदाय के सामने अपनी प्रतिभा दिखाने का एक मंच प्रदान करते हैं। सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में सीआरएस की अनूठी स्थिति इसे सामुदायिक सशक्तिकरण का एक आदर्श उपकरण बनाती है।