स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किये गये एक करोड़ से अधिक फेस मास्क


अनिवार्य प्रश्न। संवाद


असम, महाराष्ट्र से काश्मीर तक बन रहे  फेस मास्क


दिल्ली। देश भर में विभिन्न स्वयं सहायता समूहों द्वारा एक करोड़ से अधिक फेस मास्क बना लिये गये हैं। यह कार्य आवास और शहरी कार्य मंत्रालय की डीएवाई-एनयूएलएम फ्लैगशिप योजना के तहत कोविड -19 से लड़ने के लिए स्वयं सहायता समूहों के अथक प्रयास, सकारात्मक ऊर्जा और एकजुट संकल्प को दर्शाता है।

इस गौरवशाली क्षण के केंद्र में मिशन द्वारा समर्थित महिला उद्यमियों का एक मजबूत संगठन है। इन महिला उद्यमियों की प्रतिबद्धता दूसरों को अधिक ऊर्जा और दृढ़ संकल्प के साथ अपने प्रयासों को तेज करने के लिए प्रेरित कर रहा है। यही सही मायने में जीवन को सुरक्षित रखने वाली महिला सशक्तिकरण है।

स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं व उनके करार्यों के कुछ उदाहरणः

समृद्धि एरिया लेवल फेडरेशन (एएलएफ) की अध्यक्ष शुभांगी चंद्रकांत धायगुडे के चेहरे पर एक अलग किस्म की मुस्कान है, जो संतुष्टि और गर्व का प्रतीक है। वह फोन के माध्यम से आर्डर एकत्र करती है और महाराष्ट्र के टिटवाला स्थित अपने घर पर मास्क की सिलाई करती है। वह कहती हैं कि उन्होंने 50,000 मास्क बनाये हैं और मास्क बनाने में इस काम में उनके साथ 45 और महिलाएं शामिल रही हैं।

राजस्थान के कोटा में सावरनी स्वयं सहायता समूह की सदस्य मीनू झा का कहना है कि उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि उनका यह छोटा सा कदम दूसरों के लिए इतना प्रेरणादायक हो सकता है। सुश्री झा की ये पंक्तियाँ इस तथ्य को दोहराती हैं कि लॉकडाउन के दौरान भी हम सभी में इस लड़ाई में योगदान देने की अद्वितीय क्षमता है।

गमोचा, जोकि असम का पारंपरिक कपड़ा और सम्मान का प्रतीक है, आज स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं स्वच्छता का प्रतीक बन गया है। नौगांव के रुनझुन स्वयं सहायता समूह की सदस्य रश्मि, इस पारंपरिक कपड़े का उपयोग करके मास्क तैयार करने में व्यस्त हैं। वहीं जम्मू एवं कश्मीर के कठुआ में प्रयास स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुश्री उपदेश अंदोत्रा ​​तिरंगा मास्क बनाते हुए गर्व महसूस करती हैं।

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