5,231 रेल के डिब्बे बने कोविड केयर सेंटर
अनिवार्य प्रश्न । संवाद
नई दिल्ली। कोविड-19से निपटने की क्षमता बढ़ाने के लिए, भारतीय रेल ने अपनी रेलगाडि़यों के 5231 गैर-वातानुकूलित डिब्बों को कोविड केयर सेंटर में परिवर्तित कर दिया है। इन डिब्बों का इस्तेमाल कोविड के संदिग्ध और पुष्ट मामलों के प्रबंधन के लिए श्स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप किया जाएगा।
ये सुविधाएं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा नीति आयोग द्वारा विकसित एकीकृत कोविड योजना का हिस्सा हैं और आमतौर पर इनका उपयोग तब किया जाता है जब राज्यों की ओर से दी जाने वाली सुविधाएं अपर्याप्त हो जाती हैं।
योजना के तहत यह भी तय किया गया कि इन डिब्बों में प्राकृतिक रूप से हवा और प्रकाश की पर्याप्त सुविधा हो और ऐसे में यदि वातानुकूलित सुविधा उपलब्ध कराई जाए तो उसमें डक्ट नहीं हों।
इन रेल डिब्बों को कोविड के मरीजों के अनुरुप बदलने का फैसला लेने के पहले नीति आयोग और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ इन डिब्बों को वातानुकूलित रखने या नहीं रखने पर चर्चा की गई थी। अंत में इस बात पर सहमति बनी कि वातानुकूलित डिब्बे कोविड मरीजों के लिए सही नहीं होंगे क्योंकि इनमें लगे डक्ट के जरिए संक्रमण फैलने का खतरा रहेगा। यह माना गया कि आम तौर पर अधिक तापमान वाले परिवेश में वायरस से लड़ने में मदद मिलेगी और खुली खिड़कियों से हवा के परिसंचरण से मरीजों को लाभ होगा।
जैसा कि अधिकार प्राप्त समूह द्वारा निर्देशित और वांछित है, ये कोविड केयर कोचमें केवल कोविड के ऐसे मरीजों की देखभाल के लिए होंगे जिनमें संक्रमण हल्का या मामूली होगा या जो कोविड के संदिग्ध मरीज होंगे।आइसोलेशन कोच वाली ऐसी प्रत्येक रेलगाड़ी को आवश्यक रूप से एक या एक से अधिक कोविड समर्पित स्वास्थ्य केन्द्रों तथा कम से कम एक कोविड समर्पित अस्पताल के साथ जोड़ा जाना होगा जहां मरीजों की स्थिति बिगड़ने पर उन्हें स्थानांतरित किया जा सके।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा ऐसी रेलगाडि़यों के लिए तैयार की गई मानक प्रक्रिया के अनुसार,इनके पास प्लेटफार्म पर एक आपातकालीन सुविधा संबधित स्वास्थ्य सेवा प्रदाता द्वारा आवश्यक रूप से बनाई जानी होगी। यह सुविधा, यदि स्थायी रूप में उपलब्ध नहीं है, तो अस्थायी व्यवस्था के रूप में प्रदान की जा सकती है।
यह सलाह दी गई कि ऐसे रेल डिब्बों का इस्तेमाल कोविड उपचार के लिए उसी स्थिति में किया जाएगा जब संबधित राज्यों के पास ऐसी सुविधाएं अपर्याप्त रह जाएंगी। संभावना है कि जुलाई के मध्य में जब कोविड का संक्रमण अपने चरम पर होगा तब इन रेल डिब्बों की दरकार होगी।
यह दोहराया गया कि गैर-वातानुकूलित डिब्बों को कोविड देखभाल केंद्रों में परिवर्तित करने का निर्णय अधिकार प्राप्त समूह द्वारा इसलिए लिया क्योंकि संभावित संचरण जोखिम के कारण वातानुकूलित डिब्बे इस काम के लिए अनुपयोगी होंगे और इनकी जगह गैर वातानुकूलित डिब्बे बेहतर रहेंगे क्योंकि उनमें खुली खिड़कियों से हवा का परिसंचरण होने से रोगियों को लाभ मिलेगा।
अगर खिड़कियां बंद रखी जाती हैं, तो गैर वातानुकूलित कोच जून के मध्य में थोड़ा गर्म हो सकते हैं जिससे अंदर का तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के आसपास हो सकता है लेकिन, एक मच्छरदानी लगाने और खिड़कियां खुली रखी जाए,तो हवा के आर पार होने से तापमान में सुधार होने की संभावना रहेगी। ऐसी स्थिति अस्थायी हो सकती क्योंकि मानसून के आने के साथ बारिश हो जाने से तापमान में सुधार हो जाएगा। गर्मियों में डिब्बों के अंदर तापमान को कम रखने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अपनाई जा रही है, जिससे रोगियों और कर्मचारियों को आराम मिलेगा।
इसके लिए निम्नलिखित उपाय आजमाए जा रहे हैं-
प्लेटफार्मों पर खड़े ऐेसे डिब्बों के उपर कवर शीट्स (सफेद कनात) या उपयुक्त सामग्री बिछाई जा रही है ताकि बाहर के तापमान से डिब्बों के अदंर गर्मी से बचाव किया जा सके।
डिब्बों के अदंर बबल रैप की शीट लगाई जा रही है ताकि अदंर के तामपान को एक डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सके।
डिब्बों की छतों पर गर्मी को परावर्तित करने वाले पेंट लगाए जा रहे हैं। उत्तरी रेलवे की ओर से इसका प्रयोग किया गया है। परीक्षण के दौरान पाया गया कि इससे डिब्बों केअदंर का तापमान 2.2डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है।
डिब्बों पर पेंट की ऐसी और एक परत चढ़ाए जाने के लिए मुंबई आईआईटी के सहयोग से परीक्षण किए जाने की योजना है। इसका परीक्षण 20 जून को किया जाएगा और परीक्षण के नतीजे रिकार्ड किए जाएंगे।
डिब्बों की छत को पेंट करने के अलावा बांस आदी की टाटी का इस्तेमाल भी किया जा रहा है ताकि तामपान को और घटाया जा सके।
डिब्बों के अदंर सचल कूलर लगाने का भी प्रयोग किया जा रहा है इससे अदंर का तामपान तीन डिग्री सेल्सियस तक कम करने में मदद मिली है।
पानी की फुहार चलाने का भी प्रयोग किया जा रहा है। इससे मौजूद शुष्क मौसम में रोगियों को काफी आराम मिलने की संभावना है।
भारतीय रेल, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार इन रेल डिब्बों को सेवा प्रदाता के रूप में उपलब्ध करा रही है। इनका उपयोग राज्यों द्वारा एक आकस्मिक उपाय के रूप में किया जाएगा जब उनके पास कोविड रोगियों को अलग रखने की सुविधाएं अपर्याप्त हो जाएंगी। ऐसे 5 हजार से अधिक कोच आपातस्थिति के लिए तैयार रखे गए हैं।