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CCRAS revived two rare Ayurvedic manuscripts, India's traditional medicine got a new life

सीसीआरएएस ने पुनर्जीवित कीं दो दुर्लभ आयुर्वेदिक पांडुलिपियां, भारत की पारंपरिक चिकित्सा को मिला नया जीवन


अनिवार्य प्रश्न। संवाद।


मुंबईI आयुष मंत्रालय के तहत काम करने वाली केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS) ने आयुर्वेदिक साहित्य के संरक्षण और पुनरुद्धार की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए दो दुर्लभ और महत्वपूर्ण ग्रंथों — ‘द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः’ और ‘द्रव्यनामाकरनिघण्टुः’ — का पुनर्प्रकाशन किया है। इन ग्रंथों का विमोचन मुंबई स्थित राजा रामदेव आनंदीलाल पोदार (RRAP) केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान हुआ।

इस अवसर पर CCRAS के महानिदेशक प्रो. वैद्य रविनारायण आचार्य ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि “ये ग्रंथ केवल ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि जीवित ज्ञान प्रणालियां हैं, जो यदि समकालीन शोध पद्धतियों से जोड़ी जाएं, तो आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण को नई दिशा दे सकती हैं।”

समारोह में प्रमुख अतिथियों में शामिल रहे डॉ. सदानंद डी. कामत, जिन्होंने इन दोनों पांडुलिपियों का आलोचनात्मक संपादन और अनुवाद किया है। वे मुंबई के एक ख्यातिप्राप्त पांडुलिपिविज्ञानी और अनुभवी आयुर्वेदाचार्य हैं। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में  रंजीत पुराणिक, अध्यक्ष, आयुर्वेद प्रसारक मंडल व प्रबंध निदेशक, श्री धूतपेश्वर लिमिटेड, सहित अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही।

पुनर्जीवित पांडुलिपियों का परिचय:

1. द्रव्यरत्नाकरनिघण्टुः (1480 ई.):
मुद्गल पंडित द्वारा रचित यह ग्रंथ 15वीं शताब्दी का एक दुर्लभ आयुर्वेदिक शब्दकोश है, जिसमें 18 अध्यायों के माध्यम से औषधियों के पर्याय, गुण, और चिकित्सीय उपयोगों का विस्तार से वर्णन है। यह ग्रंथ धन्वंतरि निघण्टु जैसे पारंपरिक ग्रंथों से प्रेरित होते हुए भी कई नए औषधीय पौधों, खनिजों और पशु-जनित द्रव्यों का उल्लेख करता है।

2. द्रव्यनामाकरनिघण्टुः:
भीष्म वैद्य द्वारा रचित यह ग्रंथ धन्वंतरि निघण्टु का विद्वतापूर्ण पूरक है। इसमें औषधियों के पर्यायवाची नामों की गहराई से विवेचना की गई है। 182 श्लोकों और दो कोलोफोन श्लोकों से युक्त यह ग्रंथ औषधि विज्ञान, भैषज्य कल्पना और रसशास्त्र के छात्रों और विद्वानों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

इन दोनों ग्रंथों के पुनरुद्धार से न केवल प्राचीन ज्ञान की रक्षा हो रही है, बल्कि यह छात्रों, शोधकर्ताओं और आयुर्वेदिक चिकित्सकों को पारंपरिक ज्ञान के गहन अध्ययन और अनुसंधान के लिए प्रेरित करेगा।

CCRAS के इस प्रयास को आयुर्वेदिक विरासत के संरक्षण और उसे आधुनिक युग से जोड़ने के एक सशक्त उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। इन ग्रंथों का डिजिटलीकरण और समालोचनात्मक प्रस्तुति, भविष्य के आयुर्वेदिक अनुसंधान और चिकित्सा पद्धतियों को नया आधार प्रदान करेगी।