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Government issued guidelines to prevent misleading advertisements

भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिये सरकार ने जारी किये दिशानिर्देश


अनिवार्य प्रश्न। संवाद।


नई दिल्ली। उपभोक्ता मामले विभाग के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने और उन उपभोक्ताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से ‘भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के अनुमोदन के लिए दिशानिर्देश- 2022’ को अधिसूचित किया है। इसका उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना और ऐसे विज्ञापनों से शोषित या प्रभावित होने वाले उपभोक्ताओं की रक्षा करना है।

ये दिशानिर्देश यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि उपभोक्ताओं को निराधार दावों, अतिरंजित वादों, गलत सूचना और झूठे दावों के साथ मूर्ख नहीं बनाया जा रहा है। इस तरह के विज्ञापन उपभोक्ताओं के विभिन्न अधिकारों, जैसे कि सूचित होने का अधिकार, चुनने का अधिकार और संभावित असुरक्षित उत्पादों व सेवाओं के खिलाफ सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 10 के तहत सीसीपीए की स्थापना उपभोक्ताओं के अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार अभ्यासों और झूठे या भ्रामक विज्ञापनों, जो जनता व उपभोक्ताओं के हितों के प्रतिकूल हैं, से संबंधित मामलों को विनियमित करने और एक समूह के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षित करने और लागू करने के लिए की गई है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 18 के अधीन सीसीपीए को प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दिशानिर्देशों को अधिसूचित किया गया है। वहीं, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(28) के तहत भ्रामक विज्ञापन को पहले ही परिभाषित किया जा चुका है।

मौजूदा दिशानिर्देश “प्रलोभन विज्ञापन”, “सरोगेट विज्ञापन” को परिभाषित करते हैं और स्पष्ट रूप से यह बताते हैं कि “मुक्त दावा विज्ञापन” क्या है।

विज्ञापनों का बच्चों की संवेदनशीलता और कोमलता और युवा मन पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए बच्चों को लक्षित करने वाले विज्ञापनों पर कई रिक्तिपूर्व प्रावधान निर्धारित किए गए हैं। ये दिशानिर्देश विज्ञापन को उत्पाद या सेवा की विशेषताओं को इस तरह से बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से रोकते हैं, जिससे बच्चों को ऐसे उत्पाद या सेवा की अवास्तविक अपेक्षाएं होती हैं और किसी मान्यता प्राप्त निकाय की ओर से पर्याप्त व वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किए बिना ही किसी भी स्वास्थ्य या पोषण संबंधी दावों या लाभों का दावा किया जाता है। इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि बच्चों को लक्षित करने वाले विज्ञापनों, जिसे किसी भी कानून के तहत ऐसे विज्ञापन के लिए स्वास्थ्य चेतावनी की आवश्यकता होती है या बच्चों द्वारा नहीं खरीदी जी सकती है, में उत्पादों के लिए खेल, संगीत या सिनेमा के क्षेत्र से किसी हस्ती को नहीं दिखाया जाएगा।

उपभोक्ता के दृष्टिकोण से डिस्क्लेमर विज्ञापनों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि यह एक तरह से कंपनी की जिम्मेदारी को सीमित करता है। इसे देखते हुए दिशानिर्देश निर्धारित करते हैं कि डिस्क्लेमर ऐसे विज्ञापन में किए गए किसी भी दावे के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने का प्रयास नहीं करेगा। इसमें चूक या इसके न होने के कारण विज्ञापन भ्रामक हो सकते हैं या इसके वाणिज्यिक प्रयोजन को छिपा सकता है और यह विज्ञापन में किए गए भ्रामक दावे को सही करने का प्रयास नहीं करेगा। इसके अलावा दिशानिर्देश में इसका प्रावधान है कि में विज्ञापन में जिस भाषा का उपयोग कर दावा किया गया है, उसी भाषा में डिस्क्लेमर होगा और दावे में उपयोग किए गए फॉन्ट में ही डिस्क्लेमर दिया जाएगा।

इसी तरह अनुमोदन और अन्य कार्रवाई किए जाने से पहले निर्माता, सेवा प्रदाता, विज्ञापनदाता और विज्ञापन एजेंसी के कर्तव्यों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश निर्धारित किए गए हैं। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य विज्ञापनों को प्रकाशित करने के तरीके में अधिक पारदर्शिता और स्पष्टता लाकर उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना है, जिससे उपभोक्ता झूठी कहानी और अतिशयोक्ति की जगह तथ्यों के आधार पर सूचित निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।

इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। सीसीपीए किसी भी भ्रामक विज्ञापन के लिए निर्माताओं, विज्ञापनदाताओं और प्रचारक (एंडोर्सर्स) पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है। इसके बाद फिर से उल्लंघन करने पर जुर्माने की यह राशि 50 लाख रूपये तक हो सकती है। प्राधिकरण एक भ्रामक विज्ञापन के प्रचारक को 1 वर्ष तक के लिए कोई भी प्रचार करने से प्रतिबंधित कर सकता है और इसके बाद भी उल्लंघन के लिए निषेध की अवधि को 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

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