ग़ज़ल: पीढ़ियाँ अब भी।
ग़ज़ल: बचा लो गुज़रे समय की निशानियाँ अब भी सबक इन्हीं से तो लेती हैं पीढ़ियाँ अब भी। बची रही वहीं रिश्तों में गर्मियाँ अब भी जहाँ पे प्रेम की … Read More
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