गुलाबी इश्क: मानसी श्रीवास्तव
गुलाबी इश्क
शहर के शोर सा मचलता मेरा मन
गर्मी की भोर सा खिलता गगन
आये हो सो ठीक है
साथ लाना वाकई जरूरी था
एक व्याकुल सा मन ?
आये तो तुम, अलग मैं हुई हूँ
छोड़ जो गई है कोसों दूर
मुझे मेरी शांत सी रुह,
थोड़ा चैन लेकर आना कब सीखोगे तुम
कब सीखेगा तुम्हारा नाम, मुझसे मेरे ही होश ना छीनने का हुनर,
कब कहोगे उन तितलियों से कि मुझे मेरी हद मेँ रहने दो,
कोशिश हजारों की है मैंने खुद को संभालने की,
काम तुमने भी अनगिनत किये हैं
मेरे काम बिगाड़ने के,
मुझे उड़ना नहीं आता, पर, मीलों दूरी तय कर लेती हूँ,
सँवरना नहीं आता, पर, खूब निखरती हूँ,
सुनो, अब तो सीख जाओ
पहले से कमजोर दिल को
जितना संभाल सकूँ
उतना ही धड़काओ!
मानसी श्रीवास्तव