वरिष्ठ लेखक व कवि देवेन्द्र पाण्डेय की यात्रा वृत्तांत पुस्तक ‘लोहे का घर’ का हुआ भव्य विमोचन
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी । स्याही प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एवं देवेन्द्र पाण्डेय द्वारा लिखित हिन्दी यात्रा वृत्तांत पुस्तक ‘लोहे का घर’ का भव्य विमोचन नगर के सरसौली स्थित ‘उद्गार सभागार’ में एक गरिमामयी समारोह में संपन्न हुआ। यह पुस्तक लेखक ने अपनी नौकरी के दौरान ट्रेन यात्रा के समय लिखी, जो पाठकों को एक अनूठा अनुभव प्रदान करती है। समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार चन्द्रभाल सुकुमार ने की। मुख्य अतिथि के रूप में लेखाधिकारी बृजेश सिंह उपस्थित रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि सुरेन्द्र वाजपेई एवं डॉ. मंजरी पाण्डेय ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। प्रकाशक पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ भी मंच पर मौजूद रहे।
विमोचन समारोह एवं वक्तव्य:कार्यक्रम के प्रथम सत्र में पुस्तक का विधिवत विमोचन किया गया। इस अवसर पर अध्यक्ष चन्द्रभाल सुकुमार ने कहा, “यह पुस्तक न केवल यात्रा वृत्तांत है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने की एक रोचक दृष्टि प्रदान करती है। देवेन्द्र पाण्डेय ने सरल भाषा में गहरी अनुभूतियों को उकेरा है।”
मुख्य अतिथि बृजेश सिंह ने भी अपने विचार रखे। लेखक व कवि को अतुलनीय कृति के लिए शभकामनाएँ दी। अतिथि सुरेन्द्र वाजपेई ने अपने विचार रखते हुए कहा कि ‘लोहे का घर’ केवल एक यात्रा-वृत्त नहीं, बल्कि जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाला दार्शनिक दृष्टिकोण भी है। लेखक ने यात्राओं के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और समझाने का प्रयास किया है। वे ट्रेन की खिड़की से झांकते हुए जीवन के अलग-अलग रंगों को देख पाते हैं—कभी धूल भरे प्लेटफार्म, कभी हंसते-खेलते बच्चे, कभी पसीने से लथपथ कुली, तो कभी आशा-निराशा में उलझे यात्री। यह सब मिलकर जीवन के उन अनछुए पहलुओं को उजागर करते हैं, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।”
वक्ता डॉ. मंजरी पाण्डेय ने कहा कि “देवेन्द्र पाण्डेय की भाषा शैली सहज, प्रवाहमयी और प्रभावशाली है। वे कहीं-कहीं व्यंग्य का सहारा लेते हैं तो कहीं भावनात्मक गहराई से पाठकों को जोड़ते हैं। उनकी लेखनी में एक खास प्रकार की संवेदनशीलता और साहित्यिक सौंदर्य देखने को मिलता है। उनके शब्द चित्रण इतने सजीव हैं कि पाठक को ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह स्वयं ट्रेन में बैठा हो और इस यात्रा का हिस्सा बन रहा हो। पुस्तक में प्रयुक्त भाषा न केवल रमणीय है, बल्कि अत्यंत सरस भी है जो हर वर्ग के पाठकों को आकर्षित करने में सक्षम है।”
प्रकाशक पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ अपने प्रकाशकीय व वृत्तावरण संबोधन में बताया कि, “लेखक ने अपनी यात्राओं के दौरान जो अनुभव अर्जित किए हैं, वे पाठकों को एक नई दृष्टि प्रदान करेंगे। यह पुस्तक यात्राओं के रोमांच और यथार्थ के बीच एक सुंदर समन्वय स्थापित करती है। स्याही प्रकाशन सदैव उत्कृष्ट साहित्य को पाठकों तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। देवेन्द्र पाण्डेय की यह पुस्तक निश्चित रूप से यात्रा साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान देगी।”लेखक देवेन्द्र पाण्डेय ने अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए कहा, “इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरी ट्रेन यात्राओं से मिली। यात्राएँ केवल दूरी तय करने का साधन नहीं होतीं, बल्कि वे हमें समाज, संस्कृति और संवेदनाओं को समझने का अवसर देती हैं। आशा है कि यह पुस्तक पाठकों को भी वही अनुभव देगी जो मैंने महसूस किया।”
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में एक भव्य कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं और साहित्य प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। कविताओं के माध्यम से यात्रा, अनुभव और जीवन के विभिन्न रंगों को दर्शाया गया।
विमोचन व कविगोष्ठी दोनों कार्यक्रमों का संचालन डॉ0 लियाकत अली, बुद्धदेव तिवारी, एवं सुनील कुमार सेठ ने संयुक्त रूप से किया। कवि गोष्ठी में काव्यपाठ करने वाले कवियों में प्रमुख रूप से डॉक्टर लियाकत अली, कंचन सिंह परिहार, जीएल पटेल अयन, सुनील कुमार सेठ, अलियार प्रधान, तेजबली अनपढ़, दीपक शर्मा, शशि उपाध्याय, शिब्बी ममगाई, सूर्य प्रकाश मिश्र, माधुरी मिश्रा, साधना साही, डॉक्टर जगदीश नारायण गुप्ता, डॉक्टर अनिल बहुमुखी, नंदलाल राजभर, समीम गाजी पुरी, डॉ. प्रियंका तिवारी, डॉ. वत्सला, रामनरेश पाल, कंचनलता चतुर्वेदी, संतोष प्रीत, प्रकाशानन्द, बैजनाथ श्रीवास्तव, श्रीप्रकाश श्रीवास्तव, प्रसन्नबदन चतुर्वेदी, प्रताप शंकर दूबे, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, आशिक गरथमा, नन्दलाल राजभर, अंचला पाण्डेय, विन्ध्यालच पाण्डेय सगुन एवं विशाल प्रजापति, नसीमा निशा एव मधुलिका राय आदि शामिल रहे।