आरटीआई का जवाब न देने पर दंडित हुए एआरटीओ वाराणसी
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
कमिश्नरेट के खिलाफ एक अपील में आयोग ने फैसला सुरक्षित रखा, जल्द आयेगा फैसला
वाराणसी। जनपद में लगभग सभी विभागों में जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जवाब देने में काफी सुस्ती बरती जा रही है। विगत कोरोना काल के बहाने व अन्य भिन्न कारणों से भी विभागों के सूचना अधिकारी आरटीआई कार्यकर्ताओं को सूचना देने से बच जा रहे हैं। इसी क्रम में बनारस के आरटीआई कार्यकर्ता, ‘उद्गार’ सस्था के संस्थापक साहित्यकार व प्रकाशक छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ के एक आरटीआई आवेदन का जवाब ना देने के कारण वाराणसी में तैनात रहे विगत चार वर्ष तीन माह तक के सभी क्षेत्रीय परिवहन अधिकारियों (ए.आर.टी.ओ.) व सूचना अधिकारियों पर माननीय राज्य सूचना आयुक्त श्री अजय उप्रेती की लखनऊ स्थित पीठ द्वारा पृथक पृथक रूप से 25000-25000 रुपये का अर्थदंड लगाया गया है। साहित्यकार व आरटीआई कार्यकर्ता छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ सहित कई आरटीआई कार्यकर्ताओं का मानना है कि अन्य कई विभागों से भी आरटीआई का जवाब नहीं मिल रहा है। विगत कुछ दिनों से आयोग में भी सुनवाई लंबी चल रही है। लेकिन माननीय श्री अजय कुमार उप्रेती के आने के बाद से सुनवाई में तीव्रता व पारदर्शिता आई है। और त्वरित न्याय पहले से कुछ सरल हुआ है।
उक्त आरटीआई कार्यकर्ता व साहित्यकार की अपील संख्या एस-05-2002/ए/2018 और पंजीकरण संख्या ए-89646 के क्रम में माननीय आयुक्त व पीठ का कहना है कि दिनांक 16 जनवरी 2018 से आज सुनवाई तिथि दिनांक 25 अप्रैल 2022 तक पदस्थ प्रतिपक्षी जन सूचना अधिकारी सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (प्रशासन) वाराणसी को पर्याप्त अवसर देने के बावजूद अपीलकर्ता को उसके आवेदनपत्र अनुरूप वांछित सूचनाएं शपथ पत्र के माध्यम से उपलब्ध न कराने, आयोग के समक्ष उपस्थित न होने, विलंब के संबंध में लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत न करने तथा आयोग के पूर्व आदेश का अनुपालन न करने का दोषी मानते हुए उनके विरुद्ध सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 20(1) के तहत 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पृथक-पृथक सभी सूचना अधिकारियों व सहायक संभागीय अधिकारियों पर 25000-25000 का अर्थदंड लगाया जाता है। आयोग का यह आदेश 30 मई 2022 को उसके पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया है।
आयोग ने रजिस्ट्रार, राज्य सूचना आयोग, लखनऊ को इस निर्देश की प्रति भेजते हुए 3 महीने के भीतर इसकी वसूली की समय-सीमा तय कर दिया है। आयोग के वर्णित आदेश में कहा गया है कि जब उक्त वसूली बेतन से संभव नहीं हो पाएगी तो उसे भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूला जाये।
छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ ने इस संबंध में प्रेस को बताया है कि बनारस में लगभग सभी विभागों में जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत प्रेषित आवेदनों के प्रति उदासीनता बरती जा रही है। वर्तमान जिलाधिकारी के समय में तो यह बात काफी अधिक बढ़ गई है। ऐसे में यहां के स्थानीय जिला अधिकारी को ध्यान देना चाहिए कि जन सूचना अधिकार से मांगे गए वाजीब प्रश्नों के जवाब तो अवश्य मिलने चाहिए। मेरी एक अपील में अभी-अभी आयोग ने फैसला सुरक्षित रखा है जो यहां के कमिश्नरेट के खिलाफ है। मतलब साफ है कि जिला सूचना अधिकारी कार्यालय, जिला सूचना उपनिदेशक कार्यालय, कमिश्नर ऑफिस एवं जनपद के लगभग सभी कार्यालयों से सूचना का निस्तारण सही व समय पर नहीं किया जा रहा है या कहें तो उसमें सुस्ती बरती जा रही है, जो सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए निराशाजनक एवं संपूर्ण प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए लज्जाजनक है। ऐसे कामचोर व भ्रष्ट अधिकारियों को दंड तो स्वाभाविक रूप से मिलना ही चाहिए। दुख इस बात का है कि आयोग में भी सुनवाई देर से हो रही हैं। आरटीआई का निस्तारण जल्दी-जल्दी होना चाहिए और जिम्मेदार व दोषी अधिकारियों के खिलाफ दंड शीघ्र व एक समय सीमा में पारित होना चाहिए, तब वे सूचना के लिये उत्तरदाई बनेंगे। इस फैसले से न्याय के सापेक्ष आरटीआई कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ेगा साथ ही आरटीआई के प्रति छाई घोर निराशा दूर होगी। वे सबको प्रेरित करते हुए बोल रहे थे कि हर जागरूक आदमी को अपने अधिकारों के लिए आरटीआई का प्रयोग जरुर करना चाहिए।