स्याही प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हनुमत सतक पुस्तक का हुआ लोकार्पण
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
काशी के तीन मुर्धन्य कवियों व साहित्यकारों का सम्मान
हनुमत सतक पुस्तक विश्व के अवधी व हिन्दी भाषी समाज में संरक्षणीय धर्म ग्रन्थ हैः प्रकाशक छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’
वाराणसी। स्याही प्रकाशन परिसर भोजूबीर-सिंधोरा रोड वाराणसी में उद्गार साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन द्वारा गत रविवार को आयोजित की गई कवि गोष्ठी में वाराणसी के जिला प्रशिक्षण अधिकारी दीनानाथ द्विवेदी रंग द्वारा लिखित अवधी की काव्य पुस्तक ‘हनुमत सतक’ का लोकार्पण किया गया। यह किताब वाराणसी के स्याही प्रकाशन से प्रकाशित की गई है। पुस्तक में भगवान श्री हनुमान पर 100 घनाक्षरियां संयोजित की गई है। कवि अपने जीवन के अथाह पीड़ा के काल में प्रभु को याद करते हुये इनहें रचा था। पुस्तक को पढ़ते हुए कवि का अवधी भाषा के ऊपर अधिकार साफ-साफ जाहिर होता है। संस्कृत व हिन्दी में अनेक शतक लिखे गए हैं किन्तु अवधी में सतक का बड़ा अकाल है। कवि के इस प्रयास व स्याही प्रकाशन के प्रकाशकीय योगदान को अवधी भाषा की भक्ति गीत व घनाक्षरी परम्पारा में एक मील के पत्थर के रुप में देखा जा रहा है। अवधी भाषा के घटते चलन के दौर में इस भाषा व घनाक्षरी विधा में सतक का लेखन लेखक को संकलनीय बना देता है।

उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीश चंद्रभाल सुकुमार, जिला पुस्तकालय
के पुस्तकालय अध्यक्ष कंचन सिंह परिहार रहे और अध्यक्ष साहित्यकार मधुकर मिश्र रहे। कार्यक्रम का संचालन बुजुर्ग कवि योगेन्द्र नारायण चतुर्वेदी वियोगी ने किया। इस लोकार्पण व कवि गोष्ठी के लिए स्वागत् व आभार ज्ञापन उद्गार के संस्थापक व प्रबंधक छतिश द्विवेदी कुंठित ने किया।
लोकार्पण कार्यक्रम में अयोध्या के दिव्य प्रकाशन ने काशी के तीन मुर्धन्य कवियों का सम्मान भी किया। सम्मानित किये जाने वाले कवियों में क्रमशः कवि योगेन्द्र नारायण चतुर्वेदी वियोगी को ‘सरस्वती वरद पुत्र’ सम्मान, साहित्यकार छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ को ‘काव्य रत्न’ एवं डा. लियाकत अली ‘विरही’ को ‘काशी के रसखान’ सम्मान से सम्मानित किया।
उपस्थित साहित्यकारों, कवयित्रियों व कवियों में महेंद्र नाथ तिवारी अलंकार, डा. कृष्ण प्रकाश श्रीवास्तव प्रकाशानंद, श्रीमती मधुबाला सिन्हा, डा. नसीमा ‘निशा’, माधुरी मिश्रा, संतोष कुमार प्रीत, योगेंद्र नारायण वियोगी, नीलिमा श्रीवास्तव, कंचन लता चतुर्वेदी, प्रसन्ना बदन चतुर्वेदी, सुनील कुमार सेठ, बबीता पटेल, डॉ शरद श्रीवास्तव, नागेंद्र सिंह, विन्ध्याचल पाण्डेय ‘सगुन’, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, मनोज मिश्र मनु, विन्ध्यवासिनी मिश्रा, धानापुरी, मुनिन्द्र पाण्डेय, कृष्ण मिश्र, राजन सिंह व राजेन्द्र प्रसाद गुप्त बावरा आदि लोग थे।
सभा के अन्तिम में प्रकाशकीय संवाद व्यक्त करते हुए छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ ने कहा कि अवधी का यह हनुमत सतक आचार्य तुलसीदास जी के की ही तरह पूजाघर में सहेजने व आराधना के समय पाठ करने योग्य है। आने वाले समय में विश्व का अवधी व हिन्दी भाषी समाज इसे अपने आध्यात्मिक जीवन में स्थान देगा। यह संरक्षणीय धर्म ग्रन्थ है। इसके बाद वे अपनी रचना पढ़कर सभी को आभार व धन्यवाद दिये।