Published by ink publication and inauguration of the book 'Meri Pir Rahi Anagai' and 'Divya Dohavali'

स्याही प्रकाशन से प्रकाशित ‘मेरी पीर रही अनगायी’ एवं ‘दिव्य दोहावली’ पुस्तक का लोकार्पण


अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।


वाराणसी। काशी की सुख्यात प्रकाशन संस्था ‘स्याही प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित व काशी के वयोवृद्ध साहित्यकार योगेंद्र नारायण चतुर्वेदी ‘वियोगी’ के द्वारा लिखित श्रृंगार व उसके पीर से उपजी तड़प पर आधारित गीत संग्रह ‘मेरी पीर रही अनगायी’ का लोकार्पण ‘उद्गार’ साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सांस्कृतिक संगठन के 64वीं मासिक गोष्ठी में हुआ। यहीं पर अयोध्या के महाकवि खुशी राम द्विवेदी ‘दिव्य’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘दिव्य दोहावली’ का लोकार्पण भी किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता काशी के बुजुर्ग साहित्यकार हीरालाल मिश्र ‘मधुकर’ ने की और कार्यक्रम में बतौर अतिथि जिला प्रशिक्षण अधिकारी दीनानाथ द्विवेदी ‘रंग’, अवकाशप्राप्त जिला विकास अधिकारी डॉ. दयाराम विश्वकर्मा, बैरागी और वरिष्ठ कवि आलोक द्विवेदी के साथ पुस्तकों के प्रकाशक व साहित्यकार छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन ‘उद्गार’ के उपाध्यक्ष डॉक्टर लियाकत अली ‘विरही’ ने किया। संस्था की ओर से सबका स्वागत् व धन्यवाद ज्ञापन प्रवक्ता व कोषाध्यक्ष हर्षवर्धन मंमगाई ने किया।

लोकार्पण समारोह के बाद किताब पर बोलते हुए मधुकर जी ने कहा कि ‘वियोगी जी काशी के वरिष्ठ साहित्यकार हैं और इस उम्र में इनका श्रृंगार लिखना बहुत महत्वपूर्ण है। वृद्धापन में सन्यास वर्णन संभव है लेकिन श्रृंगार आधारित रचनाएं बहुत मुश्किल से हो पाती हैं, वियोगी जी की इस किताब में समर्थ श्रृंगार रचनाएं हैं, पूरे समाज को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए। प्रकाशकीय वक्तव्य में छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ ने कहा ‘काशी के वृद्ध साहित्यकार और ‘उद्गार’ के लगभग 5 साल से अध्यक्ष योगेंद्र नारायण चतुर्वेदी ‘वियोगी’ की अप्रतिम रचना है, इसमें वे गीत संयोजित हैं जो इनके वृद्धापन में इनके पत्नी के ना होने के बाद की पीर से उपजी हुई तड़प हैं, उसकी अभिव्यक्तियां हैं, इनके श्रृंगार में सिर्फ दैहिक जीवन के आकर्षण संकेत नहीं हैं अपितु भक्ति के सन्मार्ग की प्रेरणायें हैं। इनका श्रृंगार भक्तिमयता का श्रृंगार है। इनके श्रृंगार गीतों को पढ़ते हुए अलौकिकता का विचार नहीं होता बल्कि वंदना और प्रार्थनाओं से समीपता का भान होता है। इसके अलावा दिव्य जी की दिव्य दोहावली राष्ट्रवादिता व जीवन संवेदनाओं की तराजू पर सबसे भारी रचना है, इनकी लगभग पचासों कृतियां आ चुकी हैं। खुशी राम द्विवेदी ‘दिव्य’ जी एक समर्थ रचनाकार हैं।’’ किताबों पर बोलते हुए जिला प्रशिक्षण अधिकारी दीनानाथ द्विवेदी ने कहा कि ‘दोनों कवियों की इन श्रेष्ठ रचनाओं से लोग जीवन में मधुरता व विनयता की शिक्षा लेते रहेंगे।

पुस्तकों के अनावरण के साथ कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी में भाग लेने वाले साहित्यकारों में भोलानाथ तिवारी ‘विह्वल, महेन्द्रनाथ तिवारी ‘अलंकार’, चन्द्रभूषण सिंह, सुनील कुमार सेठ, संतोष कुमार प्रीत, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी, डा. कृष्णप्रकाश श्रीवास्तव प्रकाशानन्द, डी. के. चौरसिया, कवयित्री शिब्बी ममगाई, श्रीमती कंचन लता चतुर्वेदी, डॉक्टर नसीमा निशा, श्रीमती विन्ध्यवासिनी मिश्रा, इकबाल अहमद अन्सारी, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, अजफर बनारसी, सिद्धनाथ शर्मा सिद्ध, गोपाल केशरी, विनय कुमार तिवारी जैसे नगर व नगर के बाहर के अनेक रचनाकारों ने अपनी अपनी रचनायें सुनाई।

कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वंदना व पुस्तक पर लिखी एक कविता से कवि प्रीत ने किया एवं आभार ज्ञापन कोषाध्यक्ष व प्रवक्ता हर्षवर्धन मंगाई ने किया। उल्लेखनीय है कि यह ‘उद्गार’ की 64वीं गोष्ठी अति भव्यता एवं साहित्य के श्रेष्ठ मनीषियों की उपस्थिति में साहित्य साधना के शीर्ष स्तर पर पहुँचकर संपन्न हुई।


 

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