बौराया बनारस, बेहोश प्रशासन : छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’
आलेख। बौराया बनारस, बेहोश प्रशासन : छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ के साथ अनिवार्य प्रश्न फीचर डेस्क।
बनारस की शान अपने आप में अनोखी है। यहां का हर आदमी अपने अल्हड़ता के लिए विश्व भर में जाना जाता है, लेकिन इन दिनों लग्न और वैवाहिक माहौल में पूरा बनारस एक खास तरह की परेशानी को जी रहा है। आइए बनारस की एक खास तरह की परेशानी व उसके कारणों पर नजर डालते हैं-
गली-गली जाम
चांदमारी रिंग रोड से लेकर डाफी तक, लेढूपुर से लेकर बाबतपुर तक या कहें हरहुआ तक बनारस रोज शाम को भयंकर रूप से जाम हो जाता है। शहर के आंतरिक हिस्सों की परेशानी तो वर्णन से परे है। जाम के कई कारण हैं ई-रिक्शा व ऑटो रिक्शा के संचालन व दुपहिया वाहन से आवागमन करने वालों के कारण जाम तो लगता ही है लेकिन यह जाम बनारस के रोजमर्रा के जाम से पूरी तरह भिन्न है। इस जाम में शाम के समय 6ः00 बजे से लगभग 10ः00 बजे तक यकायक लाखों लोग सड़क पर आ जाते हैं। उन्हें किसी लॉन में जाना होता है और वैवाहिक आयोजन में शामिल होना होता है। निमंत्रण करने आने-जाने वालों से पूरे शहर की सभी सड़कें व गलियां जैसे भर सी जाती हैं।
बिना पार्किंग की व्यवस्था के लान वालों की मनमानी
पूरे शहर की और शहर के बाहरी परिक्षेत्र की बात करें तो शहर में हजारों की संख्या में लॉन हैं लेकिन लॉन वालों की पार्किंग की व्यवस्था लगभग 10प्रतिशत के पास ही है। सरकारी कागजों में लेखा-जोखा चाहे जो भी हो लेकिन वास्तविकता यही है। शहर के लॉन यहाँ के मार्गाे गलियों व मुख्य सड़कों पर अपने यहां आगंतुकों को पार्किंग करने के लिए छोड़ देते हैं। आधी से अधिक सड़कें पार्किंग में जाम हो जाती हैं। आवागमन में लोगों की अधिकता वैसे ही रहती है इस कारण से शहर खासकर लग्न और वैवाहिक आयोजन के शुभ तिथियों में पूरी तरह जाम हो जाता है। अनेक लोगों व शादी विवाह में जाने वाले लोगों को परेशान व तंग हाल देखा जा सकता है। कईयों का तो कहना है कि शहर में कोई व्यवस्था ठीक से नहीं चल रही है। लॉनों पर कोई नियंत्रण नहीं है जो मर्जी जैसे लॉन संचालित कर रहा है। प्रशासन का लॉन वालों पर तो कोई नियंत्रण नहीं है अधिकतर के पास पार्किंग नहीं है लेकिन लॉन संचालन का लाइसेंस लिए हुए हैं। शहर में कौन नागरिक कैसे सफर करें इसकी किसी को चिंता नहीं ना प्रशासन को इसकी चिंता है ना लाने वालों को। लॉन वाले तो व्यापारी हैं और प्रशासन वाले सरकारी हैं। बस आम आदमी आम आदमी है वह अपनी समस्या अपने से दूर कर ले।
बारात मालिकों व बरातियों की मनमानी
बरात निकालने वाले वर पक्ष की कहानी तो ऐसी है जैसे शहर में भगवान शिव ब्याहने चले हों, पूरी काशी अब उसी की है। जिस गली से, जिस रास्ते से, चाहे जिस सड़क से जायें हर सड़क जाम करके जा चल रहे होते हैं। शहर भर में हर शाम को निकलने वाली बारात एवं बरात मालिक बिना इस बात की परवाह किए कि पीछे वाहनों की कितनी बड़ी लाइन लगी हुई है, पूरा सड़क चोक कर डीजे बजाते हुए सैकड़ों लोगों के नाच-गाने के साथ अपनी बरात गुजारते हैं। शहर के हर नागरिक को इस तरह के बरात मालिकों के मनमाने सड़क जाम करने और पटाखा छोड़ने से दो-चार होना पड़ा होगा। एंबुलेंस मार्ग में फंसी है या आम आदमी किसी बीमार को लेकर फंसा है इनको कोई चिन्ता नहीं रहती। उनकी चाह रहती है कि आज उनकी शान और शौकत को पूरी दुनिया देख ले। और शायद उनको लगता है कि इसी गली में पूरी दुनिया झांक रही है, इसी रास्ते में पूरा संसार आकर आंखें बिछाया है, एक ही दिन में उनके जुलूस के माध्यम से उनके सामर्थ्य, उनके वैभव, उनकी बड़ी बारात की शोभा को पूरा संसार देख लेगा और जान जाएगा। ऐसा प्रतीत करता है जैसे एक सम्राट की बारात जा रही है। मिथ्या अभिमान में हर बरात स्वामी और बराती सड़क और आम आदमी के जीवन से जुड़े आवश्यक आवागमन के मार्ग को बाधित करते हुए जाम कर देते हैं।
बेहिसाब पटाखों का शोर
बारातियों द्वारा पटाखों को छोड़ने के पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा ही मत करिए, सड़क पर बारात जिधर से गुजरती है पड़ोस के घर वाले सीने पर हाथ रख लेते हैं, बेहिसाब ऊंची ध्वनि के पटाखे हृदय रोगियों के लिए तो जैसे आसमान ढा देते हैं, कहने के लिए नियम और कानून बने हैं और संवैधानिक दंड संहिता की धाराओं के अनुसार तो 10 बजे तक ही बजाना संभव है, लेकिन नियम कानून को ताक पर रखकर लोगों को खूब पता है कि क्या किया जा रहा है। समीप के लोग जिनका बारात से लेना देना भी नहीं है उस तक धन व भौतिकता के नशे में जीने वाले लोग अपने आडंबर व अपने भौकाल से दुख पहुंचा रहे हैं। पटाखों की तेज ध्वनि से सड़क पर चलने वाले व समीप के घरों में रहने वाले लोगों की जीवन की पीड़ा तो वही लोग जानते होंगे 10-20 बराती लोगों के लिए हजारों लोगों के दुखों को सुनने वाला इस बनारस में कोई नहीं है। बहरा प्रशासन तो कतई नहीं।
कानून पे एक नजर
भारतीय दंड संहिता की धारा 447 के अनुसार, जो भी कोई आपराधिक अतिचार करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे तीन मास तक के लिये बढ़ाया जा सकता है, या पांच सौ रुपए तक का आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जा सकता।
इसकी आपराधिक श्रेणी आपराधिक अतिचार है।
इसके लिये सजा – तीन मास कारावास या पांच सौ रुपए आर्थिक दण्ड, या दोनों।
इसके अलावा पुलिस को यह भी अधिकार है की शांति भंग की आशंका में 151 भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निरुद्ध कर सकती है, या 107/116 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही भी कर सकती है। लेकिन सब ढाक के तीन पात हैं।
स्थानीय प्रशासन की मौन भूमिका प्रश्न वाचक
स्थानीय जिला प्रशासन तो जैसे काठ का बना हुआ है। जनसुनवाई और जन सूचना अधिकार कानून के लिए तो वह बहरा और गूंगा है ही अंधा भी है। लेकिन शहर के जाम के पहलू पर तो उसकी भूमिका मौनी बाबा वाली है। शहर कि प्रत्येक गली जाम हो जाने के बाद भी किसी अधिकारी को इतनी नहीं पड़ी कि बारात वालों पर कुछ अंकुश करें, ना ही किसी अधिकारी व उप अधिकारी को यह पड़ी है कि वह बरातियों पर नियंत्रण करे। लग्न व शुभ लग्न के दिनों में शाम ढली नहीं कि शहर ठहर जाता है। दीवारों के कलेजे फटने लगते हैं। और शोर और जाम से शहर कराह उठता है। किसी को कहीं जाना हो तो उससे उसकी परेशानी पूछिए! वह सोचता है कि उस रास्ते से गुजर जाए जिस रास्ते से काई बारात न गुजर रही हो, तो उसे पूरे शहर में ऐसा कोई रास्ता नहीं मिलता जिस रास्ते से कोई भी बारात का आवागमन ना हो रहा हो। शहर जैसे बैठ गया होता है, चलने का नाम नहीं लेता, जो वाहन लेकर जाम में फंस गया वह फिजूल की पेट्रोलिंग करता है। महंगे पेट्रोलियम के युग में अपनी जेब ढीली कर बरात में निमंत्रण देकर या अपने जरूरी कार्यों से गंतव्य तक जाकर लौटता है। उससे उसके आंसू उसकी पीड़ा पूछी जा सकती है। कुछ लोगों को तो शख्ति से प्रशासन के खिलाफ वक्तव्य देते हुए सुना गया है कि प्रशासन पैसा लेकर जाता है और लॉन वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता।
शादी-विवाह में शहर के मध्य शोरगुल वाले पटाखों व सरेआम सड़क पर बारात प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए। कानून कमजोर है तो कानून का दोष दूर करना चाहिए। कानून को ठीक करना चाहिए। सौ पचास लोगों के अय्याशी के लिए संपूर्ण शहर को परेशान नहीं किया जा सकता। आम आदमी की अपनी भावनाएं हैं, आम आदमी का जीवन है, आम आदमी के अपने अधिकार हैं, यह पूरी तरह अमानवीय है, प्रशासन को चेतना होगा और उचित कार्यवाही करनी होगी, प्रशासन को भ्रष्टाचार से ऊपर उठकर नैतिकता के साथ समाज को ठीक करना होगा अन्यथा व्यापारी लॉन वालों के साथ मन बढ़े नशे में धुत बाराती व पूंजीपति बारात मालिक समाज को यथा दुख देते रहेंगे। समाज 10-20 लोगों का नहीं है, समाज सबका है समाज में सबको उन्मुक्तता से जीने का अधिकार है । लेकिन यह स्वतंत्रता दूसरे के जीवन में कष्ट घोले।