क्या होती है पादलगी या पलग्गी
भारतीय संस्कृति और परम्परा में चरणस्पर्श और उसकी वैज्ञानिकता
भारतीय संस्कृित की कई सारी परम्पराएँ व रीतियाँ अनमोल हैं। जो इसकी सामाजिक व आध्यात्मिक सम्पदा की परिचायक हैं। इन्हीं में से एक परम्परा है चरण स्पर्श करने की। पैर छूना, प्रणाम करना या चरण स्पर्श करना ये एक रीत-रिवाज भर नहीं है, अपितु एक अतिवैज्ञानिक व्यवहार है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक स्वास्थ्य व उसके विकास से जुड़ा हुआ है। चरण स्पर्श करने से बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता बल्कि बड़ों के व्यक्तित्व की सकारात्मक चुम्बकीय उर्जा भी हमारे अंदर समाने लगती है। चरण स्पर्श करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे शरीर को योग मुद्रा जैसा लाभ मिलता है। झुककर पैर छूना, घुटने के बल बैठकर पैर छूना, साष्टांग प्रणाम करना चरण स्पर्श के प्रमुख तरीके हैं।
चरण स्पर्श के लाभ
झुककर चरण स्पर्श करने से हमारी कमर और स्पाइन को काफी आराम मिलता है। घुटने पर झुक कर चरण स्पर्श करने से हमारे शरीर के जोड़ों पर दबाव पड़ता है, जिससे जोड़ों के दर्द में आराम होता है। चरण स्पर्श के साष्टांग प्रणाम विधि में शरीर के सारे जोड़ कुछ समय के लिए एक सीध में हो जाते हैं, इससे देह को योगमुद्रा जैसा ही लाभ होता है।
साथ ही झुककर चरण स्पर्श करने से खून का संचार ठीक होता है जो पूरे शरीर को फायदा पहुँचाता है। चरण स्पर्श का लाभ यह है कि इससे व्यक्ति में छाए अभिमान व अहंकार का नाश होता है। चरण स्पर्श का मतलब है उसके प्रति समर्पण भाव लाना है। जब मन के भीतर समर्पण आता है तो अहंकार को मिटने में दो क्षण लगता है।
चरण स्पर्श का सही तरीका
किसी के चरण स्पर्श का सही तरीका झुककर उसके अंगूठे को स्पर्श करना है। चरण के अंगूठे द्वारा विशेष शक्ति का संचार होता है। आदमी के पांव के अंगूठे में विद्युत संप्रेषणीय शक्ति होती है। यही कारण है कि अपने वृद्धजनों के नम्रतापूर्वक चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे व्यक्ति की प्रगति के रास्ते खुलने लगते हैं। माना जाता है कि जो पुण्य कपिला नामक गाय के गोदान से प्राप्त होता है और जो पुण्य कार्तिक व ज्येष्ठ मासों में पुष्कर स्नान व दान आदि से मिलता है, वह पुण्य फल चरण प्रक्षालन एवं चरण स्पर्श से प्राप्त होता है।
हिन्दू विवाह संस्कार में द्वारपूजन के क्षण कन्या के पिता द्वारा इसी भाव से श्रीवर का चरण प्रक्षालन किया जाता है। वृद्धजनों की पादलगी करने से जो आशीर्वाद मिलता है उससे अज्ञानता का अंधकार नष्ट होता है।
हमारी परंपरा में चरण स्पर्श करना हमारे धर्म के रीति-रिवाजों और बड़ों के प्रति आदर-सम्मान व्यक्त करने का प्रतीक है। चरण स्पर्श करने की परंपरा वैदिक काल से ही हमारी संस्कृति का हिस्सा बनी हुई है। इस परंपरा के अनुसार लोग अपने से बड़ों, गुरुओं और अपने माता-पिता व परिजन के चरण स्पर्श कर बल, विद्या, बुद्धि और सुख-समृद्धि की प्राप्त करते हैं। वरिष्ठ व्यक्ति अपने से छोटे को उनकी कामना पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं। भारत के कई हिस्सों में विजयादशमी के दिन सम्पूर्ण समुदाय के लोग अपने से बड़ों का चरण स्पर्श करते हैं।
विजया दशमी तो जैसे चरण स्पर्श क्रिया का उत्सव दिवस है। चरण स्पर्श से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यही कारण है कि अपने वृद्धजनों के नम्रतापूर्वक चरण स्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे चरण स्पर्श करने वाले की मनोकामना पूरी होती है।
परंम्परा का कारण
शास्त्रों की मान्यता है कि वरिष्ठ, वयोवृद्ध जन के चरण स्पर्श से हमारे पुण्य क्षीण नहीं होते अपितु पुण्यों में वृद्धि होती है। उनके आशीर्वाद से हमारा अभाग्य दूर होता है तथा मन को शांति मिलती है।
चरण स्पर्श से व्यक्ति के मन में अच्छे संस्कारों का जन्म होता है तथा नई पुरानी पीढ़ी के बीच स्वस्थ सकारात्मक संवाद की स्थापना होती है।
चरण स्पर्श अथवा पादलगी शिष्टाचार का महत्वपूर्ण अंग है, भारतीय सनातन संस्कृति का यह प्रणाम-निवेदन व अभिवादन एक जीवन संस्कार है। अभिवादन से आयु, विद्या व यश की वृद्धि होती है। सनातन परम्परा में प्रातः जागरण से शयन पर्यन्त चरण स्पर्श की अविछिन्न रीति प्रवाहमान है।
चरण स्पर्श की विधियाँ
पहली विधि यानी झुककर चरण स्पर्श करने की है इससे कमर और रीढ़ की हड्डी को योगासन की भाँति ही आराम मिलता है।
दूसरी विधि में शरीर के सारे जोड़ों को मोड़ा जाता है जिससे उनमें होने वाले दर्द से बहुत आराम आता है।
तीसरी विधि से चरण स्पर्श करने यानि साष्टांग प्रणाम करने से शरीर के सारे जोड़ थोड़ी देर के लिए तन जाते हैं तथा इससे तनाव दूर होता है। इसके अलावा प्रथम विधि द्वारा चरण स्पर्श में झुकना पड़ता है। झुकने से सिर में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है जो स्वास्थ्य और खास तौर पर नेत्रों के लिए लाभकारी है। द्वितीय तथा तृतीय विधि से चरण स्पर्श करने से स्वास्थ्य लाभ होता है और अनेकों रोगों को दूर करने में सहायक है। चरण स्पर्श से मन का अहंकार समाप्त होता है तथा हृदय में समर्पण और विनम्रता का भाव जागृत होता है। इसलिए भारतीय संस्कृति में बड़ों के सादर चरण स्पर्श की पुरातन परम्परा है।
जाने क्या है साष्टांग प्रणाम?
अभिवादन की श्रेष्ठतम विधि साष्टांग प्रणाम है। पेट के बल भूमि पर दोनों हाथ आगे फैलाकर लेट जाना साष्टांग प्रणाम है। इसमें मस्तक, नासिका, वक्ष, ऊरू, घुटने, करतल तथा पैरों की उंगलियों का ऊपरी भाग-ये आठ अंग भूमि से स्पर्श करते हैं और फिर दोनों हाथों से सामान्य पुरुष का चरण स्पर्श किया जाता है।
शात्रीय निषिद्धता
सिर्फ एक हाथ से प्रणाम करना व चरण स्पर्श करना शास्त्रीय रुप से निषिद्व है। वास्तव में प्रणाम देह को नहीं अपितु देह में स्थित सर्वान्तर्यामी शक्ति को किया जाता है।
चरणस्पर्श या पादलगी ;पलग्गीद्ध के लाभ
मान्यता है कि जो पुण्य कपिला गाय के गोदान विशेष मासों में पुष्कर स्नान से मिलता है, वही फल किसी ब्राह्मण व्यक्ति के चरण स्पर्श करने से होता है।
पादलगी (पलग्गी) का महत्व इसी बात से पता लगता है कि जब भगवान् श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा से मिले थे तो उन्होंने आदर भाव से उनके चरणों को पखारा था। इसी मान्यता के चलते नवरात्रि में कुवारियां भी इसी तरह पैर धोकर पूजी जाती हैं।
सनातन धर्म में यह माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति झुककर अपने बुजुर्गो का चरण स्पर्श करता है तो उनका अहंकार टूटता है और वह व्यक्ति अपने से वरिष्ठों की आयु, अनुभव और ज्ञान का सम्मान करने के भाव को प्रकट करता है।
भारत में चरण स्पर्श के महत्व के पीछे एक प्रगाढ़ वैज्ञानिक कारण भी रहा है। पावं छूने के समय जब हाथ की उंगलियां किसी व्यक्ति के चरणोें से जुड़ती हैं, तो दोनों के बीच संचरित होकर एक आत्मीय सम्बन्ध स्थापित होता है। परस्पर शरीर की ऊर्जा अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ जाती है। आपकी उंगलियां उस ऊर्जा की स्वीकार्ता बन जाती हैं, पैर अप्रत्यक्ष रुप से ऊर्जा के दाता बन जाते हैं। आप अपने से बड़े का आशीर्वचन लेकर असीम सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं।
हमारे समाज में बड़े-बुजुर्गों तथा संतों-साधुओं के चरण स्पर्श करने की रीति प्राचीन काल से चली आ रही है। इस परम्परा के पीछे अनेक सांस्कृतिक एवं बैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।
कोई आपके पैर छुए तब ध्यान रखें ये बातें
जब भी कोई हमारे पैर छूता है तो उस समय भगवान का नाम लेने से पैर छूने वाले व्यक्ति को भी सकारात्मक फल मिलते हैं। आशीर्वाद देने से पैर छूने वाले व्यक्ति की समस्याएं खत्म होती हैं, उम्र बढ़ती है और नकारात्मक शक्तियों से उसकी रक्षा होती है। हमारे द्वारा किए गए शुभ कर्मों का अच्छा असर पैर छुने वाले व्यक्ति पर भी होता है। जब हम भगवान को याद करते हुए किसी को सच्चे मन से आशीर्वाद देते हैं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है। किसी के लिए अच्छा सोचने पर हमारा पुण्य भी बढ़ता है।
क्यों किसी बड़े का पैर छूना चाहिए?
पैर छूना या प्रणाम करना, केवल एक परंपरा नहीं है, यह एक वैज्ञानिक क्रिया है जो हमारे शारीरिक, मानसिक और वैचारिक विकास से जुड़ी है। पैर छूने से केवल बड़ों का आशीर्वाद ही नहीं मिलता, बल्कि बड़ों के स्वभाव की अच्छी बातें भी हमारे अंदर उतर जाती है। पैर छूने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे शारीरिक कसरत होती है।