देश में अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बनाता हमारा समाज
अभिव्यक्ति की आजादी को भारतीयों द्वारा तहस-नहस किए जाने पर दुख जाहिर कर रहे हैं वरिष्ठ लेखक व शिक्षक डाॅ. अरविन्द सिंह
क्या देश, धर्म, समाज के खिलाफ जहर उगलना है आजादी?
क्या नेता क्या अभिनेता सबकी जबान काली
खुलेआम दे रहे देश व व्यवस्था को गाली
जिन्हें देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं थी, वो चुनाव आने पर अभिव्यक्ति की आजादी की सारी ही सीमा तोडने पर आमादा थे। जाति से लेकर औरतों के अधोवस्त्रों के रंग तक पूछने की आजादी उन्हें प्राप्त थी। कोई नहीं बचा था, लोकतन्त्र का चीर हरण करने से। सेना से सबूत मागने, जिन्ना को महान बताने और पाकिस्तान का का गुणगान करना देश के नेताओं का ईमान और धर्म हो गया था। कश्मीर से देश का ज्ञान बढाने वाली जानकारिया दी जा रही थी। चलिए आज थोडा देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर ही चर्चा कर लेते हैं। तथ्य चैबीस कैरेट सही हैं, और नेताओं का ईमान वेश्याओं के ग्राहक बदलने जैसा। नहीं विश्वास होता तो चलिए शुरू करते है-
पाकिस्तान ने परमाणु बम ईद के लिए नहीं रखे है – महबूबा मुती
क्या अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है ?
तिरगें को कंधा देने वाला नहीं मिलेगा – महबूबा मुती।
देश के टेलीविजन पर देश को ही गाली। कश्मीर में भारत का झण्डा जलाया जाता है। भारत विरोधी नारे लगाये जाते है। भारत माता डायन है – आजम खान बोल देते हैं फिर भी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? आगे चलें तो विधान सभा में नेताजी अश्लील विडियो देखते पकडे जाते हैं। उडीसा विधान सभा राजीव गाॅधी के हत्यारों की फाॅसी पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करती है। कश्मीर विधान सभा अफजल गुरू की फाॅसी पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करती है।
पंजाब विधान सभा भुल्लर की फाॅसी पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करती है। तिलक, तराजू और तलवार-इनको मारो जूते चार-मायावती।
लडके हैं गलती हो जाती है-रेप पर मुलायम सिंह। गुजरात दंगो पर सारा मीडिया मुखर होता है।
मुहम्मद साहब पर टिप्पणी – कमलेश तिवारी। गिरीराज किशोर, साध्वी ज्योति तथा आदित्यनाथ आदि का बयान आप सब जानते हैं। चन्द लोगांे द्वारा पूरे संसद को बधंक बना लेना और कोई काम न होने देना। कश्मीर और हैदराबाद विश्वविद्यालय में बीफ पार्टी का आयोजन। हैदराबाद विश्वविद्यालय में याकूब मेमन की फाॅसी का विरोध। याकूब मेमन की फाॅसी के बाद हैदराबाद विश्वविद्यालय में प्रार्थना सभा। मेरी बीबी कहती है यह देश रहने लायक नहीं है -आमिर खान। देश में असहिष्णुता है- शाहरूख खान। हिन्दू देवी देवताओं का मजाक बनाती फिल्म-पीक। कला के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं की अश्लील पेटिंग- मकबूल फिदा हुसैन। मस्जिद के बाहर, ट्रैफिक रोक कर, सडकों पर नमाज। बंजरग बली की आरती सडकांे पर। देश के मसले को सयंुक्त राष्ट्र संघ में चिट्ठी लिखने की धमकी- आजम खान।
देश के प्रधान मंत्री को कायर और मनोरोगी कहना-केजरीवाल।
मुख्य मंत्री हत्यारा है, जहर की खेती करता है-सोनियाॅ गाॅधी। बिना किसी सबूत के, राजीव गाॅधी ने बोर्फोस तोप में दलाली ली थी कहने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह का बयान यह सब अभिव्यक्ति की आजादी न होने के नमूने हैं क्या?
हाईर्कोट के एक फैसले से तिलमिला कर इंदीरा गांधी ने पूरे देश में आपात काल लगा दिया। लिखने पर पाबंदी, बोलने पर पाबंदी- अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी। इसको चाहकर भी मैं नही कह सकता कि उस वक्त अभिव्यक्ति की आजादी थी।
एक दूसरा भी रूप है पं. बगाल के मालदा में डेढ लाख मुसलमानों ने थाने को फूक दिया, हिन्दुओं के घरों को जला दिया, अभिव्यक्ति की आजादी होते हुए भी कुछ को छोड़कर पूरा मीडिया समाज इसे समाचार के काबिल नहीं समझा। फिर यही मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल कैसे उठाता है ?
कश्मीरी पंडितां के कश्मीर से निर्वासन के मामले में बोलने पर शायद मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है? इसीलिये वो नहीं बोलता?
आप सबकुछ बोलकर भी बोलते हैं कि इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है ? हुजूर आपके लिये तो लोकतंत्र भी मजाक है।
क्या कमाल की बात है, देश की माटी ने आपको पाला, इज्जत दी, सम्मान दिया, शोहरत दी , प्रतिष्ठा दिया और अब आप फरमाते हं यह देश रहने के लायक नहीं है।
आप सभी सुविधा भोगी व्यक्तियों से अनुरोध है कि हुजूर जरा देश के उन जवानों को भी याद कर लंे जो आज सियाचीन और कारगिल की चोटियों पर शून्य से नीचे खून जमा देने वाली सर्दी में देश की हिफाजत कर रहे हैं और देश के लिये कुर्बान हो रहे हंै।
हे राजनेताओं और सुविधाभोगी प्राणियों! क्या कभी इस तापमान में जिन्दगी गुजारी है। देश सेवा की ऐसी मिसाल सामने रखी है? आपको तो लोकतंत्र मजाक लगता है एवं आपको अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है ?
कमाल की बात है जो देश के रियल हीरो हंै, वो देश के लिये जान दे रहे हं। और जो परदे के हीरो हैं उन्हे देश रहने के काबिल नजर नहीं आ रहा है। उनके लिये लोकतंत्र मजाक है?
अभिव्यक्ति की आजादी कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। इस देश में किसी की हिम्मत नहीं है जो इस पर पाबंदी लगा सके। कुछ लोगांे ने प्रयास कर के देख लिया। सर्वोच्च न्यायालय के होते हुए इस तरह का जुमला देश और सर्वोच्च न्यायालय का अपमान है। अभिव्यक्ति की आजादी के जुमले की आड़ में अपनी सियासी रोटी सेकने वाले देश के विकास में अवरोधक हं।
करण जौहर, शाहरूख खान, आमिर खान, नसरुद्दीन कभी केजरीवाल से भी पूछ लिजिए कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी है या नहीं है? जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री को कहा था कि वो कायर और मनारोगी है और आजतक इस पर डटे हैं। घटना कल की नहीं अभी हाल की है। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो देश-भक्ति को एक तरफा धारणा बतलाते हैं और खुद की एकतरफा सोच को लेखन का बेहतरीन नमूना मानते हैं। कम से कम देश के नाम पर तो एक साथ खड़े हो जाइए।