varanasi-narendra-modi

व्यवस्था में, व्यवस्था से… व्यवस्था के लिए संघर्ष!

देश व प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में व्याप्त प्रशासनिक व राजनैतिक गंदगी पर प्रकाश डाल रहे हैं बरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश चन्द्र त्रिपाठी


पर्यटन, संस्कृति व पौराणिकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण काशी (वाराणसी) प्रधानमन्त्री भारत सरकार का संसदीय क्षेत्र भी हैं। शासन, प्रशासन, व्यवस्था व गुण़वत्ता की दृष्टि से जो पूरे देश में उच्चतम मानक व आदर्श स्थापित करने वाला क्षेत्र होना राष्ट्रीय स्तर पर जनमानस में अपेक्षित है।  

परन्तु राजनीति व भीड़ का तुष्टिकरण प्रशासन द्वारा किये जाने की नीति व परिपाटी पर वाराणसी की व्यवस्था को गम्भीरता से देखें तो विधिसम्मत प्राविधानों के अनुरूप विधि विरुद्ध कृत्यों व अपराधों के विरुद्ध कार्यवाही पुलिस प्रशासन व जिला प्रशासन तक सीमित रखी जाती है। कार्यवाही का एकमात्र मानक है प्रशासनिक अधिकारियों के स्थनान्तरण द्वारा आमजन में नये अधिकारी से कुछ अलग करने की आस लगाया जाना। व्यक्तिगत सम्पति सें ज्यादा सुरक्षित सार्वजनिक सम्पति का होना व्यवस्था की दृष्टि से यथार्थ है। क्योंकि सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा का दायित्व जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन का संयुक्त रूप से रहता है। परन्तु सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा का दायित्व निर्वहन करने वाले पुलिस प्रशासन व जिला प्रशासन द्वारा उसकी सुरक्षा व संरक्षा के प्रति पूर्णतः आँख मंूद ली जाती है। क्योंकि उनका उसके प्रति व्यक्तिगत रुप से कोई लगाव नहीं होता हैं। जिसकी परिणति यह है कि जिला प्रशासन के समस्त अधिकारियों की नाक के नीचे सर्किट हाउस में रातों रात मजार निर्मित करके विस्तृत भूभाग पर ही उ. प्र. सरकार की करोड़ों रुपए की सरकारी भूमि पर विशालकाय निर्माण कर लिया गया। अवैध निर्माण व अतिक्रमण को रोकते ही नहीं उसे हटाए जाने का आदेश भी महज कागजों तक सीमित रह गया है। भीड़ का विरोध तो दूर उसका तुष्टिकरण प्रशासन की नियत बन गई है।
अवैध मजार व अवैध निर्माण की आड़ में सुरक्षा व संरक्षा की दृष्टि से प्रतिदिन हजारों लोगों का आवागमन होता है परन्तु न तो किसी की सुरक्षा जाँच की जाती है न ही किसी प्रकार का सुरक्षा उपकरण ही स्थापित किया गया है। जिलाधिकारी परिसर व दीवानी न्यायालय वर्ष 2007 में भीषण आतंकी हमले का शिकार हो चुका है।  परन्तु एक दशक से ज्यादा का समय व्यतीत होने के उपरान्त भी सुरक्षा का प्रबन्ध करने में प्रशासन पूर्णतः असफल रहा है।

जनपद मेें प्रमुख मन्दिरों के सुरक्षा प्रबन्ध का पूरा पुख्ता इंतजाम है। सुरक्षा जाँच के उपरान्त ही श्रद्धालु मन्दिर परिसर मे प्रवेश कर सकता है। लेकिन प्रमुख मस्जिदांे में न तो एक भी सुरक्षाकर्मी नियुक्त है न ही सुरक्षा उपकरण लगाया गया है। मन्दिर व मस्जिद की सुरक्षा का परस्पर विरोधी मानक यह संदेह उत्पन करता है कि मन्दिर की सुरक्षा को जिससे खतरा है वह मस्जिद का ही अनुयायी तो नहीं है।

अपने पौराणिक स्थलों के पर्यटकीय महत्व को पीछे छोड़ता हुआ जनपद वाराणसी वर्तमान में जाम के महत्व के कारण अपनी ख्याति स्थापित कर रहा है। जाम का महत्वपूर्ण कारण अतिक्रमण व अतिक्रमण के विरुद्ध कार्यवाही में भी दोहरा मापदंड प्रशासन ने अपनाया है। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सड़कों पर अतिक्रमण के विरुद्ध कार्यवाही दशकों से नहीं की गयी है। दालमंडी में हजारों वर्गफिट भूमिगत अवैध निर्माण का खुलासा तात्कालीन एस एस पी आर. के. भारद्वाज द्वारा एक वर्ष पूर्व किया गया। जिसमें पुलिस प्रशासन व जिला प्रशासन द्वारा अवैध भूमिगत निर्माण के विरुद्ध समस्त कार्यवाही किसी समूह के संगठित विरोध के कारण रोक दी गई। काशी विश्वनाथ परिसर सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील है। जहाँ कुछ दिनों पूर्व काशी-विश्वनाथ कारीडोर योजना  के तहत एक चबूतरा तोड़ा जा रहा था। चबूतरा तोड़े जाने के दौरान विशेष समाज के कुछ लोग आये और उसे वक्फ बोर्ड का चबूतरा बताकर काम रोकने व दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की गई। कश्मीर की तर्ज पर नारे बाजी करते हुए कार्यवाही की मांग हुई। पुलिस-प्रशासन व जिला प्रशासन का हाथ पाँव आक्रामक भीड़ के समक्ष फूल जाता है। प्रशासन ने घुटनेे टेक  दिए तथा चबूतरे को पूनः निर्मित करा दिया गया। जबकी वो चबूतरा मन्दिर प्रशासन द्वारा क्रय किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सड़कों पर नमाज की अदायगी नहीं की जायेगी परन्तु प्रशासन विशेष समुदाय की भीड़ के समक्ष बेबस है। पूरी सड़क बन्द कर नमाज अदायगी कराते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जी उड़ायी गयी।

जनपद में गौतस्करी से बरामद पशुओं की सुपूर्दगी में भी पुलिस प्रशासन द्वारा भारी गोल-माल किया जाता है। एक बार पुलिस द्वारा कार्यवाई गौतस्कारों के विरुध कर दी गयी तो पशु तस्करी में बरामद पशु नेपथ्य में हो जाते हैं। जनपद में पशु बरामदगी व पशु सुपूर्दगीनामा के खेल का एक विस्तृत अध्याय अनावृत है।

विधि की व्यवस्था व नियत प्रावधानोें के उलंघन पर निरन्तर प्रयास प्रशासनिक स्तर पर किए जाने पर भी कार्यवाही मात्र लीपापोती व औपचारिकता तक चलती रहती है।
देश व बनारस में एक नई उम्मीद व पारदर्शिता व्यवस्था में अवश्यम्भावी है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *