भूख लगती है
राजेश मेहरा
280, पूरन कैम्प, ताजपुर पहाड़ी, जैतपुर रोड,
‘ऐ माँ कुछ खाने को दे न….ऐ माँ दे न…।‘ बाहर दरवाजे से आवाज आई।
रजाई में कांपती सुधा ने अपने पति कमल को कहा जो कि आज ठंड की वजह से काम पर जाने पर आना कानी कर रहे थे -‘सुनो ना, देखो कौन है बाहर?‘
‘सुधा तुम देखो ना मेरी तो रजाई में भी कपकपी छूट रही है।‘ कमल ने जवाब दिया।
लेकिन सुधा के कई बार कहने के बाद कमल रजाई से अपना टोपा और गर्म कपड़ों को संभालता हुआ निकला व उसने दरवाजा खोला।
दरवाजा खोलते ही कमल की जैसे झुरझुरी छूट गई हो।
एक गरीब परिवार था जो खाने को कुछ मांग रहा था। एक अपंग व्यक्ति जो बैसाखियों पर खड़ा था और एक औरत जिसकी गोद में एक छोटी
बच्ची थी। लेकिन उनके तन पर इस भरी सर्दी में भी गर्मी के ही कपड़े थे।
कमल ने तुरन्त किचन में से कुछ खाने को लाया और उनको दिया।
वो दुवाएं देकर आगे बढ़ने वाले थे कि कमल ने पूछा ‘आप लोगों को सर्दी नहीं लगती। इतने कम कपड़े पहने हुए हैं?‘ इस पर एक अपंग व्यक्ति ने जवाब दिया ‘नहीं साहब केवल भूख लगती है।‘ और वो आगे बढ़ गए।
कमल ने दरवाजा बंद किया और सोचने लगा कि ये इस सर्दी को भूलकर अपने लिए खाना लेने निकले हैं जबकि उसके आफिस में तो हीटर लगे हैं और उसके पास तो गर्म कपड़े भी हं तथा वह किसी तरह से अपंग भी नही है।
कमल थोड़ा मुस्कुराया और बोला ‘सुधा लंच बनाओ मैं आफिस जा रहा हूँ।‘
सुधा भी हैरान थी, अभी तो ठंड लग रही थी और अभी ऑफिस।
उधर कमल को अभी नई-नई ऊर्जा मिली थी।
‘ऐ माँ कुछ खाने को दे न….ऐ माँ दे न…।‘ बाहर दरवाजे से आवाज आई।