मौली
ऊब कर मौली ने न जाने क्या सोचा,
हरि नाम लेकर खौलते हुए जल से ही
स्नान कर लिया। यह कहना कठिन है कि
जीवन की पीड़ा अधिक थी या जलने की।
वह अपने बीमार कंधे पर घर का सारा भार
ढो रही है या अपनी जिन्दगी ढो रही है?
संध्या श्रीवास्तव
भगवान दास कालोनी, सिगरा, वाराणसी
आज सुबह जैसे ही सोकर उठी पता चला कि मौली जल गई है और अस्पताल मंे भर्ती है। उसकी हालत नाजुक है। हृदय उसे देखने को अधीर हो उठा कि किसी प्रकार उससे मिलने चली जाऊँ। जिन्हें अपने बचपन में हम गोद में खिलाते हैं वे बच्चे अगर बडे़ होकर सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं तो मन प्रफुल्लित हो जाता है। सुख-दुख पर अपना वश तो नहीं है परन्तु किसी को दुखी देख कर मन भारी हो जाता है।
खैर मेरा उससे पारिवारिक रिश्ता अच्छा न होने के कारण मैं उसे देखने तो नहीं जा सकी परन्तु हर किसी से उसकी कुशल क्षेम पूछती और मन ही मन अपने आराध्य से उसके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करती रहती।
उसे ठीक होने मे करीब छःमहीने लग गये। अब मौली के विषय में भी जरा सा बता दूँ, वह हमारी दूर के रिश्तेदार की लड़की है। बचपन से ही हमारे घर आती रहती थी। मुझे भाभी कहती थी मंै भी उसे भाभी का स्नेह देती थी। बडी़ प्यारी बच्ची थी। एक बार की घटना है कि जब वह तीन साल की थी तो मेरे घर अपनी माँ के साथ आई थी, घर मंे कुछ अन्य मेहमान भी थे, अतः मैं नाश्ता बनाने व देने में लगी थी। किसी प्लेट मंे मैं एक चम्मच देना भूल गई, वह बच्ची पास में ही खडी़ थी, मेरे मुहँ से निकला मौली जरा ये चम्मच दे आओ बेटा! मौली आँखें नीची करके चुपचाप खडी़ हो गई, मैंने कई बार कहा परन्तु कोई प्रतिक्रिया न होने पर स्वयं ही चम्मच देकर आ गई। जब मैं थोडा़ खाली हुई तो मैंने उसे अपने पास बुलाया और बडे़ प्यार से पूछा ‘मौली बेटी तुम चम्मच क्यों नहीं दी?’ वह फिर उसी मुद्रा मे चुपचाप खडी़ थी। मेरे बार-बार पूछने पर मुँह फुला कर बोली कि मम्मी ने कहा है कि किसी का कहा काम मत करना।
बाप रे! मंै तो जैसे आसमान से गिर पड़ी। छोटी सी बच्ची को ये कैसा गुरू ज्ञान माँ द्वारा दिया जा रहा है। बच्ची का भविष्य क्या होगा।
समय बीता मौली का विवाह हो गया और अपनी ससुराल चली गई। वहाँ जाकर वह कोई काम नहीं करती थी। उसे बचपन की शिक्षा अभी तक स्मरण थी। नई बहू को कुछ दिन तो सबने सम्भाला और वह विदा होकर मायके आ गई। लकिन ऐसा कब तक चलता। एक तो बडे़ बाप की बेटी; ऊपर से माँ की उत्तम शिक्षा। जब वह दूसरी बार गई तब कुछ क्लेश बढ़ा। उसने कहा कि वह एक बख्त का खाना ही बनाएगी।
अब देवरानी जेठानी मंे इतनी तनातनी रहने लगी कि सबका जीना मुहाल हो गया। एक गिलास पानी भी किसी को देना है तो जिसकी बारी थी वही दे। क्लेश काफी बढा़ तो उसे एक बार फिर मायके भेज दिया गया। उसके बाद कभी उसकी खबर नहीं ली गई।चाहे कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यांे ना हो बेटियांे को भला कब-तक रख पाया है। अब मौली की बुरी स्थिति थी। उसके लिए कहीं ठौर न थी। उसका अपराध क्या था उसने तो माँ की दी हुई शिक्षा का पूर्णतः पालन किया था। माँ तो शुरू से ही विचित्र महिला थी। उसे हमेशा से एक नौकरानी चाहिए थी। तब मौली उसके लिए आराम का साधन थी। माँ दिन रात बीमारी का बहाना बना कर पड़ी रहती थी। मौली बिचारी दिन भर दाई की तरह खटती रहती थी। अब उसके सारे कपडे़ पुराने हो चले थे। एक दिन माँ को समाज में अपना सम्मान बचाने का ख्याल आया, फिर क्या था उसने अपनी दो चार पुरानी साड़ियांे को निकाला और उसे देकर कहा कि जा कर सूट सिलवा ले। अब तो उसकी और चाँदी थी अपने नये कपडे़ सिलवाती और पुरानी साड़ियों को सधाने के लिए मौली स्थाई मिल गई थी। इस तरह मौली का तन भी ढकने लगा और मौली की सेवा भी मिलने लगी। एक बार पिता का अधिकारी वाला रोब औरों पर उबाल मारने लगा और उन्होंने बेटी को ससुराल पहुँचा दिया। परन्तु पिता का रोब कब-तक बेटी को सम्भाल पाता। दो महीने भी नहीं बीते कि फिर वापस मायापूरी आ गई।
उसकी छोटी बहन की शादी हो गई। वह अपने ससुराल चली गई। पति अच्छी नौकरी में था। वह भी वहाँ जाकर रच-बस गई। छोटे भाई की भी शादी आ गई। घर मंे काफी गहमा गहमी थी। जो आता मौली सबकी सेवा में लगी रहती। न बालों का सुख न कपडा़ की चिंता। वही पुरानी साड़ियों के बने सूट पहने दिनभर लगी रहती। माँ तो सुबह ही पार्लर जाकर सजधज कर आ जाती थी। अब हर कोई मौली को ही पुकारता। हलवाई कुछ माँग राहा है, ये देखो कोई आया है, नास्ता दे दो इत्यादि। पिता ने दामाद को धमकाया कि यदि विवाह में नहीं आये तो दहेज एक्ट मंे फसाऊँगा। दामाद भी बारात के दिन आया और दूसरे ही दिन चला गया। मौली फिर वहीं की वहीं रह गई। नई बहू आई। अति सुन्दरी और पढ़ी लिखी। उससे गृह कार्य का तो सवाल ही नहीं उठता था।
उसे भी पता लग गया था कि मौली के रहते चिन्ता की कोई बात नहीं हैं। जल्दी ही बहू ने नौकरी ज्वाइन कर ली। वाह री किस्मत, अब कोई मौली को सुबह ही उठा देता कि जल्दी नाश्ता बना दे, भाभी को जाना है। सुबह में उठने पर सबको खाना तैयार मिलता। एक दिन मौली की तबीयत खराब थी। वह सुबह न उठ सकी। मौली तो बुखार में तप रही थी परन्तु पूरा घर क्रोध में तप रहा था। आखिर मौली आराम करने की सोची कैसे। पास के एक झोलाछाप डाॅक्टर से दवाई आई। शाम तक पुनः वह अपनी नौकरी पर हाजिर हो गई। बहू के भी पौ बाहर थे। जिन्दगी का असली आनन्द तो उसी के भाग्य में लिखा था। शाम को पति के आते ही चाय नाश्ता करके दोनांे ही आनन्द मग्न घूमने निकल जाते। अब जो भी आता मौली को ही दोषी ठहराता। दामाद को नहीं। विवाह के सात साल बीत चुके थे। अब तो दामाद भी कानूनी कारवाई से परे था। सब बस यही सोचते कि यदि यह चली जायेगी तो घर का काम कैसे होगा।
किसी को उसकी चिन्ता न थी। माँ से भी कुछ होता तो था नहीं बहू तो उससे भी चतुर थी। खूब मीठा बोलती और पति के कान भरती। हर दिन एक नई प्रताड़ना का दिन होता। कभी पिता डांटते, कभी माँ तो कभी भाई चिल्लाकर घर को सर पर उठा लेता। ऊब कर मौली ने न जाने क्या सोचा यह तो प्रभु ही जान सकते हैं। उसने दो बड़े भगौनोें में पानी खौलाया। उसे एक बड़ी बाल्टी में भर लिया और हरि नाम लेकर खौलते हुए जल से ही स्नान कर लिया। यह कहना कठिन है कि जीवन की पीड़ा अधिक थी या जलने की। घण्टांे बाथरूम में पड़ी रही। खैर समाज को दिखाने के लिए ही सही उसे एक बड़े अस्पताल में भर्ती किया गया। छः महीने ठीक होने में और घाव भरने में लग गए । कुछ घाव अभी भरने बाकी हैं पर क्या कोई मन के घाव भर पाया है? उसकी किसी को चिन्ता नहीं हैं। अब वह अपने घायल शरीर से पुनः सबकी सेवा में लगी है। आखिर करने वाला ही कौन है। वह अपने बीमार कंधे पर घर का सारा भार ढो रही है या अपनी जिन्दगी ढो रही है यह एक प्रश्न चिन्ह है।