गजल
बेचारगी को उम्रभर…
डाॅ. नसीमा निशा, वाराणसी
मोहताज दाने दाने को होता रहा किसान।
बंजर जमीं में ख्वाब को बोता रहा किसान।।
सरकार हो किसी की धोखा ही है मिला,
बेचारगी को उम्रभर ढोता रहा किसान।
सूखा पड़ा कभी तो, कभी बाढ़ आ गयी,
बर्बाद इस तरह से भी होता रहा किसान।
बेटी हुई जवान तो सर उसका झुक गया,
बेबस हुआ गरीबी से रोता रहा किसान।
कर्जा हुआ तो मौत की आगोश में गया,
अपनी ही लाश शीश पे ढोता रहा किसान।
अच्छी फसल हुई तो मिले दाम कम उसे,
नीलाम इस तरह से भी होता रहा किसान।
कहते हैं अन्नदाता जिसे हम सभी ‘निशा‘,
सबको खिला के भूख में सोता रहा किसान।