Story: In limbo: Storyteller Dr. D.R. Vishwakarma Former District Development Officer

कहानी: अधर में: कहानीकार डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा


कहानी:


परियतपुर गांव के दक्षिण में एक चमटोल बस्ती है, जिसमें एक माध्यम वर्गीय परिवार पोस्टमैन कोलान का घर है।कच्चे व फूस के मकानों के मध्य कोलन का मकान उसकी सामाजिक आर्थिक स्थिति को स्वतःबयाँ कर रहा है।पोस्टमैनी करते कोलन को क़रीब डेढ़ दशक गुजर चुकें हैं।वह गाँव गाँव चिट्ठियाँ बाँटता,लोगों के मनीआर्डर के पैसे पहुँचाता,पत्र पत्रिकाएँ देता है,परन्तु वह अपने पद पर कन्फर्म नहीं था।कोलन स्थायी कर्मचारियों से भी अधिक कार्य संपादित करता था,जिससे उस जवार इलाक़े में उसका काफ़ी नाम हो चुका था,अपने कार्य के प्रति कोलन बहुत ईमानदार व वफ़ादार था।यही कारण था कि उसे लगभग हर घर के बच्चे पोस्ट मैन चाचा कहकर बुलाने लगे थे।कोलन को कुल चार संतानें थीं।०२ बेटियों की शादी कर चुका था।उसका एक बेटा गाँव से ०९ किमी दूर एक राजकीय इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट विज्ञान की पढ़ाई कर रहा था,वह प्रतिदिन १/२ घंटे साइकिल चलाकर स्कूल जाता और आता था।उसका छोटा बच्चा गाँव के ही नर्सरी स्कूल में पढ़ाई कर रहा थ।कोलन अपने बच्चों को शिक्षित बनाने हेतु अपनी सभी सुख सुविधाओं का परित्याग कर रखा था,उसकी एक मात्र अभिलाषा थी कि मेरे बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें।वह अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहा था। बड़ा बेटा प्रेम कुमार जब इंटरमीडियेट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ तो वह उसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय या काशी विद्या पीठ से बी.ए कराने की सोची। उस समय स्नातक डिग्री प्राप्त करना भी गर्व की बात हुआ करती थी।दोनों विश्वविद्यालयों के प्रवेश के परिणाम निकलने पर प्रेमकुमार का दाख़िला काशी विद्यापीठ में ही हो सका,क्योंकि बीएचयू की मेरिट हाई चली गई थी और प्रेमकुमार इण्टर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से ही पास किया था।

काशी विद्या पीठ में दाख़िले के पश्चात प्रेम कुमार को अर्थशास्त्र,हिन्दी व इतिहास का कॉम्बिनेशन मिला,जिसमें वह फ़ीस जमा कर किराए पर एक कमरा लेकर पिता के निर्देशानुसार पढ़ाई करने लगा।वह बी.ए प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ,कहते हैं कि “बाढ़े पूत पिता के धर्मे,खेती बाढ़े अपने कर्मे”।
प्रेमकुमार अब उसी विश्वविद्यालय से एम.ए में प्रवेश लेकर अपनी आग़े की भी पढ़ाई जारी रखते हुए मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली।दोस्तों के कहने और पिता जी के समझाने पर उसका मन अब शिक्षक बनने की सोच में डूब गया।वह मन ही मन सोचने लगा कि मैं भी प्रोफेसर बनकर सबको शिक्षित करूँगा।पिता जी ने कई बार उसे समझाया था कि बेटा,”शिक्षा ही व्यक्ति की तीसरी नेत्र होती है।”शिक्षा मानवीय अंतःकरण का ऐसा शृंगार है,जो भावनाएँ और सम्बेदनाएँ पैदा करती हैं,जिससे व्यक्ति का जीवन सत्यम शिवम् सुंदरम् से संपृक्त होता है।

समय को कौन रोक सका है,समय अबाध गति से आगे बढ़ता जा रहा था,इसी बीच कोलन को भी टेम्पररी सेवा से मुक्त कर दिया गया।उसकी सेवा अनुबंध पर ही थी।सेवा से पृथक होने का ग़म उसके जीवन में भूचाल सा पैदा कर दिया।वह अंदर अन्दर काफ़ी चिंतित रहने लगा था,परन्तु उसने हार ना मानते हुए अपनी एक परचून की दुकान खोल दी।ईश्वर की कृपा से उसकी दुकान दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी।उसकी साख डाकिये के रूप में अच्छी थी,अतः ज़ेवार के लोग उसकी दुकान से ही सौदा ख़रीदना पसंद करने लगे।उसकी दुकान चल निकली और अब उसका पारिवारिक खर्च दुकान से ही चलने लगा। इधर प्रेम कुमार के शिक्षा का खर्च भी बढ़ने लगा क्योंकि अब वह हायर एजुकेशन की पढ़ाई जो कर रहा था।

कोलन अब प्रेम कुमार के पढ़ाई का खर्च भी अपनी दुकान से देने लगाद्य
छुट्टियों में जब भी प्रेम कुमार घर आता, कोलन उसे यही शिक्षा देता कि, देखो बेटा ,,,,शिक्षा ही व्यक्ति की तीसरी नेत्र होती है।हर शिक्षित व्यक्ति अपने हित अहित की बातें सोचने लगता है, फलस्वरूप उसके जीवन से अंधकार के बादल छटने लगते हैं।शिक्षित व्यक्ति जो भी करता है सोच समझ कर कार्य करने लगता है। इसीकारण से कहते है कि” हाथ कंगन को आरसी क्या,पढ़े लिखो को फ़ारसी क्या”कोलन ने प्रेम कुमार को समझाया। उसने उसे शिक्षा के सन्दर्भ में यह भी समझाया कि, कोई किसी व्यक्ति की शिक्षा नहीं चुरा सकता। शिक्षा रूपी धन कोई भाई बाँट नहीं सकता, राजा उसे छीन नहीं सकता।चोर उसे चुरा नहीं सकता।यह हम सबके गुरुजी जो कक्षा ८ में पढ़ाते थे उन्होंने हम सबको बहुत पहले बताये थे।उन्होंने यह भी कहा था कि विद्या व्यक्ति की अनुपम कृति होती है, भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है,वह कामधेनु होती है।विरह में रति के समान होती है।विद्या कुल की महिमा, बिना रत्न का आभूषण, सत्कार का मंदिर भी होती है।,अतः मेरे बेटे तुम जितनी उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहते हो कर लो,मैं अभी जिंदा हूँ।

पिता की दी गई नसीहत को प्रेम कुमार अपने जीवन का मानो ध्येय ही बना डाला।वह बी एड करने के पश्चात वही शिक्षा संकाय से ही एमएड में दाख़िला ले लिया।प्रेम कुमार बीएड के बाद ही मास्टरी की नौकरी की योग्यताधारी बन गया था। प्रेम कुमार भेलूपुर,जहाँ रहता था वही पर दो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया जिससे उसे कुछ अपनी उच्च शिक्षा की पढ़ाई में आर्थिक मदद मिलने लगी।वह अब घर से कम पैसे लेता ,जिससे उसके पिता को अपार प्रसन्नता का अनुभव होने लगा और दुकान से होने वाली कमाई से कोलन घर की अन्य ज़रूरतों को पूरा करने लगा। वक़्त का चक्र तो चलता ही है उसे कौन रोक सका है सो प्रेम कुमार भी अब एमएड कर लिया।उसके भाग्य ने ऐसी अंगड़ाई ली कि प्रेम कुमार का प्रवेश पीएचडी हेतु शिक्षा संकाय के संकाय प्रमुख के अंडर में हो गया।उसके भाग्य ने प्रेम कुमार का साथ देना शुरू किया और उसने अपना रिसर्च पूर्ण कर वह डॉक्टर की उपाधि से विभूषित हो गया।

अब प्रेम कुमार अच्छी नौकरी ढूँढने लगा।संयोग से उसे राधा कृष्ण डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता पद की नौकरी भी प्राइवेट मिल गयी। उसके ख़ुशी का ठिकाना न रहा।अब वह अपनी गरिमा के अनुसार शिक्षा के सन्दर्भ में व्यापक अध्ययन करने लगा और कुछ समय के अंतराल के बाद वह अपने महाविद्यालय के शिक्षा संकाय का मशहूर प्रवक्ता बन गया।उसे कॉलेज में पढ़ाते पढ़ाते अब साढ़े चार साल गुजर गये। इधर एक दिवस उसके गाइड का फ़ोन घनघनाया फ़ोन से बात हुई।गाइड को विनय पूर्वक प्रणाम की औपचारिकता के बाद गाइड ने उसे जानकारी दी कि अमरावती विश्वविद्यालय में रिज़र्व केटेगरी में शिक्षा शास्त्र पढ़ाने का विज्ञापन प्रकाशित हुआ इसे तत्काल भर दो। प्रेम कुमार ने अपनी शैक्षिक उपलब्धियों की पिटारी से आवश्यक कागजात निकाले और उसकी फोटो प्रति मार्केट से कराकर आवेदन भेज दिया। समय के कुछ अंतराल के पश्चात यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार का बुलावा पत्र साक्षात्कार हेतु प्रेम कुमार को जब प्राप्त हुआ तो मानो उसका मन मयूर नाच उठा और उसे लगा कि मेरा चयन अवश्यम्भावी है। निर्धारित तिथि व समय पर प्रेम कुमार अमरावती विश्वविद्यालय में अपने सभी शैक्षिक उपलब्धियों के साथ साक्षात्कार हेतु पहुँच गया। नोटिस बोर्ड पर पाँच शार्टलिस्टेड कैंडिडेट्स के नाम चश्पा किए गए थे।

सर्वप्रथम रितेश कुमार(जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डॉक्ट्रेट की उपाधि से विभूषित था)को बुलाया गया,जब वह सिलेक्शन कमेटी कक्ष से बाहर निकला तो उसके बाद संतोष को कॉल करके बुलाया गया।अघोरी नाथ जो आन्ध्र विश्वविद्यालय से पी एचडी था से भी साक्षात्कार किया गया।इसके पश्चात सुमेरु राम जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शोध किया था का साक्षात्कार लिया गया।अन्त में प्रेम कुमार का नम्बर आता है।कमेटी के एक सदस्य ने डॉक्टर प्रेम कुमार के ऐकडेमिक परफॉरमेंस इण्डेक्स की तहक़ीक़ात करते हुए उसके द्वारा अटेंड किए गए सेमिनार, वर्कशॉप, टूल डेवलपमेंट,पेपर पब्लिकेशन के बाबत संतुष्टि के पश्चात् दूसरे सदस्यों से प्रश्न पूछने का अनुरोध किया।

एक सदस्य ने प्रेम कुमार से पूछा ,,,,,,कि अब शिक्षा शास्त्री कहते हैं कि “ बीववसे बवससमहम तम कमंक “इस पर आप के क्या विचार हैं।? प्रेम कुमार ने अपने तर्क देते हुए सवाल पूछने वाले सदस्य को संतुष्ट किया।पुनः दूसरे सदस्य ने प्रश्न दागते हुए कहा ,,,,,कि कौन सी जमंबीपदह पससे विज्ञान के पढ़ाने में उपयुक्त होती है। तभी एक तीसरे सदस्य ने प्रश्न पूछ दिया ,,,,,,कि यू जी सी का फुल फॉर्म क्या है? प्रेम कुमार ने अपने उत्तर में कहा कि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन,उस पर सदस्य ने प्रतिउत्तर दिया ,,,,,,नहीं।यूजीसी को यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन कहते हैं।इस पर प्रेम कुमार ने कहा वततल पत,,,,,सबसे अंतिम सदस्य वाइस चांसलर महोदय,जो सेलेक्शन कमेटी के चेयरमैन थे ने सवाल दागा कि आप किसके अंडर में शोध किया है? और आप की टॉपिक क्या थी? प्रेम कुमार ने बड़े ही शालीनता से उत्तर देते हुए उन्हें सन्तुष्ट किया।

वीसी साहब ने पुनः प्रश्न पूछा ,,,,,,प्रेम कुमार जी ,भारत में ट्रेनिंग के कुल कितने रीजनल कॉलेज हैं?प्रेम कुमार ने सभी के नाम बताये।अन्त में वी सी साहब ने पूछा,,,,, आर सीआई के बारे में बतायें?प्रेम कुमार ने जवाब दिया।रेहबिलिटेशन काउन्सल ऑफ़ इण्डिया।इसे हिन्दी में क्या कहते हैं? प्रेम कुमार,,,,, श्रीमान !इसे हिन्दी में “भारतीय पुनर्वास परिषद के नाम से जाना जाता है।” इसका मुख्यालय कहाँ है?वीसी साहब का प्रश्न हुआ।प्रेम कुमार ने जवाब दिया,सर !दिल्ली में,वी सी महोदय ने कहा,,,,,ळववक,डपेजमत चतमउनउंत!दवू लवन उंल हव. प्रेम कुमार की योग्यता में कोई कमी नहीं थी परन्तु उसकी डिजायरेबल क्वालिफिकेशन में ०२ माह की कमी अवश्य थी,बावजूद इसके उसका चयन इस लिये हुआ कि चेयरमैन, सेलेक्शन कमेटी उसके गाइड के पूर्व परिचित थे। कुछ समय के पश्चात् आन्ध्र यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार का पंजीकृत पत्र प्रेमकुमार को प्राप्त हुआ। जब लेटर को फाड़ कर पढ़ा,तो उसकी ख़ुशी सातवें आसमान पर जा पहुँची।कारण स्पष्ट था कि प्रेम कुमार का चयन असिस्टेंट प्रोफेसर पर हो गया था।वह यूनिवर्सिटी जाकर शिक्षा संकाय में विभागाध्यक्ष के सम्मुख उपस्थित होकर अपनी सेवा की जॉइनिंग देते हुए उनके निर्देशानुसार कक्षायें लेना शुरू कर दिया।प्रेम कुमार के पैर मानो ख़ुशी से थिरक रहे थे वह ख़ुशी से झूम रहा था।”क्यों न हो एक दशक के अनवरत परिश्रम के पश्चात अभावों में पलते हुए उसे नौकरी का स्वाद जो मिला था।”

आन्ध्र विश्वविद्यालय में विंटर वैकेशन की छुट्टियों में वह अपने घर अपनी पहली तनख़्वाह लेकर आया और अपने मित्रों,अहबाबों संगी साथियों से प्रसन्नतापूर्वक अपनी नौकरी की चर्चा कर डाली।समाज में अब उसकी धाक जम गयी,नात रिश्तेदारों में भी उसकी अहमियत बढ़ गयी। छुट्टियाँ बिताकर वह विश्वविद्यालय पहुँच कर अपनी सेवा दे ही रहा था कि संतोष जो उसके साथ इण्टरव्यू दिया था उसने प्रेम कुमार की नियुक्ति को चौलेंज करते हुए रजिस्ट्रार को एक शिकायती पत्र दिया कि प्रेम कुमार की वांछित योग्यता जो स्नातक कक्षाओं को पढ़ाने की है वह दो माह कम की है।अतः प्रेम कुमार का सेलेक्शन रद्द किया जाय। दरअसल प्रेम कुमार का पढ़ाने का अनुभव सिर्फ०४ वर्ष ०८ माह ही थाद्यविज्ञापन में ०५ वर्ष का अनुभव माँगा गया था। जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत संतोष को रजिस्ट्रार से इस बाबत सूचना भी मिल गई।प्रेम कुमार की नियुक्ति के सन्दर्भ में सन्तोष ने एक रजिस्टर्ड पत्र माननीय राज्यपाल को भेज दिया और उसमें शिकायत किया कि सेलेक्शन कमेटी के मनमानेपन के कारण विज्ञापित योग्यता के विपरीत प्रेमकुमार को ग़लत ढंग से चयन किया गया। अब क्या था प्रेम कुमार की नियुक्ति पर राज्यपाल की संस्तुति पर जाँच इनक्वायरी शुरू हो गई,जाँच कमेटी ने जाँच के उपरान्त श्री प्रेम कुमार की नियुक्ति को अवैध करार दिया।इधर प्रेम कुमार पर मानो विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा।उसकी परेशानियाँ बढ़ गयी।वह दिन रात बेचौन रहने लगा।चिंता में प्रेम कुमार का स्वास्थ्य ख़राब होने लगा।उसका हरा भरा शरीर मानो सुख कर काँटा हो चला।

एक दिन उसे रजिस्ट्रार से राज्यपाल महोदय के पत्र का हवाला देते हुए उसकी सेवाएँ समाप्त करने की नोटिस तामिला की गई।नोटिस को पढ़ते ही मानो उसे एक विद्युत का झटका सा लगा और वह ऐसे संकटापन्न स्थिति में अपने मित्र डॉक्टर की सलाह पर तत्काल कुछ पैसों की व्यवस्था कर हाईकोर्ट जा पहुँचा।एक अच्छे वकील से राय मशविरा कर उसने यूनिवर्सिटी प्रशासन के उस नोटिस को चौलेंज किया।तारीख़ लगी। उस पर बहस के दौरान प्रेम कुमार के वकील ने दलील दी कि माइलॉर्ड मेरे मुवक्किल का चयन बाक़ायदा सेलेक्शन कमेटी के द्वारा हुआ है जिसमें विश्वविद्यालय के कुलपति स्वयं चेयरमैन और अन्य विषय विशेषज्ञ थे। ०६ माह की सेवा भी हमारे मुवक्किल ने “ऐज़ ए असिस्टेंट लेक्चरर” पूर्ण कर लिया है।ऐसे में मेरे मुवक्किल को सेवा से पृथक करना माइलॉर्ड प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध होगा।दोनों पक्षों की दलीलों के मद्देनज़र जज ने फ़ैसला सुनाया,फ़िलहाल प्रेमकुमार को उनके पद पर अन्तिम फ़ैसले तक कार्य करने की इजाज़त दी जाती है। आदेश की कॉपी के साथ प्रेम कुमार वापस आकर उसकी प्रति रजिस्ट्रार यूनिवर्सिटी को प्राप्त करा देता है। अब उसका उत्साह और मनोबल दोनों क्षीण हो जाता है । अब मन में एक अज्ञात भय पाले अपनी सेवाएँ दे रहा है।


कहानीकार : डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा पूर्व जिला विकाश अधिकारी