कवि गोष्ठी में गूंजा अटल विहारी वाजपेयी की कविताओं में मानवीय चेतना का स्वर
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी। 17 जून 2024 उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ और उद्गार साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन द्वारा आयोजित एक दिवसीय कवि गोष्ठी में साहित्य और काव्य प्रेमियों का एकजुट होना अपने आप में एक अनूठा अनुभव रहा। इस कवि गोष्ठी का आयोजन उद्गार सभागार, स्याही प्रकाशन परिसर, सरसौली भोजूबीर, वाराणसी में किया गया। गोष्ठी का शुभारंभ सोमवार सायं 05.00 बजे हुआ, जिसमें शहर के प्रमुख साहित्यकारों और कवियों ने भाग लिया। गोष्ठी का मुख्य विषय था अटल विहारी वाजपेयी की कविताओं में मानवीय चेतना,जो वाजपेयी जी के काव्य और उनके मानवीय दृष्टिकोण पर केंद्रित था। इस अवसर पर पं. छतिश द्विवेदी कुण्ठित कंचन सिंह परिहार, ए.के. राय और स्वागत वक्ता अंचला पाण्डेय ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
पं. छतिश द्विवेदी कुण्ठित ने अपने वक्तव्य में कहा, अटल जी की कविताएँ सरल भाषा में होते हुए भी गहरी भावनाओं को व्यक्त करती हैं। गीत नहीं गाता हूँ शीर्षक उन्होंने लिखा है कि ‘‘बेनक़ाब चेहरे हैं, दाग़ बड़े गहरे हैं, टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ, अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ। वो अपने गीतों के मौन को मानवीय संवेदना से जाड़ते हुये विसंगतियों को सुधारने का संदेश लिखते थे। एक कविता वे और और आगे लिखते हैं कि ‘‘आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा, अंतिम जय का वज़्र बनाने, नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ।’’ यहाँ वे मानवता के उन्नति के लिये उम्मीद व तपस्चर्या की बात करते दिखते हैं। उनकी कविताओं में मानवीय चेतना और करुणा का अद्भुत संगम है, जो समाज को सोचने और समझने का एक नया दृष्टिकोण देती हैं। उनके शब्दों में ऐसा प्रभाव है कि वे पाठक के मन में गहरे उतर जाते हैं।
कंचन सिंह परिहार ने वाजपेयी जी की कविताओं में मानवीय भावनाओं के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा, अटल जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श किया है। उनकी कविताओं में देशप्रेम, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और मानवीय मूल्यों का उल्लेख मिलता है। उनकी रचनाओं में एक सरलता है, जो उन्हें सभी वर्गों के लोगों के बीच लोकप्रिय बनाती है। ए.के. राय ने वाजपेयी जी की कविताओं की राजनैतिक संदर्भों में महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, अटल जी की कविताएँ न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे राजनैतिक दृष्टिकोण से भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। उनकी कविताओं में एक गहरी सोच और समाज के प्रति एक जिम्मेदारी का भाव झलकता है।
कार्यक्रम के दौरान कई अन्य कवियों और साहित्यकारों ने भी अपनी कविताओं और विचारों से इस गोष्ठी को संजीवनी दी। सभी वक्ताओं ने वाजपेयी जी की कविताओं को अद्वितीय बताया और उनकी कविताओं से प्रेरणा लेने की बात कही। गोष्ठी में उपस्थित सभी श्रोताओं ने भी वक्ताओं के विचारों को ध्यानपूर्वक सुना और अटल जी की कविताओं की गहराई को समझा। यह गोष्ठी न केवल अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताओं को समझने का एक अवसर थी, बल्कि यह साहित्यिक प्रेमियों के लिए एक प्रेरणादायक सत्र भी साबित हुई। उक्त गोष्ठी में सुनील कुमार सेठ, अलियार प्रधान, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, सिद्धनाथ शर्मा, आनंद कृष्ण मासूम, डॉ प्रकाशानंद, अजफर बनारसी, रामबहाल सिंह बहाल कवि, नंदलाल राजभर नन्दू, डॉ अनिल सिन्हा बहुमुखी, ध्रुव सिंह चौहान, जी.एल. पटेल, कैलाश नाथ यादव सहित अनेक कविजन उपस्थित थे।
कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें संयोजक अशोक राय अज्ञान ने सभी वक्ताओं और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। इस गोष्ठी ने साबित कर दिया कि अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविताएँ भी समाज को प्रेरणा देने में सक्षम हैं और उनकी मानवीय चेतना सदैव जीवित रहेगी। उद्गार सभागार में आयोजित यह कार्यक्रम साहित्यिक जगत के लिए एक महत्वपूर्ण घटना रही, जो आने वाले समय में भी याद रखी जाएगी।