Black fungus in korana, such as scabies in the leprosy

कोराना में ‘ब्लैक फंगस’, जैसे की कोढ़ में खाज


अनिवार्य प्रश्न। कार्यालय संवाद


अभी कोरोना से भारत उबरा भी नहीं था कि एक और आफत आते दिख रही है। समाचार हैं कि अब म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण दूसरा खतरा बनने जा रहा है। मुम्बई के निकट ठाणे में इस संक्रमण की वजह से दो लोगों की मौत हो गई है। यह एक दुर्लभ किस्म का गंभीर फंगल संक्रमण है। इसे ‘ब्लैक फंगस’ के नाम से भी जाना जा रहा है। ठाणे महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे देश के अन्य राज्यों में भी इस फंगस के मामले सामने आने लगे हैं। सूत्रों के अनुसार सिर्फ महाराष्ट्र में ही ब्लैक फंगस के 2 हजार से ज्यादा मामले आए हैं। जिसमें दो मरीजों की मौत हो गई है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने 12मई को अपने वक्तब्य में बताया था कि राज्य में अभी म्यूकोरमायकोसिस के 2 हजार से अधिक मरीज होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि और कोविड-19 के मामले बढ़ने से यह संख्या और अधिक हो सकती है।
स्थानीय म्यूनिशिपल कार्पोरेशन की एक स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अश्विनी पाटिल ने बताया कि कल्याण स्थित डोंबिवली नगर निगम के अंतर्गत आने वाले अगल-अलग अस्पतालों में ठाणे ग्रामीण से 38 वर्षीय एक मरीज और डोंबिवली शहर से एक मरीज की कोरोना के इलाज के दौरान इस म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण से मौत हो गई थी। स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अश्विनी पाटिल ने आगे बताया कि छह अन्य मरीजों का म्यूकोरमायकोसिस का इलाज अभी किया जा रहा है। छ में से दो की हालत नाजुक है जिनका आईसीयू में भर्ती कर किया जा रहा है।

म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण का क्या हैं लक्षण और किन्हें है सबसे ज्यादा खतरा?
यह म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण या फंगल संक्रमण ज्यादातर उन्हीं मरीजों में देखा जा रहा है जो डायबिटीज से पहले से पीड़ित हैं। मधुमेह के मरीजों को अपना मधुमेह का स्तर नियंत्रण में रखना अति आवश्यक हो गया है। स्वास्थ्य के जानकार कहते हैं कि मंगस के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, आंखों में दर्द, नाक बंद या साइनस की समस्या के साथ ही देेखने की क्षमता पर आंशिक रूप से असर पड़ना पुमुख है।

क्या है म्यूकोरमाइकोसिस या फंगल संक्रमण
आईसीएमआर यानि भारतीय चिकित्सा विज्ञान परिषद के अनुसार म्यूकर माइकोसिस एक तरह का बेहद कम होने वाला फंगल संक्रमण है जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। यह संक्रमण मस्तिष्क, फेफड़े के साथ ही शरीर की त्वचा पर भी बहुत असर कर रहा है। खबर है कि इस म्यूकोरमाइकोसिस या फंगल संक्रमण ने कई लोगों के आंखों की रौशनी छीन ली है। नाक की हड्डी गल जाने की भी जानकारी कुछ मरीजो में आई है। समय पर इलाज न हो तो खतरा बड़ा हो सकता है।

पहले से बीमार लोगों को सबसे ज्याादा है जोखिम
उस इंफेक्शन का पहले से ही बीमार व कमजाोर मनुष्यों पर असर अधिक हो रहा है। ऐसे लोग जो कोरोना होने के पहले ही किसी दूसरी बीमारी से ग्रसित थे और उनका किसी तरह का इलाज चल रहा था। जिनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली पहले से ही किसी रक्षा प्रयत्न में कमजोर हुई रहती है तो उस परिस्थिति में वह इस नए संक्रमण को झेल नहीं पाती। पहले से ही बीमार व कमजाोर लोग जब अस्पताल में कोरोना के इलाज के लिए भर्ती होते हैं तो वहां के पर्यावरण में मौजूद फंगल उन्हें बहुत तेजी से संक्रमित करती है। जानकार चिकित्सकों का मानना है कि कोरोना के इलाज में उपयोग में लाए जाने वाले स्ट्राॅयड भी इस फंगल संक्रमण का प्रमुख कारण हो रहा है। चिकित्सक कहते हैं कि कोरोना से संक्रमित मरीजों का समय से पहिचान कर अगर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से उपचार किया जाय तो इस फंगल इंफेक्शन से बचा जा सकता है। एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में कोविड-19 के इलाज के लिये स्ट्राॅयड का इस्तेमाल करना ही पडेगा, अगर डाक्टर अन्य दवाइयों के साथ स्ट्राॅयड को कम मात्रा में चलाएं तो भी म्यूकोरमाइकोसिस या फंगल संक्रमण को कुछ कम किया जा सकता है।

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