जीवन पथ आलोकित कर दो।
कविता:
शब्द प्रार्थना के ध्वनियों संग,
हिय तंत्री अभिमंत्रित कर दो।
सर्जन ज्ञान की दीप शिखा को,
ज्योति से अपने ज्योतित कर दो।
सदवृत्तियाँ सदा मन,उर उपजे,
कलुष दुराचरण खंडित कर दो।
काया के अभ्यंतर में ,जननी,
दुःख पीड़ा परिसीमित कर दो।
शुचिता पूर्ण मनन चिंतन हो,
जीवन पथ आलोकित कर दो।
ज्ञान मान सम्मान को देकर,
मन के नूपुर झंकृत कर दो।
जीवन में उत्साह नवल भर,
जग उपवन को सुरभित कर दो।
मेरे ध्यान में आकर माँ तुम,
कुंठित मन आनंदित कर दो।
सदपथ के अनुगामी हो सब
जीवन सबक़ा रोशन कर दो।
रचनाकार डाक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुन्दरपुर वाराणसी