'Siya' - A heartwarming story of a girl fighting a corrupt system for justice

‘सिया’ – इंसाफ के लिए एक भ्रष्ट सिस्टम से लड़ने वाली लड़की की दिल दहला देने वाली कहानी


मंचदूत डेस्क।


‘सिया’ एक असरदार फिल्म है जो हमारी सामाजिक न्याय प्रणाली को प्रतिबिंबित करती है। ये उन लोगों के मानवीय पक्ष को चित्रित करने का प्रयास है जिनके साथ अन्याय हुआ है। ये बातें कहीं फिल्म ‘सिया’ के निर्देशक मनीष मूंदड़ा ने, जो कि इंसाफ के लिए एक ख़राब पितृसत्तात्मक व्यवस्था से लड़ने वाली एक लड़की की दिल दहला देने वाली कहानी है। आंखें देखी, मसान और न्यूटन जैसी कुछ बेहतरीन फिल्मों का निर्माण करने वाले मनीष मूंदड़ा पहली बार ‘सिया’ के जरिए बतौर निर्देशक पदार्पण कर रहे हैं।

गोवा में 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव से इतर पीआईबी द्वारा आयोजित किए जा रहे ‘टेबल टॉक्स’ सत्र में मीडिया और इस महोत्सव के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए मनीष मूंदड़ा ने कहा कि ये फिल्म उस दर्द को समझने की एक ईमानदार कोशिश है जिससे पीड़ितों को तब गुजरना पड़ता है जब वे न्याय की तलाश में पूरी प्रक्रिया से दो-चार होते हैं। उन्होंने कहा, “हम सभी को भी पीड़ितों के उस दर्द और पीड़ा को महसूस करना चाहिए ताकि बदले में हमें जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद मिल सके।”

‘सिया’ आत्मा को झकझोर देने वाली फिल्म है, जो दुष्कर्म पीड़िताओं की दहशत और दर्द को बयां करती है। यह फिल्‍म वास्तविक जीवन की घटना से प्रेरित है। उत्तर भारत की एक ग्रामीण युवती यौन उत्पीड़न के बाद इंसाफ की लड़ाई लड़ने का फैसला करती है। वह न्याय की खातिर लड़ने का साहस जुटाती है और शक्तिशाली लोगों के हाथों की कठपुतली बन चुकी दोषपूर्ण न्याय प्रणाली के खिलाफ मुहिम शुरू करती है।

जिस तरह ‘सिया’ वास्तविक जीवन की घटना पर आधारित है, ऐसे में फिल्म निर्माण के लिए विषय की पसंद के बारे में पूछे जाने पर मनीष मूंदड़ा ने कहा, “मुझे फिल्में बनाना बहुत अच्‍छा लगता है। मैं कमर्शियल ब्लॉकबस्टर नहीं बनाना चाहता। मैं उन विषयों को चुनता हूं जो मेरे दिल और आत्मा को छूते हैं। अनंत काल तक टिके रहने के लिए कहानी को दर्शकों की आत्मा को झकझोरना चाहिए।”

हमारे समाज में जहां पीडि़तों को मुश्किल हालात में धकेल दिया जाता है, वहां कानूनी लड़ाई लड़ने के बारे में मौजूद सबसे बड़ी दुविधा की चर्चा करते हुए मनीष ने कहा कि लोगों में पहला कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती। यदि वे किसी तरह कदम उठाने का फैसला कर भी लेते हैं, तो उन्‍हें अच्‍छी तरह से पता होता है कि यह अकल्पनीय रूप से पीड़ादायी होगा, जिसके लिए बहुत साहस की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा, “यह हमारी सामाजिक न्याय प्रणाली को दर्शाता है।” उन्‍होंने कहा कि ऐसे मामलों के संबंध में हमारी चिंता ज्‍यादा समय तक नहीं रहती। हम उन्‍हें फौरन भुला देते हैं और पीडि़तों को किसी तरह की तसल्‍ली देने की बजाए आगे बढ़ जाते हैं।

नकारात्मकता के स्‍थान पर समाज में मौजूद विभिन्न सकारात्मक पहलुओं को दर्शाने के बारे में पूछे जाने पर, मनीष मूंदड़ा ने कहा कि ‘सिया’ जैसी फिल्म के माध्‍यम से समाज की सच्चाई को प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है। उन्‍होंने कहा, “यह केवल उदासी भर नहीं है। हमारी फिल्म भावपूर्ण है। यह सच्चाई के बारे में है और सच्चाई में दर्द, खुशी, आशा और निराशा है।” प्रशंसा और आलोचना हमेशा होती है, लेकिन सकारात्मकता को प्रतिबिंबित करना और फिल्मों में समाज की सच्चाई दिखाना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह फिल्म बनाने की मेरी शैली है। उन्‍होंने कहा, “यथार्थवादी फिल्में हमेशा लंबी अवधि तक रहती है और यह लोगों के मानस को झकझोर देगी।”

पूरे भारत की फिल्में बनाने के अपने जुनून को साझा करते हुए, मनीष मूंदड़ा ने एक अखिल भारतीय फिल्म निर्माता बनने की अपनी इच्छा व्यक्त की और कहा, “जब कोई मेरी सभी फिल्मों को समय के साथ देखता है, तो उसे सही मायनों में भारत का पता चलता है।”

फिल्म निर्माता के रूप में अपने 8 साल के सफर और अब निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म के बारे में बताते हुए, मनीष मूंदड़ा ने कहा कि एक इंसान के रूप में उन्होंने हमेशा विभिन्न चुनौतियों का सामना किया है। उन्होंने कहा, “निर्देशन पक्ष की अपनी चुनौतियां और दबाव है जो मुझे फिल्म निर्माण में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।”

यह फिल्म 6 अंतरराष्ट्रीय और भारतीय फिक्शन फीचर डेब्यू के संग्रह के साथ एक निर्देशक श्रेणी की सर्वश्रेष्ठ डेब्यू फीचर फिल्म के तहत प्रतिस्पर्धा कर रही है, जो इस बात का उदाहरण है कि अगली पीढ़ी के फिल्म निर्माता ऑनस्क्रीन क्या देख रहे हैं। इफ्फी 53 में भारतीय पैनोरमा के फीचर फिल्म वर्ग के तहत ‘सिया’ की स्क्रीनिंग की गई। अभिनेत्री पूजा पांडे और विनीत कुमार सिंह ने फिल्म में मुख्य किरदार सीता और महेंद्र की भूमिका निभाई है।

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फिल्म के बारे में

निर्देशक: मनीष मूंदड़ा

निर्माता: दृश्यम फिल्म्स

पटकथा: मनीष मूंदड़ा

छायाकार: रफ़ी महमूद और सुभ्रांशु कुमार दास

संपादक : मनेंद्र सिंह लोधी

अभिनय : पूजा पांडे, विनीत कुमार सिंह

2022 | हिंदी | रंगीन | 108 मि.

 

सारांश :

यह फिल्म जीवन की एक वास्तविक घटना से प्रेरित एक नाटक है, जहां उत्तर भारत के एक गांव की एक युवा लड़की, एक शक्तिशाली विधान सभा सदस्य द्वारा योन उत्पीड़न के बाद न्याय के लिए लड़ने का फैसला करती है, जिससे देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत होती है।

निर्देशक: मनीष मूंदड़ा एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म-निर्माता हैं और आंखों देखी (2014), मसान (2015), धनक (2016), न्यूटन (2017), राम प्रसाद की तेरहवीं (2021) और सिया (2022) जैसी फिल्मों के निर्देशक हैं।

निर्माता: दृश्यम फिल्म्स, मनीष मूंदड़ा की फिल्म प्रोडक्शन स्टूडियो, जिसने न्यूटन (2017) जैसी पुरस्कार विजेता फिल्मों का निर्माण किया है, यह फिल्म 2018 में अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुनी गई थी।