आर्थिक समीक्षा में खाद्य महंगाई में और भी कमी आने पर समग्र महंगाई के भी घटने की जताई गई है आशा
अनिवार्य प्रश्न । संवाद
वर्ष 2020-21 के दौरान खुदरा और थोक महंगाई की दिशा एक-दूसरे के विपरीत रही है, मुख्य सीपीआई-संयुक्त महंगाई में वृद्धि का रुख और डब्ल्यूपीआई महंगाई में कमी का अब भी जारी दौर
समीक्षा में सीपीआई के आधार वर्ष को संशोधित करने का दिया गया है सुझाव
समीक्षा में ई-कॉमर्स लेन-देन को दर्ज करने वाले मूल्य डेटा को मूल्य सूचकांकों में शामिल करने की की गई है सिफारिश
नई दिल्ली। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते हुए कहा कि खाद्य महंगाई में और भी कमी आने पर समग्र महंगाई के भी घटने की आशा है। समीक्षा में कहा गया है कि वस्तुओं की आपूर्ति पर लगी पाबंदियों में ढील देने से दिसम्बर 2020 में महंगाई थोड़ी कम हो गई थी। समीक्षा में कहा गया है कि इन पाबंदियों में आगे भी ढील दिए जाने की आशा है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2020-21 के दौरान खुदरा और थोक महंगाई दर की दिशा एक-दूसरे के विपरीत रही है। पिछले साल की तुलना में मुख्य सीपीआई-संयुक्त (सी) महंगाई में वृद्धि का रुख देखा जा रहा है, जबकि डब्ल्यूपीआई महंगाई में अब भी कमी का दौर जारी है। कुल मिलाकर, कोविड-19 के कारण लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान और इसके बाद भी वस्तुओं की आपूर्ति में आए व्यवधान की वजह से मुख्य सीपीआई महंगाई उच्च स्तर पर बनी रही। मुख्यत: खाद्य महंगाई की वजह से ही यह स्थिति देखने को मिली जो वर्ष 2020-21 (अप्रैल-दिसम्बर) के दौरान बढ़कर 9.1 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई। कोविड-19 से उत्पन्न व्यवधानों की वजह से कीमतों में कुल मिलाकर वृद्धि का रुख देखा जा रहा है जिसके कारण अप्रैल 2020 से ही महंगाई निरंतर बढ़ रही है। वहीं, दूसरी ओर आधार वर्ष से संबंधित अनुकूल प्रभाव इसमें थोड़ी नरमी का रुख देखा जाता रहा है। ग्रामीण एवं शहरी सीपीआई महंगाई में अंतर वर्ष 2019 में काफी बढ़ जाने के बाद नवम्बर 2019 से घटने लगा जो वर्ष 2020 में भी निरंतर जारी है। वर्ष 2020-21 (जून-दिसम्बर) में विभिन्न राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में महंगाई दर 3.2 प्रतिशत से लेकर 11 प्रतिशत तक आंकी गई, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह (-) 0.3 प्रतिशत से लेकर 7.6 प्रतिशत दर्ज की गई थी। ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही थालियों की कीमतों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई थी, जबकि अप्रैल-नवम्बर के दौरान इसमें तेज वृद्धि दर्ज की गई थी और दिसम्बर 2020 के दौरान इनमें फिर से कमी का रुख देखने को मिला। सीपीआई-सी में कमी होने के परिणामस्वरूप आने वाले समय में इन थालियों की कीमतें भी घट जाने की आशा है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विशेषकर कोविड-19 महामारी के कारण वस्तुओं की आपूर्ति में बाधाएं आने से खुदरा महंगाई पर असर पड़ा। महंगाई में दर्ज की गई कुल बढ़ोतरी में खाद्य पदार्थों की मूल्य वृद्धि का काफी अधिक योगदान रहा। खाद्य महंगाई पहले ही दिसम्बर माह में घट चुकी है जिससे समग्र महंगाई दबाव भी कम हो गया है। वहीं, दूसरी ओर वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल मांग बढ़ने से डब्ल्यूपीआई महंगाई के धनात्मक ही रहने की संभावना है। निर्माताओं की मूल्य निर्धारण क्षमता बढ़ने से भी यह स्थिति देखने को मिल सकती है। समीक्षा में कहा गया है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं जिनमें प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, प्याज पर स्टॉक सीमा लगाना, दालों के आयात पर लगी पाबंदियों में ढील देना, इत्यादि शामिल हैं।
कीमतों में हो रही निरंतर बढ़ोतरी को नियंत्रण में रखने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों का उल्लेख करते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) योजना को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जा रहा है। इसके साथ ही यह योजना दालों की कीमतों को स्थिर रखने के अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल रही है। इस योजना के तहत सभी हितधारकों को उल्लेखनीय लाभ की पेशकश की गई। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि ऐसे सभी मंत्रालय/विभाग केन्द्रीय बफर स्टॉक में उपलब्ध दालों का उपयोग करेंगे, जो पोषण तत्वों की उपलब्धता वाली योजनाएं चला रहे हैं अथवा खाद्य/केटरिंग/आतिथ्य सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। दालों का बफर स्टॉक बनाने से दालों की कीमतों को कम करने में मदद मिली है और दालों की कम कीमतों के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को अच्छी-खासी बचत हुई है। राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को भी अपने यहां राज्य स्तरीय पीएसएफ बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। पीएसएफ संबंधी बफर से प्राप्त दालों का भी उपयोग पीएमजीकेएवाई और एएनबी पैकेज के तहत नि:शुल्क आपूर्ति के लिए किया जा रहा है। भारत सरकार पीएसएफ के तहत प्याज के बफर स्टॉक को बनाए रखती है, ताकि कीमतों में स्थिरता लाने संबंधी उपयुक्त बाजार उपाय किए जा सकें।
आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि कीमतों में वृद्धि के रुख को नियंत्रण में रखने के लिए अल्पकालिक उपाय करने के साथ-साथ हमें मध्यमकालिक और दीर्घकालिक उपायों में भी निवेश करने की आवश्यकता है, जिनमें उत्पादन केन्द्रों में विकेन्द्रित शीत भंडारण सुविधाएं स्थापित करना भी शामिल है। भंडार गृहों (ऑपरेशन ग्रीन्स पोर्टल) में रखी गई प्याज से जुड़े नुकसान को कम करने के लिए बेहतर भंडारण क्षमता वाली किस्मों के साथ-साथ उर्वरकों का न्यायसंगत उपयोग, समय पर सिंचाई और फसल कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी का उपयोग करना भी आवश्यक है। प्याज के बफर स्टॉक से जुड़ी नीति की समीक्षा करना भी अत्यावश्यक है। इसके साथ ही इसके साथ ही ऐसी प्रणाली विकसित करने की जरूरत है जिससे कि कम बर्बादी हो, कारगर ढंग से प्रबंधन हो और इसे समय पर जारी करना सुनिश्चित किया जा सके।
आर्थिक समीक्षा में यह सलाह दी गई है कि आयात नीति में निरंतरता पर भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है। खाद्य तेलों के आयात पर ज्यादा निर्भरता से आयात मूल्यों के साथ-साथ आयात में भी भारी उतार-चढ़ाव का खतरा रहता है, जिससे घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के उत्पादन और मूल्यों पर असर पड़ता है। इसके अलावा, दालों और खाद्य तेलों की आयात नीति में बार-बार बदलाव होने से किसानों/उत्पादकों में भ्रम बढ़ता है और आयात में देरी होती है। समीक्षा में कहा गया है कि मुख्यत: सीपीआई-सी महंगाई पर फोकस करना चार कारणों से उपयुक्त नहीं है। पहला, सीपीआई-सी में अहम योगदान करने वाली खाद्य महंगाई मुख्यत: आपूर्ति में व्यवधान के कारण ही बढ़ती है। दूसरा, मौद्रिक नीति के मुख्य लक्ष्य में अहम भूमिका को देखते हुए सीपीआई-सी में बदलाव होने से महंगाई का अनुमान बदल जाता है। आपूर्ति में व्यवधान के कारण सीपीआई-सी में महंगाई होने के बावजूद ऐसा देखने को मिलता है। इस वजह से खाद्य महंगाई भी बढ़ती है। तीसरा, खाद्य महंगाई के कई अवयव अस्थायी होते हैं और खाद्य एवं पेय पदार्थ समूह के अंतर्गत व्यापक बदलाव देखने को मिलते हैं। चौथा और अंतिम, सूचकांक में खाद्य पदार्थों को अपेक्षाकृत ज्यादा भारांक देने के कारण खाद्य महंगाई निरंतर समग्र सीपीआई-सी महंगाई को बढ़ाती रही है। वैसे तो सीपीआई के आधार वर्ष 2011-12 के दशक में लोगों के खान-पान की आदतों में व्यापक बदलाव देखने को मिले हैं, लेकिन इसका असर अब तक सूचकांक में देखने को नहीं मिला है। अत: सीपीआई के आधार वर्ष में संशोधन करने की जरूरत है, ताकि उस माप संबंधी दोष को दूर किया जा सके जो खान-पान की आदतों में बदलाव के कारण उत्पन्न हो सकते हैं। इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए मुख्य महंगाई पर ज्यादा फोकस करना अत्यंत आवश्यक है।
आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि ई-कॉमर्स संबंधी लेन-देन में उल्लेखनीय वृद्धि को ध्यान में रखते हुए ई-कॉमर्स लेन-देन को दर्ज करने वाले मूल्य डेटा के नए स्रोतों को अवश्य ही मूल्य सूचकांकों में शामिल किया जाना चाहिए। वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने कोविड-19 के इलाज में कारगर दवाओं को किफायती मूल्यों पर उपलब्ध कराने के लिए कई कदम उठाए और इसके साथ ही आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता के लिए भी कई उपाय किए जिनमें प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, प्याज पर स्टॉक सीमा लगाना, दालों के आयात पर लगी पाबंदियों में ढील देना, इत्यादि शामिल हैं। हालांकि, आवश्यक खाद्य पदार्थों की आयात नीति में निरंतरता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है क्योंकि दालों और खाद्य तेलों की आयात नीति में बार-बार बदलाव होने से भ्रम बढ़ता है और इसके साथ ही देरी भी होती है। सब्जियों में महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए संबंधित बफर स्टॉक नीतियों की समीक्षा करना आवश्यक है। आपूर्ति में होने वाली बाधाओं, जिससे सब्जियों में सीजनल महंगाई बढ़ने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों में महंगाई, सीपीआई-सी और महंगाई अनुमान भी बढ़ जाता है, से मुक्ति पाने के लिए एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की जरूरत है जिससे कि कम बर्बादी हो और स्टॉक को समय पर जारी करना सुनिश्चित किया जा सके।