प्रकृति कुछ तो कहती है:
कविता:
कब से करती तुम्हे इशारा
कल कल करती गंग की धारा
क्यूं दूषित मुझको करते हो?
मैंने ही तो तुझको तारा।
तेरे पूर्वज जब तड़प रहे थे
मोक्ष की खोज में भटक रहे थे,
भागीरथ ने मुझे पुकारा,
धरा पे आ कर हमने तारा।
अतुल वेग से कल कल करती
गोमुख से जब धरा पर आई
वेग प्रचंड था सब घबराया
शिव बाबा की जटा समाई।
हर गॅंगे हर हर हर गॅंगे
गूॅंज उठा जब नाद से धरती।
मोक्ष दायिनी पाप विमोचिनी
तुमसे तरता ये संसारा।
धरा पर आ के सबको तारा।
ध्यान दान स्नान की महिमा
मॉं गॅंगा की सबसे भारी।
धुल डाली मॉं पाप सभी का
भव सागर से सबको तारी।
कलप कलप कर कहती गंगा
सुन ले मेरी पुकार।
अगर ना समझोगे तुम मानव
होगी तेरी हार।
क्या होगा फ़िर पछताने से
जाएगा तू हार।
रचनाकार: मणि बेन द्विवेदी