Anivarya Prashna Web Bainer New 2025
Buddhists' sit-in in Bihar: Analysis of the effects of the movement

बिहार में बुद्धिष्टों का धरना: आंदोलन के प्रभावों का विश्लेषण


अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।


पटना/बोधगया। बिहार, जो बौद्ध धर्म का जन्मस्थली माना जाता है, इन दिनों बुद्धिष्टों के एक बड़े आंदोलन का केंद्र बन गया है। राज्य के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से बोधगया, नालंदा और पटना में हजारों बौद्ध भिक्षु, अनुयायी और बुद्धिजीवी अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा, मठों की भूमि पर अवैध कब्जों, प्रशासनिक हस्तक्षेप और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ी समस्याओं को लेकर शांतिपूर्ण धरने पर बैठे हैं।
धरना शांतिपूर्ण होने के बावजूद इसका प्रभाव सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि देश और विदेश के बौद्ध संगठनों में भी इस मुद्दे को लेकर चिंता जताई जा रही है। यह आंदोलन न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है।

बौद्ध समुदाय के अनुयायी मुख्य रूप से बोधगया, नालंदा और पटना में धरना दे रहे हैं। इनमें से बोधगया का महाबोधि मंदिर आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया है, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
धरना इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि बौद्ध धर्म के अनुयायी राज्य सरकार पर अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण में लापरवाही बरतने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि बिहार सरकार अन्य धार्मिक स्थलों को प्राथमिकता देती है, लेकिन बौद्ध स्थलों की उपेक्षा कर रही है। बुद्धिष्टों के मुताबिक, महाबोधि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था में ढिलाई, बौद्ध मठों पर अवैध कब्जे, और धार्मिक पर्यटन के नाम पर सरकारी नियंत्रण इस आंदोलन की प्रमुख वजहें हैं।

धरने पर बैठे बुद्धिष्टों ने सरकार से अपनी प्रमुख मांगों को तत्काल पूरा करने की अपील की है: फिलहाल महाबोधि मंदिर का प्रशासन बिहार सरकार के अधीन है, लेकिन बुद्धिष्टों की मांग है कि इसका संपूर्ण प्रशासन बौद्ध भिक्षुओं और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिषद को सौंपा जाए। गया, नालंदा, वैशाली और पटना समेत बिहार के कई जिलों में बौद्ध मठों की हजारों एकड़ भूमि पर अवैध कब्जा हो चुका है। बुद्धिष्टों की मांग है कि सरकार इस पर तुरंत कार्रवाई करे और बौद्ध स्थलों को अतिक्रमण मुक्त कराए। बौद्ध भिक्षुओं और संगठनों का मानना है कि बिहार में बौद्ध स्थलों को विशेष सुरक्षा बल (Buddhist Security Force) की आवश्यकता है, ताकि उनकी धार्मिक संपत्तियों की रक्षा हो सके और भविष्य में किसी भी तरह के हमले को रोका जा सके। हालांकि नालंदा विश्वविद्यालय को बौद्ध धर्म से जोड़ा जाता है, लेकिन यह अब एक आधुनिक शिक्षण संस्थान बन चुका है। बुद्धिष्टों की मांग है कि बिहार में एक विशेष बौद्ध विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए, जहां बौद्ध धर्म, दर्शन और इतिहास की पढ़ाई हो। बुद्धिष्टों ने बिहार सरकार और केंद्र सरकार से मांग की है कि हर साल एक अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित किया जाए, जिससे दुनिया भर के बौद्ध विद्वानों और अनुयायियों को बिहार के साथ जोड़ा जा सके।

बिहार सरकार ने आंदोलनकारियों से बातचीत करने की कोशिश की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि महाबोधि मंदिर की सुरक्षा को और मजबूत किया जाएगा, लेकिन प्रशासनिक नियंत्रण सरकार के पास ही रहेगा।
भारत सरकार ने बुद्धिष्टों की कुछ मांगों को सही माना है और कहा है कि बिहार में बौद्ध स्थलों की सुरक्षा के लिए नए कदम उठाए जाएंगे। लेकिन महाबोधि मंदिर का प्रशासन बदलने को लेकर कोई सहमति नहीं बनी है। अब तक धरना पूरी तरह शांतिपूर्ण है और पुलिस ने किसी भी तरह की बल प्रयोग नहीं किया है। प्रशासनिक अधिकारी बुद्धिष्टों के प्रतिनिधियों से संवाद कर समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
राज्य सरकार पर दबाव: विपक्षी दलों ने बिहार सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बौद्ध समुदाय की मांगों की अनदेखी कर रही है। राष्ट्रीय राजनीति में बहस: कई बौद्ध अनुयायियों ने प्रधानमंत्री से सीधे हस्तक्षेप की मांग की है। श्रीलंका, थाईलैंड और जापान के बौद्ध संगठनों ने भारत सरकार से बौद्ध स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र के बौद्ध संगठनों ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है।

अगर यह आंदोलन लंबा खिंचता है, तो इससे बिहार में बौद्ध धार्मिक पर्यटन को नुकसान हो सकता है। बिहार सरकार के लिए यह आंदोलन राजनीतिक संकट भी पैदा कर सकता है, क्योंकि बिहार के पर्यटन उद्योग में बौद्ध स्थलों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

अगर मांगें पूरी नहीं की जातीं, तो बौद्ध संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे को उठाने की योजना बना रहे हैं। बिहार में बुद्धिष्टों का यह आंदोलन राज्य और केंद्र सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। इस धरने से बौद्ध धर्म स्थलों की सुरक्षा, प्रशासनिक अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े बड़े सवाल उठे हैं।

बिहार सरकार और केंद्र सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वे बौद्ध समुदाय की मांगों पर गंभीरता से विचार करें और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और प्रशासनिक पारदर्शिता को लेकर ठोस कदम उठाएं। अन्यथा, यह आंदोलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है और बिहार के धार्मिक पर्यटन पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है।


 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *