राज्यपाल की संस्कृत दिवस पर शुभकामनाएं : जयपुर
अनिवार्य प्रश्न । संवाद
जयपुर। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने प्रदेशवासियों को 2 अगस्त श्रावणी पूर्णिमा व संस्कृत दिवस पर बधाई एवं शुभकामनायें दी हैं। राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा है कि ‘‘ राजस्थान की सांस्कृतिक परम्परायें अपने आप में अनूठी व प्रेरक हैं। उत्सवप्रियता के साथ कर्तव्यनिष्ठा का भाव हमारे स्वभाव में है। श्रावणी के साथ विद्यारम्भ एवं रक्षाबन्धन के पावनपर्व पर संस्कृतदिवस का आयोजन संस्कृत भाषा के प्रति हमारे दायित्वबोध का सहज परिचायक है।
राज्यपाल ने कहा कि ‘‘ संस्कृत भाषा एवं इसका साहित्य भारतवर्ष की अमूल्य धरोहर है जो सम्पूर्ण विश्वसमुदाय का मार्गदर्शन करने में सक्षम है। भारत की प्रायः सभी एवं विश्व की अधिकांश भाषाओं की जननी मानी जाने वाली संस्कृतभाषा अपने सुव्यवस्थित व्याकरण एवं समृद्ध साहित्य के कारण सम्पूर्ण विश्व में अप्रतिम प्रतिष्ठा की पात्र बनी हुई है। इसका भाषाशास्त्रीय महत्व राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरणगुप्त की पंक्तियों में सहज ही प्रस्फुटित होता है-
है कौन भाषा यों अमर व्युत्पािरूपी प्राण से, हैं अन्य भाषा शब्द जिसके सामने म्रियमाण से।
पाणिनिसदृश वैयाकरण संसार भर में कौन है, इस प्रश्न का सर्वत्र उार उारोार मौन है॥
श्री मिश्र ने कहा कि ‘‘ संस्कृत भाषामात्र न होकर भारतवर्ष की सांस्कृतिक अन्तःप्रेरणा का प्रत्यक्षरूप है, जिसने विश्वसमुदाय को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उदाहरण सन्देश देकर ‘विश्व-एक परिवार’ की अवधारणा को सतत परिपुष्ट किया है। सम्पूर्ण वैदिक वाड्.मय एवं लौकिक संस्कृतसाहित्य ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भण्डार है। सारांशतः संस्कृतवाड्.मय सर्वजनहिताय-सर्वजनसुखाय की दिव्य भावना के साथ मानवमात्र के कल्याण हेतु तत्पर है। भारत की आत्मा संस्कृत में बसती है और संस्कृत के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ‘‘
राज्यपाल श्री मिश्र ने कहा कि ‘‘ संस्कृत की सार्वकालिक महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए राज्य में सन् 1958 में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार, शास्त्रसंरक्षण एवं साहित्यसंवर्धन हेतु निदेशालय, संस्कृत शिक्षा का गठन किया गया जिसे देश का अद्वितीय संस्कृत शिक्षा निदेशालय होने का गौरव प्राप्त है। संस्कृृत शिक्षा विभाग के अधीन संचालित लगभग 2300 राजकीय एवं अराजकीय संस्थाओं में आज लगभग दो लाख विद्यार्थी संस्कृत का संस्कृत माध्यम से अध्ययन करने के साथ ही आधुनिक विषयों का भी ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। पारम्परिक शास्त्र शिक्षण के साथ ही आधुनिक विषयों का शिक्षण अपनेे आप में अनूठा है। विगत वर्षाें में विभाग में संस्था क्रमोन्नति, नवीन पदस्थापन एवं विभागीय पदोन्नति के साथ ही शालादर्पण पोर्टल के शुभारम्भ तथा संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण नवाचार आदि कार्य व्यापक स्तर पर हुए हैं जो संस्कृत शिक्षा के प्रति राज्यसरकार के सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं। राजस्थान राज्य संस्कृत शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, राजस्थान संस्कृत अकादमी एवं जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय भी संस्कृत क्षेत्र में अपनी महत्ववपूर्ण भूमिका का निर्वहन जागरूकता के साथ कर रहे हैं। ‘‘
राज्यपाल ने कहा कि ‘‘ राज्य सरकार संस्कृत शिक्षा के समग्र विकास हेतु संकल्पबद्ध है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने बच्चों को संस्कृत शिक्षा से जोडें जिससे संस्कारित व जिम्मेदार पीढ़ी का निर्माण सुनिश्चित हो सके एवं सामाजिक समरसतापूर्वक राष्ट्राभ्युदय की संकल्पना साकार हो सके। आइये हम सब मिलकर संस्कृत भाषा को जनभाषा बनाने का प्रयास करें। हम कोविड-19 की इस विपत्ति वेला में सावधानी पूर्वक उत्सव का उल्लास बनाये रखते हुए संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु संकल्पबद्ध हों। ‘‘