धीरे-धीरे खुल रही है जन सुनवाईयों की पोल, योगी की भी नहीं हुई योगी की पुलिस, वाराणसी का है मामला
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद
एसएसपी वाराणसी से अपराध संख्या 571/2019 के बाबत विवेचक द्वारा खानापूर्ति व औपचारिक कार्यवाही कर लगाई गई फाइनल रिपोर्ट को निरस्त कर मामले की पुनः विवेचना कराए जाने की की गई मांग
वाराणसी। कहते हैं कि यूपी में राज योगी का है, लेकिन सच यह है कि योगी के मामले में भी उन्हीं की पुलिस खनापूर्ति कर दे रही है। ऐसे ही एक मामला वाराणसी के शिवपुर थाने में प्रकाश में आया है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता आई.पी. सिंह द्वारा राजनीतिक द्वेष की वजह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व सनातन धर्म की सन्यास परम्परा का मखौल उड़ाने के मामले में थाना शिवपुर में विगत दिनों मुकदमा दर्ज किया गया था। शिवपुर पुलिस ने मामले में लीपापोतीकर उसे ठण्ढे बस्ते में डाल दिया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दर्ज अपराध संख्या 571/2019 के बाबत विवेचक द्वारा खानापूर्ति व औपचारिक कार्यवाही कर लगाई गई फाइनल रिपोर्ट को निरस्त कर मामले की पुनः विवेचना कराए जाने हेतु अधिवक्ता कमलेश चन्द्र त्रिपाठी द्वारा एसएसपी वाराणसी को 29 सितम्बर 2020 को प्रार्थना पत्र दिया गया है। साथ ही अधिवक्ता द्वारा जनसुनवाई के दौरान प्रदत्त प्रार्थनापत्रों के मामले में शुचिता, पारदर्शिता व प्रमाणिकता की दृष्टि से क्रमांक व नाम तथा थाना क्षेत्र अंकित पीली पर्ची की ब्यवस्था पुनः प्रारम्भ किये जाने की मांग भी की गई है।
अतिधवक्ता कमलेश चन्द्र त्रिपाठी ने एसएसपी को प्रार्थना पत्र दिया है कि पहलेकी तरह ही फिर से शिकायतकर्ताओं को पीली पर्ची देने की ब्यवस्था पुनः प्रारम्भ की जाए। उपरोक्त मामले में अधिवक्ता द्वारा पहले भी 24 अगस्त 2020 को प्रार्थना पत्र दिया गया था, लेकिन अभी तक वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक कार्यालय द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की गई थी। साथ ही अतिधवक्ता कमलेश चन्द्र त्रिपाठी ने वाराणसी के वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक से रविन्द्रपुरी कालोनी व हरिश्चंद्र घाट, थाना भेलूपुर में राजनीतिक विरोध व सस्ती लोकप्रियता हेतु धरना-प्रदर्शन द्वारा कोरोना महामारी रोकथाम अधिनियम की धज्जी उड़ाने का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष विजय मौर्य व उनके साथी अन्य दोषियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने की मांग किया।
वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक द्वारा अगर उक्त विषयों पर कार्यवाई की जाती है तो आने वाले समय में शिकायतकर्ताओं को पीली पर्ची मिलने लगेगी। इसके साथ ही आगे से कोई भी कानून को ताक पर रखकर ओछी लोकप्रियता के लिए विरोध प्रदर्शन नहीं कर पाएगा।
ऐसे में अनिवार्य प्रश्न यह है कि ये नक्कारे पुलिस वाले जब अपने मुख्यमंत्री के ही नहीं हुए तो आम आदमी की कितनी सुनवाई करते होंगे। यहां पर बनारस के ही शायर व कवि कुंठित का लिखा एक मुक्तक उद्धृत है-
आदमी के ख्वाब की खातिर सवेरा रह गया,
चांद या सूरज उगा, जो था अंधेरा रह गया।
नाम उसके, साथ सरिता के मछलियां हो गईं,
ताकता बस जाल को केवल मछेरा रह गया।