भारत तो भारत है, अब अमेरिका में भी अपने आदर्शों से गिरी पत्रकारिता -छतिश कुमार द्विवेदी ‘कुंठित’
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को स्पष्टनीति का महान नेता मानने के साथ-साथ अमेरिका में पत्रकारिता में आई वर्तमान गिरावट को रेखांकित कर रहे हैं अनिवार्य प्रश्न के प्रधान संपादक व साहित्यकार छतिश कुमार द्विवेदी ‘कुंठित’
राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा प्रेस ब्रीफिंग को रोकना और प्रेस के नकारात्मक स्टोरी मेकिंग को वजह बताना विश्व पत्रकारिता को आईना दिखाने जैसा है। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के बहुचर्चित नेता डोनाल्ड ट्रंप विश्व के पहले नेता हैं जो वाइट हाउस में आने के बाद भी व्हाइट हर्ट रखे हुए हैं। क्योंकि इससे पहले के कुछ-एक नेता ही थे जो स्पष्टनीति रखते थे। नहीं तो अमेरिका अनेक ऐसे गोपनीय कार्यक्रमों को चलाता रहा है जिनके विश्व के अनेक देशों के लिए अहितकारी साबित होने की संभावना रही है। विकिलीक्स के द्वारा किए गए खुलासे अमेरिका के राष्ट्रीय अध्यक्षों के ऐसे अनुचित उद्देश्यों को प्रमाणित करने वाले थे।
संभवत अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के बाद दूसरा कोई साफ छवि, समाजनीति और स्पष्टनीति का नेता हुआ तो अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही हुए। इसीलिए पत्रकारिता के एक बड़े वर्ग में उनको ‘वाइट हाउस का वाइट हर्ट मैन’ कहा मैन कहा गया। अब तक जैसा देखा जाता रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्य को लेकर स्पष्टवादी परिलक्षित होते रहे हैं। अगर किसी से नाराज हैं तो उनकी नाराजगी साफ दिखती है, और वह किसी से प्रसन्न हैं तो उनका प्रेम भी दिखाई देता है। अनेक राज्यों में कुटनीति को नीति निर्माताओं और राज्य के हितों के अनुकूल सही समझा जाता है, मगर मानवता के धरातल पर देखा जाए तो ट्रम्प एक शानदार व सच्चे शख्सियत हंै।
क्योंकि आज, उस समय जब फिजियोलाजी और मेडिसिन के क्षेत्र में विश्व को बेहतरीन योगदान देने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता जापान के प्रोफेसर डॉ तासुकु होंजो ने साफ तौर पर कह दिया है कि कोरोनावायरस आर्टिफिशियल है प्राकृतिक नहीं। ऐसे दौर में जब कोई देश यहां तक कि भारत भी चीन से उसके इस कुकृत्य के दोेष कहने को तैयार नहीं है, और ना ही विश्व का अन्य कोई देश सीधे-सीधे चीन से कह पा रहा है कि इस खास तरह के वायरस का उसके द्वारा ही कृत्रिम रूप से निर्माण किया है। राष्ट्रपति ट्रम्प का स्पष्ट रुप से यह कहना कि इसमें चीन की कुछ गलती है, उसने के सामने गलत आकड़े प्रस्तुत किए हैं कितनी सशक्त बात है। और इतना ही नहीं डब्ल्यूएचओ को विलंब से जानकारियों को साझा करने के लिए दंडित करते हुए दिया जाने वाला वार्षिक फंड रोक देना उनके बड़े, साहसी और स्पष्टवादी व्यक्तित्व का परिचय देता है। ट्रंप अब-तक अपने कार्यों, अपने आचरण को लेकर साफ-साफ बोलते रहे हैं। वह उनके उद्देश्य उनके कार्यों में साफ दिखाई देते हैं। वह नरेन्द्र मोदी की तरह ही अपने राष्ट्रीय हितों के कुछ ज्यादा ही शुभचिंतक और कठोर हैं। उन्होंने मोदी के प्रति अपने सहज उभरे प्रेम को भी सबके सामने उसी सहायता से व्यक्त किया जैसे अपने अभिभावकों के प्रति एक शिशु करता है। इन कार्यों के कारण वह मानवीय गुणों से सुशोभित हो जाते हैं। ऐसे नेता से विश्व की राजनीति को तथा नेतृत्व को राजनीति सीखनी चाहिए। क्योंकि राजनीति कूटनीति को छोड़ दे तो समाजहित के लिए बेहद उपयोगी व सार्थक हो सकती है।
क्षेत्रीय और कुत्सित अभिलाषाओं में सभी देशों की राजनीति भटक जाती है। वहां का नेतृत्व कहता कुछ है और करता कुछ है। जैसे अब तक पाकिस्तान और चीन के शासकों का चेहरा देखा जाता रहा है। राष्टपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्य भी इतिहास के उन किताबों में सवर्ण अक्षरों में दर्ज होंगे जिनमें नेतृत्व को स्पष्टवादी होना ठीक समझा जाएगा। मानवीय प्रसन्गों का अध्ययन करने के बाद अगर कहा जाए तो ट्रंप विश्व के सबसे स्पष्टवादी व शानदार नेता हैं, जिनके कार्यों में राष्ट्रीय हित, सेवाओं में विस्तृत विश्व हित और गुनहगारों के प्रति कठोर रवैया दिखाई देता है। जब वह उत्तर कोरिया और स्लामी वृत्तियों से नाराज होते हैं तो उनकी नाराजगी उनके व्यवहार और संबोधन से साफ जाहिर होती है। वह सामाजिक और राजनीतिक प्रबंधन के अपने हित छोड़कर पत्रकारों से भी रुसवाई मोल लेेते हैं। निरन्तर की जाने वाली प्रेस ब्रीफिंग को रोक देते हैं। हर समय वह अपने देश व अपने दृष्टि में जो सही है उसके साथ हैं।
इन दिनों आई अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों से जानकारी प्राप्त हुई है कि उन्होंने अपने यहां रोज की जाने वाली प्रेस ब्रीफिंग को स्थगित कर दिया है। उनका कहना है कि स्थानीय अमेरिकी पत्रकारिता भी सकारात्मक स्टोरी मेकिंग न कर नकारात्मक बिंदुओं को दिखाकर टीआरपी के लिए लालायित है। एक स्पष्टवादी राजनेता का यह कहना खासकर उस परिस्थिति में जब वह स्वयं परेशान है कि अपने देश को वर्तमान कोरोनावायरस के चिन्ताजनक हालात से कैसे निकाले, काफी दुखद है। इस समय अमेरिकी मीडिया को ट्रंप के साथ खड़ा होना चाहिए न कि प्रेस ब्रीफिंग में ढाई-ढाई घंटे तक निरर्थक और नकारात्मक सवालों के तीर चलाने चाहिए। अब-तक की सभी रिपोर्टों में ट्रंप के किसी भी ऐसे अपराध की तरफ कोई प्रमाण या संकेत नहीं मिले हैं जिससे कि यह कहा जाए कि इस भयानक आपदा के लिए निजी या राष्ट्र नायक के तौर पर वह जिम्मेदार हैं।
अकेले ट्रंप ही नहीं बहुत सारे नेता अपने यहां वैश्विक व्यापार व आवागमन को रोकने में देर किये। क्योंकि समय से पहले किसी को इस तरह के इनपुट नहीं मिल पाए थे जिससे यह समझा जा सके कि कोरोनावायरस इतनी भयानक आपदा का रूप धारण कर लेगा। भारत में आज स्थिति गंभीर नहीं है तो इसके पीछे एक तो यहां जांच की क्षमता का कम होना है और दूसरी यहां से विदेश यात्राओं में खासकर चीन और अमेरिका से आवागमन उतनी संख्या में नहीं है जितना की अमेरिका से बाकी जगहों पर आना-जाना व आयात निर्यात है।
अपने भारत की पत्रकारिता का वर्तामान स्वरूप भी देखा जाए तो बड़ा अफसोस होता है। यहां के अनेक बड़े अखबार, कुछ बड़े समाचार चैनल ऐसी आपदा की घड़ी में भी सार्थक और सत्यनिष्ठ समाचार के स्रोत बनने में विफल रहे हैं। जबकि इस समय उन्हें संवेदनात्मक और सत्यपुष्ट खबरों के स्रोत के रूप में काम करना चाहिए था। बहुत से मीडिया समूह अपने अधिक पढ़े जाने और अपने अधिक देखे जाने का स्वांग कर कर के अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। और अपने को सबसे बड़ा व सबसे तेज बताने में थक नहीं रहे हैं। कुछ टीवी चैनल, समाचार समूह व अखबार ऐसे भी हैं जो अंताक्षरी और क्विज कांटेस्ट चला रहे हैं। उस दौर में जब खबरों को संवेदनशील और विचार प्रधान रखने का समय था वह पिड़ितों में जाने क्या खोज रहे हैं। और वही बता सकते हैं कि क्या दे रहे हैं।
भारतीय पत्रकारिता का एक नया चेहरा यह भी दिखाई दिया है जिसमें वह मौत और शव की खबरों पर भी पाठक और दर्शक वनाने के लिए अभियान चला सकती है। यह वही पत्रकारिता है जो दुश्वार परिस्थितियों में भी समाचारों का संकलन कर सबको अवगत कराती थी। यह वही पत्रकारिता है जो समस्या ग्रस्त समाज के लिए उसके साथ खड़ी होकर लड़ाई छेड़ने वाली भूमिकाओं में आ जाती थी। अब उससे निकलकर आज बिगड़ी परिस्थिति व उससे उभरे हुए समाचार, दुख से भरे हुए आखों के आंसू , जीवन और जीवन के बाद मृत्यु तक को बेचने की सामग्री बना डाली है। अफसोस, कि पत्रकारिता जो अनेक लोगों को जीवन और जीवन का बोध कराती है, पत्रकारिता जो हमें सत्य की सूचनाओं से परिपूर्ण करती है, पत्रकारिता जो हममें ज्ञान के स्रोत के रूप में जानी जाती है, और हमें सहज भाषाओं में सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान देती है, वह पत्रकारिता आज कितनी गिर चुकी है। भारत में गिरावट तो थी ही लेकिन अब यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी आ चुकी है। इसका ताजा चित्र अमेरिका में दिखा है। साधु के एक आवाहन से से हजारों लोगों का खून करने वाला अज्ञानी अंगुलिमाल तो थम गया, पर, हजार आवाहन और लानत से हजारों गलतियां प्रायोजित करने वाला यह समाज कब ठहरेगा। और कब ठहरेगी यह गलत उद्देश्य वाली भटकी हुई पत्रकारिता। हमें सचेत होना होगा अपने राष्ट्र के हितों के प्रति, हमें सचेत होना होगा अपने सही नेताओं के प्रति, हमें सचेत होना होगा अपने सही धर्म और दायित्व के निर्वाह के उसूलों के प्रति, क्योंकि पत्रकारिता गिरावट के दौर में भी प्रणम्य है, और इसे प्रणम्य ही बनाए रखना है।