इंसानियत की नजीरों से भरा संसार


वाराणसी नगर निगम द्वारा किए गए कुछ मानवीय कार्यों के प्रतिनिधित्व से समाज में प्रेम व इंसानियत के पुनः जिन्दा होने के सजीव संदर्भ तलाश रहे हैं अनिवार्य प्रश्न समाचार पत्र व आनलाइन नेटवर्क के प्रधान संपादक व साहित्यकार छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’


विश्व भर से सामने आई मानवता की हजारों तस्वीरें सौम्य मन के लोगों को रुला रही हैं। घोर बाजारवाद के बीच गूंजती अनेक मानवता की कहानियां लोगों में इंसानियत के लिए अटूट विश्वास जगा रही हैं। कोरोना संकट से घिरी जिंदगी के दर्मियान दुनिया त्याग और परोपकार के हजारों उदाहरणों से भर गई है। समाज में लोग एक दूसरे के लिए आज भी जीते हैं ऐसा यकीन होने लगा है। पुलिस, पत्रकार व चिकित्सकों का योगदान तो आंखें भर देने वाला है। चित्र व संवाद के आदान प्रदान में सभी को इन समाजों के प्रति करुण होते देखा जा रहा है।

मनुष्य के जीवन में उसी के जीवन से पनप कर उसके जीवन को कब्जे में कर लेने वाला यह बाजार आज भी इंसानों के मन से इंसानियत नहीं निकाल पाया है। अब, जब लोगों का सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन संकट से गिर गया है तो लोगों ने उससे लड़ने का रास्ता भी इंसानियत के सहारे खोज लिया है। हर सरकार, हर सत्ता अपनी जगह सहम गई है। पर, समाज के बीच मानवता के हजारों चित्र दिखने लगे हैं जिसे देखते ही आंखे भर जाती हैं। समाज में नेकी से प्यार हो जाता हैै।

प्रशासनिक संस्थाओं के क्रियाकलापों एवं सेवा योजनाओं के समाचारीय अवलोकन के समय मेरी दृष्टि वाराणसी नगर निगम के किए गए कुछ उन कार्यों पर पड़ी जिसमें स्थानीय नगर निगम भूखे जानवरों को खाना खिलाने का अभियान चला रहा है। हो सकता है वाराणसी नगर निगम व उसके उस विंग से जुड़े कर्मचारियों के लिए यह एक सामान्य बात हो, लेकिन अपनी संस्कृति में शामिल इंसानियत के इस चित्र को देखकर आंखें इस सोच में द्रवित हो गईं कि उस युग में जब समाज पूरी तरह से सहमा हुआ है, लोग अपने घरों में बंद हैं, सभी अपने-अपने जीवन को लेकर तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं, संकट से उबरने के लिए घर में रहने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प उन्हें नहीं मिल रहा है, सरकारें अपनी असमर्थता जान चुकी हैं और पहले ही थककर हांफ रही रही हैं, विश्व का समूचा सत्ता केंद्रित समीकरण गड़बड़ाया हुआ है, ऐसे में कुछ लोग अपनी सेवाओं को मोक्ष का मार्ग बना लिए हैं। वह लोग अपनी जान जोखिम में डालकर भी परसेवा से आनन्द में हैं। यह एक तपस्चर्या है। हमारा देश अमूमन ऐसी ही संवेदनशील व कठिन तपस्चर्या के लिए जाना जाता रहा है। ऐसे समय में जब विदेशों में कोरोना में सेक्स किया जाए या नहीं जैसे गौण विषयों पर परामर्श व चर्चा कार्यक्रम चलाए जाने की खबरें प्रकाशित हो रही हैं हमें गर्व है कि भारत में मानवता फिर से जिंदा हो उठी है।

यह वही नगर निगम है जिसके बहुत सारे कार्यों पर पत्रकारिता समाज के बहुत सारे लोग प्रश्न खड़ा करते रहे हैं। इसके बहुत सारे कार्यों व उनके क्रियान्वयन में अनियमितता की चर्चाएं होती रही हैं। मगर, अब वक्त या नेतृत्व चाहे जिसका प्रभाव हो वाराणसी नगर निगम इन दिनों मानवता की नजीरें पेश कर रहा है। यह व्यक्ति के घर-घर तक जरुरत की चीजों को पहुंचाने के लिए पूरी मेहनत कर रहा है। अपने द्वारा बनाए गए सेफ काशी मोबाइल एप्लीकेशन के साथ ही इसने जनमानस की सेवाओं को बेहतर करने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। इनके कोरोना आपदा में किए गए योगदान को भविष्य में हमारे भारतीयों को याद करना पड़ेगा।

काशी में विश्व भर के नागरिक रहते हैं, कुछ तीर्थ यात्रा, देशाटन और कुछ स्थाई रूप से बसे हुुए हैं, सबकी स्थाई पहचान है ऐसा भी नहीं है, बहुत से ऐसे लोग यहां हैं जो अस्थाई हैं। उनके खाने-पीने रहने का निजी उचित प्रबंध भी नहीं है। उसके बाद भी नगर निगम द्वारा क्रमशः सभी की पहचान करना, सभी का वर्गीकरण करना और सबको आश्रय केंद्रों तथा क्वेरन्टाइन सेंटरों में रखने के अलावा सब के लिए भोजन और जरूरी सुविधाओं का ठीक-ठीक बंदोबस्त करना प्रशंसनीय रहा है। यह वही नगर निगम है जो सवालों में रहा है, और यह वही नगर निगम है जो आज इंसान ही नहीं पशुओं तक की फिक्र कर रहा है। समाज चाहे जहां भी विकृत हो जाए, जितना भी गड़बड़ हो जाए, रहता मानवीय ही है। हम भारतीय हैं और हम बिगड़ेंगे भी तो कितना। हमारे अंदर दर्द रहेगा ही। किसी और की पीड़ा में आंसू बहाने वाले लोग हैं हम। हम दूसरों के कल्याण के लिए इमली जैसा पौधा लगाने वाले लोग हैं, जो आने वाली पीढ़ी को 30 साल बाद औषधीय गुणों के लाभ देगा। इन दिनों इस देश में ऐसे भी अनेक चित्र मिले हैं और उदाहरण मिल रहे हैं कि कई वालंटियर हजारों किलोमीटर दूर जाकर औषधियां पहुंचा रहे हैं। ऐसे भी उदाहरण मिले हैं जो पुलिस सेवा में होने के बाद भी घर वापस नहीं आ रहें और सड़कों पर ही रात्रि विश्राम कर रहे हैं। ऐसे चिकित्सक भी मिले हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर बिना पीपीई किट के भी मरीजों की देखभाल और उनकी चिकित्सा कर रहे हैं। दिल्ली से निकले हुए कुछ धर्मान्र्धों से अलग हमारे देश में ऐसे भी लोगों के उदाहरण लगातार मिल रहे हैं जिनकी पत्रकारिता में चर्चा और उनकी कहानी रुला दे रही है। हालांकि इस दौर में ऐसे भी लोगों का बड़ा समाज उभरकर सामने आते दिखा है जो सिर्फ अखबारों में सुर्खियों को बटोरने के लिए जनसेवक का मुखौटा लगाकर अचानक अवतरित हो गया है। लेकिन बावजूद इसके हमारे सैकड़ों पत्रकारों का संक्रमित होकर भी पत्रकारिता की सेवा बने रहना, हमारे सैकड़ों चिकित्सकों का संक्रमण के बाद भी चिकित्सकीय सेवा देते रहना, हमारे सैकड़ों पुलिसकर्मियों का संक्रमित होकर और कुछ एक की जान तक जाने के बाद भी पुलिस सेवा का कायम रहना हमारे बीच अमर मानवता के प्रमाणों को, हमारी संवेदना के मजबूत पक्षों को, हमारे भारतीय मूल्यों को और साथ ही हमारे समाज के हर तंत्र में बची हुई इंसानियत को नया रुप दे रहा है।

उक्त अवस्थाएं समाज में ईमानदारी को, सत्य निष्ठा को तथा प्रेम के मौजूदगी को प्रमाणित कर रही हैं। हमारे भारत में प्रेम, संवेदना, उदारता और परोपकार आज भी जिंदा हैं। इसका उदाहरण रोज मिल रहा है। मैं आज इंसान होने पर गर्व महसूस कर रहा हूं, और मुझे यह जानकर खुशी है कि हमारे हर तंत्र में आज भी इंसान हैं। सिर्फ बाजारु लोग ही नहीं हैं। मुझे विश्वास है कि हमारा देश जल्द ही इस बड़ी महामारी से उबर जाएगा। और हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह विश्व का कल्याण करंे।

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