Article: There was goodness in the society even at that time, upper caste opposition was Premchand's frustration

आलेख: समाज में अच्छाई उस समय भी थी, सवर्ण विरोध प्रेमचंद की कुंठा थी


आलेख:


प्रेमचंद की बहुतायत रचना में सवर्ण वर्ग का विरोध संवेदनशीलता की ओट में विस्तारित होते दिखाई देता है। हालांकि उनके रचना समय-समय में सवर्णों में अच्छे लोग भी थे। लेकिन चर्चा उनके नकारात्मक विषयों की जमीन पर उठाये गये कथा पात्रों की हुई ऐसा विचार प्रकट कर रही हैं लेखिका व पत्रकार एकता मिश्रा


प्रेमचंद, जिन्हें मुख्यतः हिंदी साहित्य के महान कथाकार के रूप में जाना जाता है, अपने लेखन के माध्यम से समाज में जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ उठते सवालों को उजागर करते थे। उनकी कहानियाँ और उपन्यास आम आदमी की ज़िंदगी की सच्चाई और उसकी आत्मविश्वास हीनता को छूने में सक्षम थीं। प्रेमचंद की रचनाएँ समाज में बदलाव को लेकर चिंता और संवेदनशीलता का प्रतीक मानी जाती रही हैं। उन्हें कथा कहने का अच्छा ढंग आता था लेकिन वह कथा संसार में चमके अपने ब्राह्मण एवं सवर्ण विरोध के कारण। उनकी बहुतायत रचना में सवर्ण वर्ग का विरोध संवेदनशीलता की ओट में विस्तारित होते दिखाई देता है। हालांकि उनके रचना समय-समय में सवर्णों में अच्छे लोग भी थे। चेकिन चर्चा उनके नकारात्मक विषयों की जमीन पर उठाये गये कथा पात्रों की हुई।

उनकी ‘सवर्णों के विरोध’ एक कथा है जो समाज में कथित जातिवाद और विभेद को उजागर करती बताई जाती है। यह कथा एक संघर्षपूर्ण कहानी है जो दो विवाहित जोड़े के बीच होती है, जिनमें एक सवर्ण और एक अन्यजाति के व्यक्ति होते हैं। इस कहानी में प्रेमचंद ने सामाजिक असमानता और भेदभाव को उजागर करने की कोशिश की है, जब दोनों के परिवारों के लोगों द्वारा इस प्रेम सम्बंध का विरोध किया जाता है। यहां यह समझना है कि प्रेमचन्द ने जिस प्रेम कथा के विषय को चुना उसमें सवर्ण जाति के सरोकार को चुनना क्या पूरी तरह सही है। हांलाकि उस समय संसार में सवर्ण व गौर सवर्ण के सफल प्रेम व विवाह भी मौजूद रहें होंगे। लेखकों का एक वर्ग मानता रहा है कि प्रेमचन्द नकारात्मकता के कथाकार रहे हैं। उनकी कथाओं सकारात्मक कम सामाजिक नकारात्मकता अधिक है। एक वर्ग है जो यह मानता है कि समाज की बुराइयां ज्यादा पढ़ी जाती हैं। अतः उन्होंने उसी पर समाज का ध्यान खींचने की कोशिश की।

उक्त कहानी में, प्रेमचंद ने सवर्ण समाज के कथित तीव्र दृष्टिकोण को प्रकट किया है। जो एक प्रेम के रिश्ते को भी नहीं स्वीकार करता है। वे इस कहानी के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास करते हैं कि प्रेम और विवाह का निर्धारण केवल जाति या स्तर के आधार पर नहीं होना चाहिए, बल्कि यह व्यक्तिगत और भावनात्मक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। प्रेमचंद यहां परम्परा के वैज्ञानिकता, विज्ञान के डीएनए व जिन्स के व्याख्या को नकारते हैं। यहां प्रेमचंद की कुंठा दिखाई पड़ती है।

कुछ लोग मानते हैं कि उन्होंने इस कहानी के माध्यम से जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ एक शक्तिशाली संदेश दिया है, जो आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है। जबकि कुछ लोग यह कहते दिखते हैं कि प्रेमचंद ने इसमें अपनी कुंठा व अपने लेखन कौशल का प्रदर्शन किया है, जो साहित्य के माध्यम से समाज के सामने सिर्फ कुछ लोगों की बुराई को सबकी बुराई बताना है। प्रेमचंद के समग्र लेखन में सवर्णों के विरोध का प्रतिकूल प्रतिबिम्ब देखा जा सकता है। प्रेमचंद ने ऐसी अनेक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अपने कामों में गहराई से सवर्ण जाति और धर्म के विविधताओं की निन्दा की है। उनकी रचनाओं में सवर्णों के विरोध का चित्रण अक्सर मिलता है।

‘निर्मला’, ‘गबन’, ‘रंगभूमि’ जैसी उनकी कहानियाँ सामाजिक और आर्थिक विषयों पर आधारित हैं और इनमें सवर्ण विभाजन और उसके प्रति प्रेमचंद की कथित चिंता का प्रतिकूल चित्रण है। प्रेमचंद की रचनाओं में व्यक्तिगत और सामाजिक संघर्षों का संघर्ष उभरता है, जो सवर्णों के विरोध को प्रकट करता है। उनके लेखन में जातिवाद, द्वेष, और समाज में विभाजन के खिलाफ उनकी आवाज़ अभिव्यक्त होती है।

‘गोदान’ उनकी महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है, जो भारतीय समाज की विभिन्न सामाजिक समस्याओं को उजागर करती है। इस कहानी में, प्रेमचंद ने सामाजिक असमानता, जातिवाद, और गरीबी के मुद्दों पर अपना प्रतिसाद दिया है। उनके लेखन में सवर्णों के विरोध का चित्रण उनके साहित्यिक योगदान का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। उनकी रचनाऐं कुछ लोगों की गलतियों पर सोचने के लिए मजबूर करती हैं।