महाराजगंज थाना प्रभारी ने किया गुण्डों जैसा बरताव, वकील व पत्रकार नाराज
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
योगी सरकार में भी सामने आई पुलिस की गुंण्डई
आज़मगढ़। मामला आजमगढ़ के थाना महाराजगंज का है। जहां दो पत्रकारों व कुछ वकीलों को एक चकरोड संबंधित विवाद के बारे में जानकारी लेने पर थानेदार द्वारा गुंडई का शिकार होना पड़ा। जब पत्रकारों द्वारा जानकारी थाना प्रभारी से माँगी गई तो इसी दौरान समाचार संकलन कर रहे पत्रकारों के साथ महराजगंज थाना प्रभारी ने मूर्खतापूर्ण बदसलूकी की।
थाना प्रभारी द्वारा न्यूज़ कवरेज करने के दौरान दो मीडियाकर्मियों पंकज पाठक एवं उनके सहयोगी प्रकाश गोड के साथ बदसलूकी की गई और उनकी मोबाइल छीन ली गई। पत्रकारों ने जब इसका विरोध किया तो महराजगंज थाना प्रभारी ने उन्हें झूठे केस में फंसाने की धमकी भी दे डाली और उक्त दोनों पत्रकारों को थाने में बंद कर दिया। संबंधित थाना प्रभारी ने छीनी हुई मोबाइल को अपने थाने के कंप्यूटर से कनेक्ट करके उनकी मोबाइल से सारी रिकॉर्डिंग को डिलीट करने के बाद मोबाइल वापस की।
काफी विरोध व उच्चाधिकारियों के दबाव के बाद छोडते हुए पत्रकारों से थानेदार ने दबंगई में कहा कि अभी तुम्हारी अकड़ ढीली नहीं हुई है। अभी हम केस लादकर ठीक करेंगे। सूत्रों का कहना है कि पत्रकारों के साथ किये गए दुर्व्यवहार पर यदि दोषी थाना प्रभारी के खिलाफ जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो सभी पत्रकार आंदोलन करेंगे। वहीं पत्रकारों के विरुद्ध इस तरह के कार्रवाई से स्थानीय पुलिस की कार्यशैली पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। आलम यह है कि योगी राज में भी पुलिस अपनी गुंडई से बाज नहीं आ रही है।
अनिवार्य प्रश्न वाराणसी कार्यालय से बात करते समय नासमझ थानेदार ने कहा कि थाना परिसर में किसी भी पत्रकार का वीडियो वर्जन लेना नियम संगत नहीं है। उक्त थानेदार को इतना भी पता नहीं था कि संवाददाताओं द्वारा सार्वजनिक स्थल पर सार्वजनिक प्रतिनिधि या अधिकारी का वीडियो या लिखित वर्जन लेना पूरी तरह नियम संगत होता है। संवैधानिक पद पर रहते हुए किसी भी कार्य के सापेक्ष किसी भी पदाधिकारी द्वारा सार्वजनिक पक्ष छुपाया नहीं जा सकता। अब नियुक्ति प्रणाली पर सवाल यह है कि ऐसे मूर्खों व गुण्डे विचारधारा के लोगों को थानेदार बनाया कैसे जाता है। प्रदेश में पुलिस की कार्य व नियुक्ति प्रणाली हमेशा से ही सवालों के घेरे में रही है। हालांकि अखबार प्रबंधन से जुड़े वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि ऐसे मूर्ख थानेदारों को उनकी दंभ में की गई गलतियों के लिए उचित दंड दिलवाने हेतु हाईकोर्ट जैसे न्यायिक प्राधिकरणों में वाद दाखिल कराने की अपरिहार्यता पहले के समय से अब के समय में अधिक बन रही है।
दूसरा तथ्य यह है कि अनिवार्य प्रश्न समाचार पत्र के कार्यालय से बातचीत के दौरान स्थानीय थानाध्यक्ष यह बताते दिख रहा है कि संवाददाता अपने आप से बैठे हुए हैं। उनको बैठाया नहीं गया है। लेकिन प्राप्त हुई वीडियो फुटेज व अन्य वाइस साक्ष्यों के मुताबिक एक संवाददाता को जेल में ग्रिल के अंदर बंद रखे जाने का प्रमाण मिलता है। इस आधार पर संबंधित थानेदार को हाई कोर्ट तक मुकदमें में ले जाने की संभावना बनती है। थानेदार को झूठ बोलने एवं कानून को हाथ में लेकर कानून से खिलवाड़ करने के आरोप में पत्रकार उसे हाई कोर्ट तक ले जाने का मन बना रहे हैं।