तमिलनाडु मूर्ति शाखा को सौंपी गई 13वीं शताब्दी की भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता की कांस्य मूर्तियां
अनिवार्य प्रश्न। संवाद
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) मुख्यालय, धरोहर भवन, नई दिल्ली में आज आयोजित एक समारोह में तमिलनाडु सरकार की मूर्ति शाखा को भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता की कांस्य मूर्तियां सौंप दी। इस अवसर पर संस्कृति मंत्रालय, एएसआई और तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
इससे पहले, 15 सितंबर 2020 को लंदन में वहां की मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने ये कांस्य मूर्तियां भारतीय उच्चायोग को सौंपी थीं। 1958 में किए गए फोटो प्रलेखन के अनुसार, ये मूर्तियाँ तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के आनंदमंगलम स्थित श्री राजगोपाल विष्णु मंदिर (विजयनगर काल में निर्मित मंदिर) की हैं। तमिलनाडु पुलिस की मूर्ति शाखा द्वारा की गयी जांच के अनुसार, ये मूर्तियाँ 23/24 नवंबर 1978 को श्री राजगोपाल विष्णु मंदिर से चुरायी गयी थीं।
भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता की ये कांस्य मूर्तियां भारतीय धातु कला की उत्कृष्ट कृतियां हैं और इनकी लंबाई क्रमशः 90.5 सेमी, 78 सेमी और 74.5 सेमी है। शैली के हिसाब सेये मूर्तियां 13वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं।
मूर्तियां सौंपने के समारोह के दौरान मंत्री ने मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में2014 से अब तक विदेश से भारत में कुल 40 पुरावशेष वापस लाए गए हैं, जबकि 2014 से पहले, वर्ष 1976 के बाद से इस तरह के केवल 13 पुरावशेष वापस लाए गए थे।
उन्होंने इन मूर्तियों को देश में लाने की खातिर किए गए निरंतर प्रयासों के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, तमिलनाडु सरकार की विशेष मूर्ति शाखा,राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई)और लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को बधाई दी।
मंत्री ने यह भी घोषणा की कि भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के स्मरणोत्सव समारोह के एक हिस्से के रूप में, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन, भारतीय परंपराएं, विरासत एवं संस्कृति, पर्यटन विकास और प्रोत्साहन तथा राष्ट्रीय महत्व से जुड़े अन्य विषयों जैसे क्षेत्रों में काम करने वाली एजेंसियों/आवेदकों को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती से शुरू होने वाली अवधि, 25 दिसंबर 2020 से 15 अगस्त 2021 तक, के दौरान एएसआईके विभिन्न स्मारकों (विश्व धरोहर स्थलों/प्रतिष्ठित स्थलों को छोड़कर) में शूटिंग/फोटोग्राफी के लिए शुल्क के भुगतान से छूट दी जाएगी। इस तरह की शूटिंग गतिविधियां करने की खातिर आवेदकों/एजेंसियों को मंजूरी पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा।
पृष्ठभूमि:
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट ने अगस्त 2019 में लंदन स्थितभारतीय उच्चायोग को सूचित किया कि तमिलनाडु में विजयनगर काल में बने एक मंदिर से चुरायी गयीं चार प्राचीन मूर्तियाँ (श्री राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान) भारत से तस्करी करशायद ब्रिटेन लाया गयी थीं।
इन तीन धातु की मूर्तियों का फोटो प्रलेखन जून 1958 में तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले के आनंदमंगलम में स्थित श्री राजगोपाल विष्णु मंदिर (विजयनगर काल के दौरान बनाया गया था) में किया गया था। इस चित्र में चार मूर्तियाँ थीं – श्री राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की। इसलिए, मूर्तियाँ कम से कम 1958 तक मंदिर में थीं और बाद में चोरी हो गयीं।
संबंधित रिकॉर्ड के साथ मूर्तियों का सत्यापन करने के बादयह मामला लंदन मेट्रोपॉलिटन पुलिस की कला और प्राचीन इकाई के साथ-साथ तमिलनाडु पुलिस की मूर्ति शाखा के सामने उठाया गया। तमिलनाडु पुलिस की मूर्ति शाखा ने एक व्यापक रिपोर्ट भेजी जिसमें पुष्टि की गई थी कि मूर्तियों की चोरी श्री राजगोपाल विष्णु मंदिर से 23/24 नवंबर 1978 को हुई थी और बाद में अपराधी भी पकड़े गए थे। तस्वीर के आधार पर, इन मूर्तियों की जांच की गयी और पाया गया कि ये सभी मूर्तियां श्री राजगोपाल विष्णु मंदिर से चुरायी गयी मूर्तियां ही थीं। तमिलनाडु पुलिस की मूर्ति शाखा ने आइएफपी फोटो संग्रह के साथ मूर्तियों का मैच करने को लेकर विशेषज्ञ राय भी प्रदान की। उचित जांच करने के बाद लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के पास एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी गयी।
लंदन मेट्रोपॉलिटन पुलिस की कला और प्राचीन इकाई ने मामले की जांच की और उन्हें प्रदान की गई जानकारी और दस्तावेजों के आधार पर मूर्तियों के मालिक से संपर्क किया और मूर्तियों को वापस लौटाने के भारतीय उच्चायोग के अनुरोध से अवगत कराया, उन्हें बताया गया कि प्रथम दृष्टया ये मूर्तियां भारत के एक मंदिर से चोरी की गयी मूर्तियां लगती हैं। इसके बाद, मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने 15 सितंबर 2020 को भारतीय उच्चायोग को ये मूर्तियां सौंप दीं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, तमिलनाडु सरकार की विशेष मूर्ति शाखा, और लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग के निरंतर प्रयासों के कारणये मूर्तियाँ अब देश में वापस आ गयी हैं।
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