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Supreme Court verdict on electoral bonds

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला


अनिवार्य प्रश्न। संवाद।


नई दिल्ली। 3 फरवरी 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। 5 न्यायाधीशों की बेंच ने 3-2 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। इस फैसले को लोकतंत्र की जीत के रूप में देखा जा रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय साधन है जो राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह योजना 2017 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई थी। इस योजना के तहत, कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी भी बैंक से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है और इसे किसी भी राजनीतिक दल को दान कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना चुनावों में पारदर्शिता और जवाबदेही को कम करती है। यह योजना राजनीतिक दलों को काले धन का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह योजना राजनीतिक दलों के बीच असमानता को भी बढ़ाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19(1) का उल्लंघन करती है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जो कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना अनुच्छेद 324 का उल्लंघन करती है, जो चुनावों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का अधिकार देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावी सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला राजनीतिक दलों को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में मदद करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को चुनावी सुधारों के लिए एक नई योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नई योजना पारदर्शी और जवाबदेह हो। यह फैसला भारत के चुनावी इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह फैसला चुनावों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने में मदद करेगा। इस फैसले के कुछ संभावित परिणाम राजनीतिक दलों को चंदा देने के तरीके में बदलाव होगा। राजनीतिक दलों को अपनी आय और खर्च का अधिक पारदर्शी तरीके से खुलासा करना होगा। चुनावों में काले धन का इस्तेमाल कम होगा। यह फैसला भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने में मदद करेगा। यह भी ध्यान देने योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अंतिम नहीं है। सरकार इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकती है। लेकिन, इस फैसले ने चुनावी सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह फैसला भारत के लोकतंत्र के लिए एक अच्छी खबर है।