लैंगिक हिंसा के खि़लाफ़ रंग और कूची ने किया संघर्ष, ध्यानाकर्षक चित्रकारी से याद की गई राष्ट्रसुता निर्भया
अनिावार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी। गंगा के पावन घाट पर लैंगिक हिंसा के खि़लाफ़ रंग और कूची का संघर्ष देखने को मिला। गंगा किनारे भदैनी घाट पर फड़ पेंटिंग के माध्यम से निर्भया को याद किया गया। लैंगिक हिंसा भेदभाव उत्पीड़न को रोकने का संदेश देने के वाली चित्रकारी से छात्रों व युवाओं ने संवेदना को झकझोरने की सफल कोशिश की।
आयोजक संगठन ‘दख़ल’ की ओर से एक कार्यकर्त्री ने बताया कि 16 दिसम्बर का दिन कोई जयंती या पुण्यतिथि का दिन नहीं है। ना ही यह कोई औपचारिक कार्यक्रम है। यह दिन अपने समाज के क्रूर, हिंसक, दर्द देने वाले और डरावने चेहरे को पहचानने का दिन है। 2012 में इस दिन ने हिंदुस्तान को झकझोर कर रख दिया था।
अपने एक दोस्त के साथ बस में सफर कर रही निर्भया के साथ आज ही के दिन 16 दिसम्बर 2012 की रात में कुछ लड़कों ने छेड़छाड़ शुरू की। निर्भया और उसके दोस्त द्वारा विरोध करने पर दोनों को बुरी तरह पीटा गया। मारपीट के बाद निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। बाद में वे सभी दुश्कर्मी दोनों मृतप्राय घायलों को एक निर्जन स्थान पर बस से नीचे फेंककर भाग गये। किसी तरह उन्हें दिल्ली के अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में इलाज के दौरान 29 दिसम्बर 2012 को निर्भया की दुःखद मौत हो गई।
इस घटना के बाद समाज मे एक अभूतपूर्व उबाल देखने को मिला। क्या सड़क, क्या संसद, हर जगह लोगांे ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की और ऐसे दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की बात की गई। संसद में सर्वमत से महिलाओं के सुरक्षा के विषय मे और हिंसा उत्पीड़न से संरक्षण के लिए कानून बने। उसी नृशंस घटना को याद करते हुए लैंगिक भेदभाव और हिंसा को दर्शाते हुए हम चित्र और संदेशों के माध्यम से जागरूकता और संवाद बनाने की आज कोशिश कर रहे हैं।
आयोजन से जुड़े एक कार्यकर्ता ने बताया कि हम सभी साथी समुदाय में बदलाव और लैंगिक हिंसा मुक्त समाज बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। अगर हमें हिंसा मुक्त परिवार चाहिए तो पुरुषों को अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा और लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं करना होगा। बैनर पर बने एक आकर्षक चित्र में घर के अंदर परिवार में हो रही हिंसा को दिखाने का प्रयास किया गया था। गौरतलब है की कल 15 दिसम्बर को ही राज्यसभा में स्मृति ईरानी जी ने कोविड काल में घरेलू हिंसा के आंकड़े पटल पर रखे और बताया कि इस साल घरेलू हिंसा के मामले 3582 दर्ज हुए हैं।
यह आंकड़े बताते हैं कि लैंगिक हिंसा केवल कानून के कड़े होने या दंड से सीमित होने वाला मामला नहीं है। घर में बहन बेटी माँ तक सुरक्षित नही हैं, ऐसे में ये समाज की एक बीमारी है। और इस बीमारी के कारणों को समझते हुए समय समय पर सर्जरी की और दवा के संधान की जरूरत है।
उल्लेखनीय हैं कि कार्यक्रम स्थल पर चित्रकारी के साथ्-साथ एक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया। काशी के भदैनी घाट पर गंगा किनारे चहलकदमी कर रही आम जनता लागतार आयोजन में रुचि से जुड़ती रही, इससे महसूस हुआ कि उक्त विषय पर जागरूकता और जनसंवाद की बहुत जरूरत है।
कार्यक्रम में बीएचयू व काशी विद्यापीठ से काफी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहीं। आयोजन में वल्लभाचार्य पांडेय, डॉ इंदु पांडेय, अनुष्का, नीति, विजेता, रोली सिंह रघुवंशी, मैत्री मिश्रा, धनन्जय त्रिपाठी, शिवि, दिवाकर सिंह, ज्योति, सलमान, डॉ प्रियंका, ताहिर, शांतनु सिंह, राज, अभिषेक, रोहन, महेंद्र, मूसा आज़मी, शालिनी, साक्षी, साहिल, डॉ प्रफुल्ल चन्द्र राव भारती, डॉ विकास सिंह आदि लोगों की उपस्थिती रही।