सरकारी महकमें पर भी आचार संहिता के समय पक्षपात करने का लगता रहा है आरोप
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी। विगत वर्ष संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में वाराणसी में देखा गया कि कई उम्मीदवारों का पर्चा खारिज कर दिया गया। यह कार्य पूरी तरह से प्रशासनिक महत्व के अधीन होता है। उस समय के उम्मीदवारों ने एक क बातचीत में बताया कि खारिज करने का निर्वाचन कार्यालय का दिया गया तर्क आवेदन पत्रों के अध्ययन के बाद सत्य या तर्कसंगत नहीं पाया गया।
ऐसे में बनारस ही नहीं देशभर से अनेक बार आवाज उठाती रही है कि निर्वाचन कार्यालय में आवेदन करने के उपरांत कुछ पक्षों के प्रभाव के कारण कई प्रत्याशियों का आवेदन खारिज या निरस्त कर दिया जाता है। वाराणसी ब्यूरो से प्राप्त सूचना के अनुसार विगत वर्ष विधानसभा चुनाव में जिन प्रत्याशियों के पर्चे खारिज किए गए और उसमें जो कारण बताया गया उसपर सरकारी अभिकरण और प्रत्याशियों के पक्ष में मतभेद मिला। प्रत्याशियों का आरोप रहा कि यह आवेदन खारिज करने का कार्य निर्वाचन कार्यालय द्वारा गलत तरीके से किया गया है।
यह अनिवार्य प्रश्न हमेशा उठता रहा है कि क्या निर्वाचन से जुड़े संपूर्ण क्रियाकलाप के लिए वर्तमान और कायम प्रशासनिक तंत्र सही कार्यतंत्रा है? क्या यह तंत्र किसी दबाव से मुक्त रहकर कामकर पाता है? पूर्व स्थापित जिस सरकारी प्रशासनिक तंत्र का प्रयोग किया जाता है यह निष्पक्ष नहीं हो पाता?
अगर सभी का जवाब नकारात्मक है तो क्या ऐसे में निर्वाचन के लिए पूरी तरह अलग समानांतर सिस्टम के निर्माण की जरूरत है? क्या इसके बगैर ऐसे चुनाव में निष्पक्षता कायम नहीं रखी जा सकती? आदि….आदि?
हालांकि पूर्व प्रत्याशियों का मानना रहा है कि पुराने दिनों से बने हुए और सत्ताधारी सरकारों व पार्टियों के अधीन काम करने वाले अफसर निष्पक्ष चुनाव कराने में अब तक पूरी तरह सफल नहीं रहे हैं।
अनिवार्य प्रश्न है कि निर्वाचन विभाग के लिए अलग से इतने पदाधिकारियों का चयन करना, उनकी नियुक्ति करना और उन्हें सेवा में रखे रहना, क्या अधिक खर्च और राष्ट्रहित का विषय है? वहीं दूसरी तरफ एक अनिवार्य प्रश्न यह भी है कि क्या वर्तमान प्रशासनिक तंत्र की चुनाव संबंधित असमर्थता के सापेक्ष आर्थिक रुप से कमजोर लोगों के देश में नए तंत्र की स्थापना की कितनी गुंजाइश रह जाती है? राष्ट्र का भविष्य ऐसे अनेक उत्तर की तलाश करता रहेगा जिसमें पूरी तरह निष्पक्ष न्यायपूर्ण चुनाव किया जा सके? क्योंकि अभी तक आचार संहिता लागू तो होती है पर पर्ण सफल नहीं होती।