‘राजभाषा हिंदी का वैश्विक परिदृश्य एवं चुनौतियां’ विषय पर विद्वानों ने किया मंथन
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ द्वारा 19-20 सितंबर 2024 को वाराणसी के उद्गार सभागार, भोजूबीर में ‘राजभाषा हिंदी का वैश्विक परिदृश्य एवं चुनौतियां’ विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में कई विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। प्रमुख वक्ताओं में पंडित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ और जिला पुस्तकालयाध्यक्ष कंचन सिंह परिहार, डॉ. अवनीश कुमार, डॉ. अशोक कुमार राय, कमल नयन मधुकर, नरेन्द्र बहादुर सिंह आदि उपस्थित रहे। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में हिंदी भाषा के विकास, उसकी वैश्विक स्थिति और सामने आ रही चुनौतियों पर गहन चर्चा की गई।
पंडित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ ने अपने वक्तव्य में हिंदी भाषा के वैश्विक विस्तार और उसकी चुनौतियों पर विस्तृत रूप से चर्चा की। उन्होंने हिंदी के बढ़ते महत्व और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी रूप से स्थापित करने के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी को वैश्विक मंच पर ले जाने के लिए तकनीकी साधनों और अनुवाद कार्यों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हिंदी भाषा, जिसे करोड़ों लोग अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं, इसे पाठ्यक्रम में अनिवार्य विषय के रूप में मान्यता मिले तो हिन्दी इस देश में सभी लोगों की बोलचाल और प्रयोग में आ जायेगी। हालांकि, इसके सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें दूर करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
पुस्तकालयाध्यक्ष कंचन सिंह परिहार ने हिंदी भाषा की सांस्कृतिक धरोहर और उसकी वैश्विक पहचान पर अपने विचार रखे। उन्होंने हिंदी के प्रति नई पीढ़ी की रुचि और इंटरनेट युग में हिंदी के प्रसार को बढ़ाने के लिए जरूरी प्रयासों की चर्चा की। कार्यक्रम में अन्य विद्वानों ने भी हिंदी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और इसे वैश्विक स्तर पर प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने के उपाय सुझाए।
संगोष्ठी के दूसरे भाग में कवि गोष्ठी का आयोजन भी किया गया जिसमें कवि सुनील सेठ, ध्रुव सिंह चौहान, पुस्पेन्द्र अस्थाना, जी. एल. पटेल, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, देवेन्द्र पाण्डेय, चन्द्र भूषण सिंह, बुद्धदेव तिवारी, समीम गाजीपुरी, माधुरी मिश्रा, डॉ. लियाकत अली, खुशी मिश्रा, डॉ. कृष्णप्रकाश श्रीवास्तव प्रकाशनन्द, साधना साही आदि कवियों ने भाग लेकर अपनी कवितायें सुनायी।
संगोष्ठी के समापन पर सभी वक्ताओं और उपस्थित अतिथियों को सम्मानित किया गया। इस आयोजन ने हिंदी भाषा के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को समृद्ध किया और यह अहसास दिलाया कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए सामूहिक प्रयास और नीतिगत सुधार आवश्यक हैं।