वाराणसी में दो दिवसीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
वाराणसी। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने आज वाराणसी में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का शुभारंभ किया। सम्मेलन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री के साथ राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश, उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, अजय कुमार मिश्रा, निशिथ प्रमाणिक और सांसदगण और सचिव राजभाषा सहित देशभर के विद्वानगण शामिल हुए।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि उनके लिए ये बेहद हर्ष का विषय है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में पहली बार राजभाषा सम्मेलन राजधानी के बाहर लाने में सफलता मिली है। उन्होंने कहा कि कोई भी सरकारी परिपत्र, अधिसूचना तब तक लोकभोग्य नहीं होती है जब तक वो जन आंदोलन में परिवर्तित नहीं होती है। राजभाषा को गति देने के लिए अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन को दिल्ली के गलियारों से बाहर ले जाने का निर्णय 2019 में ही कर लिया गया था और ये नई शुरूआत उस वर्ष में हो रही है जो हमारी आज़ादी का अमृत महोत्सव वर्ष है।
अमित शाह ने कहा कि ये एक आनंद का विषय है जब हमने राजभाषा सम्मेलन को दिल्ली से बाहर आयोजित करने का निर्णय लिया तो पहला सम्मेलन काशी में हो रहा है। विश्व का सबसे पुराना नगर, बाबा विश्वनाथ का धाम है, मां गंगा का सानिध्य है और मां सरस्वती की उपासना करने वालों के लिए काशी हमेशा स्वर्ग रहा है। भाषा और व्याकरण की उपासना करने वालों के लिए काशी हमेशा गंतव्य स्थान रहा है। आज़ादी के अमृत महोत्सव में संकल्प लेने के लिए हम सब यहां हैं कि आज़ादी के अमृत काल में जब सौ वर्ष होंगे तब स्वभाषा का लक्ष्य भी हम पूर्ण करेंगे।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि काशी एक सांस्कृतिक नदी है और देश के इतिहास को काशी से अलग करके लिख ही नहीं सकते। चाहे रामायण काल हो, महाभारत काल हो, या फिर उसके बाद देश का गौरवमयी इतिहास हो, चाहे आज़ादी का आंदोलन हो, चाहे देश को विकास की दिशा में ले जाने वाले और देश को दुनिया में सबसे सम्मानित स्थान पर पहुंचाने वाले प्रधानमंत्री जी काशी से सांसद हों, काशी को देश के इतिहास से अलग करके हम नहीं देख सकते। जहां तक भाषा का प्रश्न है, तो काशी भाषा का गौमुख है, भाषाओं का उद्भव, भाषाओं का शुद्धिकरण, व्याकरण का शुद्धिकरण और व्याकरण को लोकभोग्य बनाने में काशी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जो हिन्दी आज हम बोलते और लिखते हैं, उस का जन्म इसी बनारस में हुआ है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को कौन भूल सकता है। खड़ी बोली का क्रमबद्ध विकास यहीं हुआ है और आज जो समृद्ध भाषा बनकर हिन्दी हमारे सामने है, इसकी पूरी यात्रा हमारे लिए हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहेगी।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 1893 में आर्य समाज के अंदर एक आंदोलन चला और शाकाहार व पश्चिमी शिक्षा के मुद्दे पर एक बहुत बड़ा मतभेद हुआ। उस वक़्त शिक्षा का माध्यम क्या हो इस पर पहली बार चर्चा हुई। 1868 में पहली बार यहाँ पर कुछ ब्राह्मण विद्वानों ने माँग उठायी थी कि शिक्षा की भाषा हिंदी होनी चाहिए। माँग को तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मान लिया था और नौकरियों में अभिजात्य तरीक़े से उर्दू भाषा को जो प्राथमिकता दी जाती थी उसे चुनौती मिली और हिन्दी को राजभाषा बनाने की दिशा में पहला कदम उसी वर्ष रखा गया। अमित शाह ने कहा कि हिन्दी भाषा के उन्नयन और उसका व्याकरण बनाने की शुरुआत भी 1893 हुई में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के साथ हुई। उन्होंने कहा कि हिंदी के उन्नयन, उसका शब्दकोष और व्याकरण का प्रारूप बनाने के उद्देश्य से ही नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई थी। अमित शाह ने कहा कि हिंदी की पढ़ाई और पाठ्यक्रम तैयार करने की चिंता पंडित मदन मोहन मालवीय ने यहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में की थी।
कहा कि हम तुलसीदास को कैसे भूल सकते हैं, अगर उन्होंने अवधी में रामचरितमानस ना लिखा होता तो शायद आज रामायण लुप्त हो गया होता। तुलसीदास ने यहाँ रामायण के अर्थ को आगे बढ़ाने का काम किया और उन्हीं से अवधी और हिंदी की बोलियों को लोकप्रिय बनाने की शुरुआत हुई। जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, बाबू श्याम सुंदर दास समेत अनेक विद्वानों ने यहीं पर हिंदी को आगे बढ़ाने का काम किया। इसलिए आज़ादी के अमृत महोत्सव में हिंदी को मजबूत करने व घर-घर पहुंचाने, स्वभाषाओं को मजबूत करने और उन्हें राजभाषा के साथ जोड़ने का जो नया अभियान शुरू होने जा रहा है उसके लिए काशी से उचित स्थान कोई और हो नहीं सकता।
मंत्री ने कहा कि इस सम्मेलन में दो दिन तक जो सत्र होने वाले हैं, उनमें कई सारे विषय हैं। इनमें एक विषय है, भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता और एक है भारतीय भाषाओं का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान। यह दोनों बहुत बड़े विषय हैं और हमें इन्हें लोकभोग्य बना कर जन-जन तक पहुंचाना होगा। हिंदी और राजभाषा को थोपना नहीं है, बल्कि हमारे प्रयासों से इसको सर्व स्वीकृत बनाना है। प्रधानमंत्री मोदी के आप जितने भी भाषण सुनते हैं, वह हिंदी में ही होंगे। लेकिन जब तक जनमानस के अंदर अपने अपने राज्य की भाषा और राजभाषा की स्वीकृति का वातावरण हम निर्मित नहीं करेंगे, यह कभी नहीं होगा।
हमें हिंदी के शब्दकोश को भी समृद्ध करने की जरूरत है और मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इसके लिए भी हमें काम करना चाहिए। अब समय आ गया है कि इसे एक नए सिरे से लिखा जाए और कुछ विद्वानों की कमेटी बने। हिंदी के शब्दकोश को मजबूत, विस्तृत करना चाहिए, इसकी सीमाओं को बढ़ाना चाहिए। एक परिपूर्ण संपूर्ण भाषा बनाने के लिए कुछ विद्वानों को काम करना पड़ेगा। नया क्या ला सकते हैं और अगर इस पर नहीं सोचेंगे तो काल अपना काम करेगा और धीरे-धीरे कालबाह्य हो जाएंगे, क्योंकि भाषा तो नदी जैसी है, बहती रहती है।