'Viyogi' left everyone in separation

सबको वियोग में छोड़ गये वियोगी


अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।


उद्गार के वियोगी को दी गई भावभींनी विदाई
टूट गई वियोगी, विरही एवं कुंठित की ख्यात जोड़ी

कवि वियोगी वाराणसी की संस्था ‘उद्गार’ के लगभग 9 साल से थे अध्यक्ष


वाराणसी। काशी ही नहीं देश व देश के बाहर भी साहित्यिक संसार के श्रृंगार रस के बड़े कवियों में शुमार वयोवृद्ध साहित्यकार आदरणीय योगेंद्र नारायण चतुर्वेदी ‘वियोगी’ अब नहीं रहे। 22 जनवरी को 2023 को वह लंबी बीमारी के बाद सुबह 7ः00 बजे इस भावपूर्ण दुनिया को विदा कह गए। कवि वियोगी वाराणसी की संस्था ‘उद्गार’ के लगभग 9 साल से अध्यक्ष थे। काशी के ही नहीं समूचे देश के साहित्यिक लोगों के बीच वियोगी, कुंठित व  विरही की जोड़ी प्रसिद्ध थी। साहित्यिक जगत में इस जोड़ी के टूटने की भी चर्चा है। उद्गार संस्था परिवार में शोक की लहर व्याप्त है।
वियोगी जी शृंगार रस के अपने आप के अनोखे कवि थे। श्रृंगार काव्य शैली में मानव जीवन की अतृप्ति की पीड़ा लिखने वाले कवियों में वे शीर्श पर गिने जाते थे। अभी कुछ दिनों पूर्व ही उनका एक गीत संग्रह ‘मेरी पीर रही अनगाई’ स्याही प्रकाशन वाराणसी से आया था। जो काफी लोकप्रिय हुआ।
काशी के ही महात्मसंपन्न मणिकर्णिका घाट पर कल  22 जनवरी, 2023 को शाम के समय दाह संस्कार पूर्ण किया गया। दाह संस्कार के समय उनके परिवारीजनों के साथ उद्गार संस्था के साहित्यकार व पदाधिकारी मौजूद रहे। वियोगी जी साहित्य में अपने श्रृंगार व पीड़ा लेखन के लिए लंबे समय तक जाने जाते रहेंगे।
उद्गार संस्था द्वारा बताया जा रहा है कि उनके नाम से सम्मान की घोषणा शीघ्र की जायेगी साथ ही उनके स्थान पर नए अध्यक्ष की मनोनयन की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।
उद्गार के संस्थापक व त्रिगूट जोड़ी के कवि छतिश द्विवेदी ‘कुंठित’ ने साहित्यकारों को संकेत दिया है कि शीघ्र ही वियोगी जी के नाम से उनपर आधारित संस्मरणों की एक स्मारिका का प्रकाशन भी किया जाएगा। हालांकि अभी इस विषय पर अन्य साथी साहित्यकारों से चर्चा की जानी बाकी है।

प्रसंगवश संलग्नः
आदरणीय वियोगी जी द्वारा लिखित एक अविश्मरणीय गीत रचना-

“केवल तेरा नाम नहीं है”
गीतों का हर अक्षर तेरा
केवल तेरा नाम नहीं है

गीतों का संबोधन तेरा
सारे अनुप्रास तेरे हैं
संज्ञा सर्वनाम तेरे हैं
सब अनुपम विकास तेरे हैं
निहित गीत में पूजन-वंदन
खुल कर मगर प्रणाम नहीं है

गीतों के हर शब्दाक्षर में
तेरा ही अनुवाद हुआ है
आँखों के आँसू कहते हैं
बड़ा मधुर संवाद हुआ है
गीत लक्ष्य तक पहुँच न पाये
मिला उन्हें परिणाम नहीं है

मेरे गीतों में टंकित है
तेरी हर पावन अंगडाई
बीते हुआ एक युग लेकिन
गूंज रही अब तक शहनाई
तेरा नाम हृदय में मेरे
कभी हुआ गुम नाम नहीं है

दाह संस्कार के समय मणिकर्णिका शवधाम/घाट पर श्री वियोगी की विदाई की अपार पीड़ा में छतिश द्विवेदी ‘कुठित’ द्वारा लिखित एक नज्म-
“कहाँ ढूंढ पाऊंगा, तुम ना रहोगे!”
कहीं आऊँ जाउंगा तुम ना रहोगे,
तुमको बुलाऊंगा तुम ना रहोगे,
रोती निगाहें लिखायेंगी जितने
सभी गीत गाऊँगा तुम ना रहोगे!
जभी बाग जाउंगा पहले के जैसे
तुम्हें फूल लाऊंगा तुम ना रहोगे,
लेकर गए हो हंसी साथ अपने
नहीं मुस्कुराऊंगा तुम ना रहोगे!

जीतूँगा हारुंगा दुनिया की बाजी
किसको दिखाऊंगा तुम ना रहोगे,
पूछा करूँगा जमीं आसमां से
कहाँ ढूंढ पाऊंगा, तुम ना रहोगे!

क्रमशः गीत जारी रहेगा…