वर्तमान खराब सामाजिक स्थिति का जिम्मेदार कौन है ? – डॉ. राकेश कुमार
स्वास्थ्य आलेख
जब हमारे देश में मुसलमान आए तो उन्होंने धर्म परिवर्तन कराया। धर्म परिवर्तन के लिए उनकी शर्त थी कलमा पढ़ो और मांस खाओ। उस समय हमारे सभी पूर्वज जिन्होंने कलमा पढ़ा व मांस खाया वे मुसलमान बन गए और वह सभी हिंदू जिन्होंने मांस नहीं खाया, वे मार दिए गए। और कुछ लोग ऐसे भी रहे जो जंगलों में भाग गए। वही आज हिंदू हैं।
लेकिन हमारे पूर्वजों को पता था की मांस खाने के बाद वैसे भी हमारी पीढ़ियाँ मर जाएंगी। कुछ खतरनाक बीमारी से मरेंगे कुछ मानसिक बीमारी से मरेंगे, लेकिन जिंदगी नरक के समान होगी। मुसलमान को जो काम करने में लाखों हिंदुओं को काटना पड़ा फिर भी पूरा नहीं हो पाया, वही काम हमारे वर्तमान कथित विद्वान शिक्षक सिर्फ लिखाकर-पढाकर कर दे रहे हैं। हमारे छोटे-छोटे मासूम बच्चों की किताबों में लिखा है अंडा खाने से सेहत बनता है, मुर्गा-मछली, बकरा, भैंस, भेड़ के मांस को खाया जाता है। मांस खाने से हमें शक्ति मिलती है। उससे हमारा शरीर मजबूत होता है आदि ऐसी बातें लिखकर हमारे बच्चों को भटकाया जा रहा है।
इंसान एक शाकाहारी जीव है। इंसान के शरीर के सारे अंग शाकाहारी कैटेगरी के हैं। इंसान के शरीर में एक भी अंग मांसाहारी कैटेगरी का नहीं है। इसलिए मांस खाना लाभकारी है इसका सवाल ही नहीं उभरता।
अपितु मांस खाने से कैंसर, हार्ट अटैक, गठिया, लकवा, चर्म रोग लिवर फेल, किडनी फेल, ब्रेन हेमरेज इसके अलावा अनेक मानसिक बीमारियाँ आए दिन बढ़ती जा रही हैं। आए दिन पेपर में इसकी न्यूज़ निकल रही है। मांस खाने से लोगों के अंदर तामसिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। जिसके परिणाम स्वरुप समाज में ईर्ष्या, द्वेष, लालच, लूट, स्वार्थपन बढ़ता जा रहा है। जो किसी भी समाज के लिए, किसी भी परिवार के लिए या किसी भी देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
तभी तो हमारे समाज में एक प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है कि हमें सर्वाधिक फायदा मिले। उस फायदा को लेने के लिए चाहे अगले को कितना भी बड़ा नुकसान हो जाए। चाहे उसकी जान ही क्यों नहीं चली जाए। हमारा वर्तमान समाज बहुत अधिक गर्त में जा रहा है। इसके अतिरिक्त एक नयी चलन चल रही है कि मार्केट में जैसे सभी चिकित्सा पद्धति एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी के डॉक्टर को पता है कि यदि मांस और दूध के प्रोटीन को साथ में खाया जाए तो हमारे शरीर में न्यूरॉन्स लेवल की बीमारियां चर्म, कैंसर, आत का कैंसर, लिवर कैंसर के साथ अन्य सभी कैंसर की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, शरीर में सफेद दाग, अत्यधिक खुजली होना, एलर्जी आना, सांस संबंधी बीमारियां मांस और दूध को खाने से होती हैं। इस संबंध में हजारों प्रमाण हैं। आए दिन एक नयी न्यूज़ चैनल और पेपर में निकलती रहती है।
वाजूद इसके दुर्भाग्यपूण है कि वर्तमान सामाजिक परिवेश में शादी समारोह, जन्मदिन समारोह या अन्य महोत्सव पर मांस और दूध की सामग्री एक साथ खिलाया व खाया जा रहा है। उसे बेहद शान से मेहमानों को परोसा जा रहा है। छोटे बच्चों, बड़े लोग व बुजुर्गों सबको खिलाया जा रहा है। यह समझ आई कहाँ से? इसका जिम्मेदार कौन?
वे शिक्षक है जो अंध ज्ञान में होकर शिक्षक बन गए और छोटे-छोटे बच्चों को स्कूलों में, बड़े बच्चों को कॉलेज में मांस खिलाने के लिए प्रोत्साहन दे रहे हैं। मांस को बेहतर खाना बता रहे हैं।
जिम्मेदार वे डॉक्टर भी हैं जिनको पता है कि मांस खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं है बजाय बीमारियों के, लेकिन वह अपने फायदे के लिए समाज में यह गंदगी फैला रहे हैं।
जिम्मेदार वह मीडिया भी है जिसने टीवी में तथा न्यूज़ पेपर में मांस खाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है। इन सभी प्रमुख लोगों व समूहों ने पूरी समाज की जनता को तबाह कर दिया है। जरा उन परिवारों से मिलिए जिनको कैंसर हुआ है, उसके इलाज में घर, जमीन, जायदाद सब खत्म हो गया है, उनकी हाय किसको जाएगी। उन शिक्षकों को जिन्होंने अपना धर्म नहीं निभाया और गलत जानकारी बांटी या उन डॉक्टरों को जिन्होंने अपने फायदे के लिए उनको बीमार होने दिया अथवा फिर उन मीडिया कर्मियों को जिन्होंने अपने फायदे के लिए इसको और प्रचारित किया?
हाँ जिम्मेदार मैं भी हूँ जो अभी तक यह बात समझ कर कोई निर्णायक काम नहीं कर पाया। लेकिन अब काम होगा, ढंग से होगा। अब सभी जिम्मेदार लोगों पर हत्या का नैतिक मुकदमा चलाया जाएगा। क्योंकि कैंसर का मरीज मरा तो जिम्मेदार सभी होंगे। इसलिए मुकदमा सभी पर होगा। साथ में क्षतिपूर्ति भी करनी होगी।
एक सामाजिक चिंतक और आपका साथी।
डॉ. राकेश कुमार
लेखक साइकोलॉजिस्ट एंड नेचुरोपैथी के विशेषज्ञ हैं।