umashankar mishra

उमाशंकर मिश्रा – रंगमंच जिंदगी जीने अद्भुत तरीका

उमाशंकर मिश्रा, एक ऐसा रंगकर्मी जो वैसे तो है आम आदमी लेकिन उसकी आत्मा में रंगकर्म ही रचा बसा है!

भरत मुनी द्वारा रचित नाट्य शास्त्र पर आधारित रंगमंच की विधा जिसका बोलबाला तो काफी है लेकिन हमारा समाज रंगमंच को आज भी कुछ कम आंकता है, लेकिन इसी रंगमंच से सिनेमा, धारावाहिक निकल कर आये हैं। इन लोगों ने बड़े-बड़े कीर्तिमान बनाए हैं। इसी रंगमंच को लेकर कुछ सवाल उठते हंै जिनका जवाब देने के लिए हमने बात की उनसे जो रंगमंच को ही जीते हैं। फिल्म, टीवी सिरियल्स के लिए भी काम कर चुके हंै, लेकिन उनका अनन्य प्रेम रंग मंच से ही है और वह खुद को रंगकर्मी नहीं बल्की रंग सेवक कहते हैं। एक खास मुलाकात रंग मंच सेवक उमाशंकर मिश्रा से-

रंगमंच क्या है?
सबसे पहले मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूं, मेरा ये सौभाग्य है ताज नगरी से काशी नगरी में आने का।
सही मायनों में देखा जाए तो पूरी दुनिया ही रंगमंच है, सभी अपना-अपना किरदार निभा रहे हंै। रंगमंच के साथ मेरा जो अनुभव रहा है कि रंगमंच वास्तविक जीवन जीने की शैली को दर्शाता है। इससे जो भी जुड़ेगा वह जीना सीख जाएगा। रंगमंच पर जब भी कोई कलाकार पहली बार आता है तो वह रंगकर्मी कहलाता है और रंगमंच उसे आत्मविश्वास के साथ मंच पर खड़ा होना सीखाती है।

उसके बोलने का तरीका उच्चारण, पंक्चुएशन, डिक्शन इन सभी में सुधार आता है, लेकिन इससे पहले वह इसके बारे में कुछ जानता भी नहीं होगा। रंगमंच आपकों निरंतरता देती है और आप जब किसी भी कार्य को निरंतर करते रहेंगे तो उसमें निखार आयेगा ही आयेगा। निरंतरता बनी रहेगी तो ये क्या किसी भी क्षेत्र में अगर आप है तो आप बेहतर ही रहेंगे।
रंगमंच की और भी कई खूबिया हैं आपने देखा होगा कलाकार एक शब्द है जो बड़ा सामान्य सा शब्द है जैसे कोई संगीत का कलाकार, कोई पेंटिग अच्छी बनाता है उसे भी कलाकार कहते है। लेकिन जहा तक रंगमंच के कलाकारों की बात है जिसे रंगकर्मी कहते हैं उन्हें रंगकर्मी क्यांे कहते हैं? मेरा जो मानना है उसमें थोड़ा मतभेद भी है। रंगकर्मी और कलाकार में फर्क है कला तो कई तरह की होती लेकिन रंगकर्मी इससे अलग होता है और रंगकर्मी बड़ा व्यापक शब्द है। मैं तो अभी भी सीख रहा हूं इसलिए मैं खुद को रंग सेवक कहता हूं।

सवाल यह है कि आप खुद को रंग सेवक कहते हैं ये कहीं मोदी जी से प्रेरित तो नहीं?
हाहाहा! नहीं ऐसा कुछ नहीं है मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं ये तो उनका बड़प्पन है जो वह खुद को सेवक कहते हैं। मेरे हिसाब से रंगकर्मी वो है जिसे हर विधा का बेसिक ज्ञान हो, विभिन्न रंग का ज्ञान हो। रंगमंच पर आपको अलग-अलग किरदार निभाने होते हैं तो हर किरदार के बारे में जानकारी होनी चाहिए। जैसे आपके शहर के बिसमिल्ला खान साहब जो अपने फन के माहिर थे। एक रंगकर्मी को हर किरदार की जानकारी होना जरूरी है, उसे नाचना भी आना चाहिए, उसे गाना भी आना चाहिए और भी बहुत कुछ।

आपने रंगमंच पर काफी वक्त बिताया है इसके साथ ही आप फिल्म और टीवी सिरीयल में भी काम किये हैं आप इनमें कहां और क्या अंतर पाते हैं?
देखिये अपने आपको अभिनय के क्षेत्र में सिद्ध करना हो तो माध्यम सिर्फ रंगमंच है क्योंकि वहां रीटेक नहीं है। आप अच्छा कर रहे हैं तो सामने दर्शक हैं ताली बजाएंगे, वर्ना उपहास भी होगा, लेकिन फिल्मों में तो रीटेक होते हैं।

रंगमंच का अर्थशास्त्र काफी खराब है, इसके लिए ऐसा क्या होना चाहिए कि सुधार हो?
ये बड़ा विचारणीय प्रश्न है। मैं आपका इशारा समझ रहा हूं। दो तरह के रंगकर्मी हैं, व्यावसायिक रंग-कर्म और अव्यावसायिक रंग-कर्म है। व्यावसायिक रंगकर्म में पैसा बहुत है। आप मुंबई के पृथ्वी थियेटर को देख सकते हैं। वहां पर अगर मुझे अपनी संस्था का प्ले कराना है तो उसकी बुकिंग करने के लिए आपको एक साल का समय चाहिए। उस थियेटर में कोई भी नाटक चल रहा हो और वहीं सामने कोई बड़े स्टार की फिल्म चल रही हो तो लोग पृथ्वी थियेटर का रुख करते हैं।

लेकिन ये चीज सिर्फ एक ही जगह पर सीमित है पूरे भारत में ऐसा क्यो नहीं? इसे बढ़ावा क्यों नहीं मिला, क्या रंगकर्मी अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहे हैं या लोग इसे कम पसंद कर रहे हैं?
देखिये लोग इसे पसंद तो कर रहे हैं लेकिन इसका व्यावसायिकरण नहीं हो पा रहा है। इसका एक कारण शहर के अलावा गांव में भी राजनैतिक पार्टियां इन कलाकारों का इस्तेमाल करती हैं। इसमें खासकर उनका जो नुक्कड नाटक से जुड़े हैं। रंगकर्म तो बढ़ रहा है पर व्यावसायिकरण नहीं हो रहा है जिससे कलाकार को पैसा मिले।

कहीं ऐसा तो नहीं कि जो कलाकार थियेटर और नुक्कड़ विधा से जुड़ा है समाज उसकी अहमियत कम समझ रहा है?
देखिये ऐसा नहीं है कि लोग कलाकार की अहमियत कम समझते हैं। अगर ऐसा होता तो लोग हमें बुलाते क्यांे? आयोजक भी रंगकर्म की संस्था को सम्मान स्वरूप धन देते हैं लेकिन वह काफी नहीं होता है। मैं एक अव्यावसायिक रंगकर्म संस्था का प्रतिनिधित्व करता हूं। मुझे रंग कर्म करना है तो मुझे लोगों में ललक डालनी होगी और प्रस्तुति अच्छी होनी चाहिए। तब दर्शक जरूर आयेगा। इसके बाद आप कुछ टिकट लगा सकते हंै। लेकिन अगर आपने पहला नाटक ही अधकचरा दिखा दिया तो अगला आप कितना भी अच्छा नाटक कर लें दर्शक आपको देखने नहीं आयेगा।  

शिक्षा में विभिन्न प्रकार की कलाओं को जैसे संगीत, गायन आदि को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है, लेकिन रंगकर्म को नहीं किया गया है, क्या इसके लिए कोई पहल सरकार की ओर से की जा रही है?
सरकार की ओर से तो नहीं लेकिन रंगकर्म की ओर से की जा रही है। आगरा के हैं एक केशव प्रसाद सिंह जी। उन्होंने केंद्र सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है कि रंगकर्म को पाठ्यक्रम में लाया जाए। शिक्षा में रंगमंचीय गतिविधियां बढ़नी चाहिए। अब देखिये पीजी लेवल तक संगीत है पेंटिग भी, नृत्य भी है। लेकिन नाटक को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए तो ये सारी विधाएं इसमें शामिल हो जाएंगी। नाटक में आपको संगीत भी चाहिए, चित्रकारी भी चाहिए तो इसमें सारी चीजों का समावेश है। इसिलिए भरत मुनी के नाट्य शास्त्र को पंचम वेद की संज्ञा दी गयी है।

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