काशी के हरिश्चंद्र घाट का पूरा इतिहास ” हरिश्चंद्र घाट को जाने “
अनिवार्य प्रश्न । डेस्क
काशी के घाटों में प्रमुख माना गया है। यह घाट मैसूर घाट एवं गंगा घाट के बीच में है। इस घाट पर हिन्दुओं अंतिम संस्कार दिन-रात व बारह मास किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां शव का अन्तिम संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बनारस में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए राजा हरिश्चंद्र घाट के साथ ही मणिकर्णिका घाट भी प्रमुख रहा है। हरिश्चद्र घाट के ही डोम ‘कल्लू डोम’ ने राजा हरिश्चंद्र को खरीदा था। जिससे इसका नाम राजा हरिश्चंद्र घाट पड़ा। हरिश्चंद्र घाट के पास तब के काशी नरेश ने एक भव्य भवन ‘‘ डोम राजा ‘‘ के रहने के लिए दान में दिया था। यह परिवार स्वयं को पौराणिक काल में वर्णित ‘‘कल्लू डोम ‘‘ का वंशज मानता है। घाट पर चिता के अंतिम संस्कार के लिए सभी सामग्री जैसे लकड़ी, कफन, धूप व रोली इत्यादि सभी की दुकाने मौजूद हैं।
‘‘घाट का इतिहास’’
इस घाट का इतिहास राजा हरिश्चंद्र से जुड़ा है। हरिश्चंद्र भगवान राम के रघुकुल में ही जन्मे थे। राजा हरिश्चंद्र के बेटे की मृत्यु के बाद उन्हें अपने पुत्र के शव दाह संस्कार के लिए डोम राजा से आज्ञा मांगनी पड़ी थी। जिसके बाद उन्होंने एक वचन के अनुसार नौकरी की। तब बिना दान के दाह संस्कार धर्मानुसार मान्य नहीं होता था। नौकरी के दर्मियान ही एक बार राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दान में लेकर अपने ही पुत्र का दाह संस्कार किया था, तभी से ये परम्परा आज-तक चलती आ रही है।
‘‘डोम राजा व उसका परिवार’’
डोम राजा के परिवार में इस समय करीब 150-175 लोग हैं। जो सिर्फ काशी ही नहीं बल्कि जौनपुर, बलिया, गाजीपुर के अलावा अन्य जगहों पर भी रहते हैं। काशी वो जगह है जहां मृतक को सीधे मोक्ष प्राप्त होता है इसलिए यहां इन डोम राजाओं का बड़ा महत्व है।
‘‘बड़ा दुखदाई’’
हालांकि अब राजा हरिश्चंद्रकाल की भांति साड़ी के एक टुकड़ा से दाह कर्म पूरा नहीं होता। आज के समय में यहां और मणिकर्णिका घाट पर भी व्याापक बाजार पसरा हुआ है। जहां भावनापूर्ण धर्म दक्षिणा नहीं अपितु रिजर्व बैंक का रुपया चलता है। सरकारों का ध्यान भी शवदाह स्थलों पर नहीं गया है अतः इन तक पहुंचने के अलावा शवदाह की भी उचित व्यवस्था नहीं है। गरीबों को अब यहां भी शरण नहीं है।