काशी के नित्यानन्द तिवारी ने चरीतार्थ किया हरिश्चन्द्र घाट से हरिश्चन्द्र का चरित्र…
आज समाज में जहाँ लोग भावनात्मक रुप से असंवेदनशील होते जा रहे वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निःस्वार्थ भाव से समाज के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने की भी चाह रखते हैं। ऐसे शख्सिायत को पहचान कर उनके सत्यकर्मो को समाज के सामने लाना और सम्मानित करना ही अनिवार्य प्रश्न का उद्देश्य है। इसी कड़ी में अपने शहर के एक शख्सियत जिनका नाम है नित्यानन्द तिवारी, जिन्होंने लावारिश शवों का अन्तिम संस्कार करने का वीड़ा उठाया है और अब-तक 4000 से ज्यादा शवों का अन्तिम संस्कार कर चुके हैं। हमारे संवाददाता का इनसे हुई भेंटवार्ता का एक अंश…
लावारिश शवों के अन्तिम संकार का विचार आप के मन में कब और कैसे आया?
माता जी की पुण्यतिथि को जब हरिष्चन्द्र घाट पर श्राद्ध कराने के लिए जा रहे थे तब हरिश्चन्द्र चैराहे पर एक रिक्से वाले को बोरे में एक लाश ले जाते देखा साथ में पुलिस वाला भी था। तब मैंने ये सोचा कि इसे कहाँ ले जा रहे है जब पूछताछ किया तो महेन्द्र चैधरी जो कि घाट पर लाश लाने का काम करता है, उसने बताया कि ये लावारिश लाश है, जिसे ये लोग खर्चा बचाने के लिए शव को पत्थर से बांधकर गंगा जी में डूबा देते है। तब मेरे मन में ये विचार आया कि कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाये, जिससे लावारिश शव को जलाने से गंगा जी प्रदूषण से बचेंगी और मानवता भी बची रहेगी। उसी समय मैंने निर्णय लिया और महेन्द्र चैधरी से संम्पर्क बनाकर शव को जलाने के लिए उसमें होने वाले खर्चे के बारे में तय किया। जो की 1100 रुपए जलाने के लिए और अपनी आर से 50 रुपए कफन के लिए तय कर दिया।
आप यह कार्य कब से कर रहें हैं?
3 सितम्बर 2013 से ही शुरु किया था।
यदि कोई फोन करता है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
उसके लिए मो. न. 9889269736 है। फोन आने के बाद शव घाट पर ले जाकर दाह संस्कार करवा देते हंै। जो की सूचना के तौर नजदीकी थाना या पुलिस चैकी को सूचित करके ही कराया जाता है! पूरा विवरण अपने पास रखते है।
अब तक आप कितने शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं?
अब-तक 4000 लाशों का। वाराणसी, चन्दौली, भदोही, के थाने से और जी. आर. पी. से भी फोन आते हंै?
इस कार्य में आप को क्या-क्या मुश्किलें आती हैं ?
जब कोई मुस्लिम का शव होती है तो उसमें क्रिया-कर्म में समय ज्यादा और पैसा भी लगभग- चार से पांच हजार रुपउ लग जाता है। मुझे यहाँ थोड़ी मुश्किलें आती हैं।
किन-किन लोगों से आप को सहयोग प्राप्त होता है और किस प्रकार का?
किसी से कोई मदद नहीं मिलती, किसी भी प्रकार की।
अब-तक कोई ऐसी घटना जो आप के लिए अविस्मरणीय रही हो?
ऐसी घटनाएँ बहुत सी आती हैं पर एक घटना भदोही में हुई थी, एक बेटे ने अपनी ही माँ को काट कर उसे मार दिया था। मेरी इस कार्य के पीछे मेरे माँ की भावना आ गयी थी।
क्या आप कुछ वारिश लाशों का भी अंतिम संस्कार करवाते हं, अगर हां तो किन परिस्थितियों में?
हाँ वारिश शवोें का भी अन्तिम संस्कार कराता हूं, जैसे कोई बाहर से इलाज करवाने आया हो और मृत्यु हो जाने के बाद अन्तिम संस्कार पैसे के अभाव में नहीं कर पा रहा हो। या जो गरीब आदमी है उसको मदद देता हूं।
क्या आप समाज को कोई सन्देश देना चाहते हैं?
मेरा समाज के सभी लोगों को एक ही सन्देश है, कि कोई भी शव गंगा में न बहाया जाये। माँ गंगा को स्वच्छ और सुन्दर रखा जाये।
क्या आप लोगों से आर्थिक सहायता भी लेते हैं या इसके लिए सरकारी अनुदान प्राप्त करते हैं?
किसी से कोई आर्थिक सहायता नहीं लेते हैं और न किसी प्रकार का सरकारी अनुदान लेते हैं। लेकिन हमें जानकरी मिली है कि लावारिश शवों के लिए बतौर खर्चा 2300 रुपए पुलिस विभाग को आता है, लेकिन कहाँ से और कैसे आता है मुझे पता नहीं है।
एक व्यक्ति के अन्त्येष्टि का बोझ उसका अपना परिवार भीे नहीं उठा पाता। ऐसे में अनेक व्यक्ति के अन्त्येष्टि का बोझ जो भावनात्मक भी और आर्थिक भी होता है आप अकेले कैसे उठा लेते हैं?
अपने स्वयं के खर्चे में से कटौती करके इन कार्यों को करता हूँ अपनी भावनाओं के कारण।
आप कैसे जान पाते हैं कि लाश हिन्दू की है या मुश्लिम की?
शव के धर्म की पहचान पुलिस विभाग द्वारा दिये गये पोस्टमार्डम रिपोर्ट के आधार पर की जाती है? स्लामिक शवों में खर्च कुछ ज्यादा लगता है। लेकिन संकल्प तो संकल्प होता है। मैं अपने शपथ पर कायम हूं।