‘माँ सरस्वती चालीसा’ एवं ‘धरणीसुता’ पुस्तक का लोकार्पण संपन्न
अनिवार्य प्रश्न। ब्यूरो संवाद।
हनुमान चालीसा के बाद काशी ने दुनिया को दिया फिर एक ‘माँ सरस्वती चालीसा’
काशी से विश्व को मिला नया चालीसा
वाराणसी। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा को पूरा विश्व पढ़ता व पूजता है। इसी क्रम में काशी से वरिष्ठ कवि व कथाकार राजेंद्र प्रसाद गुप्त बावरा द्वारा ‘माँ सरस्वती चालीसा’ और ‘धरणीसुता’ नामक दो भोजपुरी ग्रन्थों की भेंट मिली है।
गत दिवस ‘स्याही प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित व ‘उद्गार’ संगठन के सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘माँ सरस्वती चालीसा’ और ‘धरणीसुता’ का लोकार्पण भोजूबीर, सरसौली स्थित ‘स्याही प्रकाशन’ के ‘उद्गार सभागार’ में संपन्न हुआ। इस पुस्तक को वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र प्रसाद गुप्त ‘बावरा’ ने लिखा है एवं ख्यात प्रकाशक व संपादक पण्डित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ ने संपादित किया है। उल्लेखनीय है कि हनुमान चालीसा के बाद इस काव्य रचना ‘माँ सरस्वती चालीसा’ के लोकार्पण की खूब सराहना की गई।
कार्यक्रम में बतौर और अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायाधीश डॉक्टर चंद्रभाल ‘सुकुमार’, मुख्य अतिथि आचार्य आलोक द्विवेदी, बतौर प्रकाशक पण्डित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ के साथ अतिथिजनों में उदय प्रताप इंटर कॉलेज के प्रधानाध्यापक रमेश सिंह एवं उसरी चकिया महाविद्यालय के डॉक्टर अभिषेक पाण्डेय प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन डा. लियाकत अली ने किया। अवसर विशेष पर कवि डॉ. महेन्द्र नाथ तिवारी अलंकार व कवि बावरा का नागरिक अभिनन्दन भी किया गया।
कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉक्टर चंद्रभाल ‘सुकुमार’ ने कहा की बावरा जी ने धरणीसुता व मां सरस्वती चालीसा लिखकर एवं इस संसार को सौंप कर संसार का बड़ा भला किया है, साथ ही विगत 15 वर्षों से मोदी जी जैसे बनारस को भौतिक रूप से संवार रहे हैं वैसे ही प्रकाशक व सम्पादक ‘कुण्ठित’ जी भी सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, शैक्षिक व साहित्यिक रूप से काशी सहित देश को संवार रहे हैं। हम इन दोनों मनीषियों को बहुत-बहुत बधाई देते हैं। साथ ही यह कृति हनुमान चालीसा व मानस की तरह ही समाज में आदृत की जाए ऐसी शुभकामना देते हैं। अपने प्रकाशकीय वक्तव्य में पण्डित छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ ने कहा की ‘स्याही प्रशासन’ द्वारा प्रकाशित सैकड़ों ग्रन्थो और पुस्तकों में कवि ‘बावरा’ जी की ये दोनों पुस्तकें भक्ति मार्ग की अनोखी पुस्तकें हैं। ‘बावरा’ जी की रचनाएं भक्ति मार्ग की होने के साथ-साथ दुनिया के ईश्वर प्रार्थना के रीति में प्रयोग आयेंगी। साथ ही इससे ईश्वर की प्रार्थना की जा सकेगी। लेखक भोजपुरी, अवधी व ठेठ जैसी अनेक लोग प्रयुक्त मनोरम भाषाओं में मिश्रित शैली में लिखी गई है। हालांकि भोजपुरी के अधिक शब्द प्रयोग होने के कारण यह रचना भोजपुरी काव्य की सूची में ही सम्मिलित की गई है। शीघ्र ही दोनों ग्रन्थ पाठकों के लिये ऑन लाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हो जायेंगे।
कार्यक्रम के बाद हुए कवि सम्मेलन में चन्दौली, जौनपुर व वाराणसी के सैकड़ों कवियों ने भाग लिया, जिसमें दयाशंकर प्रसाद ‘करूण’, सुनिल सेठ, नंदलाल राजभर, डॉक्टर शरद श्रीवास्तव, बुद्धदेव तिवारी, सिब्बी ममगाई, विंध्यवासिनी मिश्र, जीएल पटेल, संध्या मौर्या, आनंदपाल, रामनरेश पाल, शिवदास जी, आशिक बनारसी, खलील अहमद राही, अजफर बनारसी, समीम गाजीपुरी, सिद्धनाथ शर्मा, गोपाल केसरी, गोपाल कृष्ण सेठ, शारदा पाल, चंद्र भूषण सिंह, विजय चंद्र तिवारी, तेजबली अनपढ़, आलियार प्रधान, डॉक्टर आरती सिंह, प्रियांशु मिश्रा, अरुण कुमार केसरी, दीपक शर्मा, अंजली मिश्रा, अचला पाण्डेय सहित सैकड़ों साहित्यकार प्रमुख रूप से शामिल रहे।