Modern analog can aid in the interpretation of the vegetation and climate of the past

आधुनिक एनालॉग अतीत की वनस्पतियों और जलवायु की व्याख्या में सहायता कर सकता है


अनिवार्य प्रश्न। संवाद।


नई दिल्ली। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की मिट्टी से पराग पर निगाह रखने वाला नया अध्ययन जलवायु और वनस्पति परिवर्तन की व्याख्या कर सकने के साथ ही राष्ट्रीय जैव विविधता मिशन को सूचित
करने में भी सहायता कर सकता है जलवायु परिवर्तन किसी भी क्षेत्र में आवधिक वनस्पति परिवर्तन के लिए एक गतिशील प्रक्रिया है। फिर भी, राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता संरक्षण के लिए अत्यधिक संरक्षित क्षेत्र हैं। प्रतिकूल और अप्रत्याशित मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति तथा उनकी तीव्रता में वृद्धि, राष्ट्रीय उद्यानों में जैव विविधता की हानियों के प्रमुख चालकों में से एक है। ऐसी परिस्थितियों में, भविष्य के जलवायु मूल्यांकन में सटीकता महत्वपूर्ण है और ऐसे कठोर जलवायु मॉडल की आवश्यकता होती है जो आधुनिक और पिछले जलवायु डेटा इनपुट का उपयोग करके बनाए जाते हैं और जो अच्छी तरह से दिनांकित प्रॉक्सी आधारित पुरा-पुनर्निर्माण (पेलियो-रिकंस्ट्रक्शन्स) से उभरे हैं। असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी), भारतीय उप-क्षेत्र में इंडो-मलायन जीवों के सदस्यों के आव्रजन के लिए एक ऐसा गलियारा (कॉरिडोर) है, जो उन उष्णकटिबंधीय प्रजातियों (ट्रॉपिकल स्पीशीज) के लिए एक महत्वपूर्ण रिजर्व है, जो हिमनद अवधि के दौरान इन वर्गाे (टैक्सा) के लिए गुणसूत्र (जीन) भंडार के रूप में कार्य करता है।

इसे ध्यान में रखते हुए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी पुरा-विज्ञान संस्थान (बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज -बीएसआईपी) के वैज्ञानिकों ने असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न वनस्पति सेटिंग्स से किसी क्षेत्र विशेष की अतीत की वनस्पतियों और जलवायु की व्याख्या के लिए पराग (पॉलेन) एवं गैर-पराग पैलिनोमोर्फ (एनपीपी) पर आधारित एक आधुनिक एनालॉग डेटासेट विकसित किया है। यह अध्ययन जैविक प्रक्रियाओं (बायोटिक प्रॉक्सीज) की क्षमताओं और कमजोरियों दोनों का मूल्यांकन करता है और यह आकलन करता है कि आधुनिक पराग और एनपीपी एनालॉग कितने विश्वसनीय रूप से विभिन्न पारिस्थितिक वातावरणों की पहचान कर सकते हैं और इस क्षेत्र में लेट क्वाटरनरी पैलियो-पर्यावरण और पारिस्थितिक परिवर्तनों की अधिक सटीक व्याख्या करने में आधार रेखा के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। अतीत और भविष्य के जलवायु परिदृश्य को समझने के लिए इस उच्च वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आधुनिक पराग एनालॉग एक शर्त है, पुरापारिस्थितिक (पेलियोइकोलॉजिकल) डेटा राष्ट्रीय उद्यान में और उसके आसपास स्थायी भविष्य के अनुमानों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करेगा। यह सार्वजनिक और वन्यजीव प्रबंधन एजेंसियों को राष्ट्रीय उद्यानों में वनस्पतियों और जीवों विशेषकर शाकाहारी जीवों के संबंध को समझने में सहायक बन सकता है ताकि इसे वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं के लिए संरक्षित किया जा सके और अंततः राष्ट्रीय जैव विविधता मिशन (नेशनल बायोडाइवर्सिटी मिशन) को सूचित किया जा सके।