Dark city, messed up administration - a social sketch

अंधेर नगरी, चौपट प्रशासन – एक सामाजिक रेखांकन


बेसमेंट, मीडिया रिपोर्ट, और सरकारी आदेश पर एक सामाजिक रेखांकन प्रस्तुत कर रहे हैं वरिष्ठ लेखक पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’


गत दिनों हुई बारिश के बाद दिल्ली में एक कोचिंग संस्थान व पुस्तकालय के बेसमेंट में घटी घटना से कुछ विद्यार्थियों के जान माल की छति हुई है एवं उसके परिजनों को बहुत पीड़ा हुई है। इसके साथ ही मीडिया की प्रचुर कवरेज के बाद पूरे देश को इस घटना का दुख हुआ और पूरे देश की भावांजलि तथा संतप्त संवेदना उन परिवारों के साथ आज दिखाइ दे रही है।

घटनाक्रम का संदर्भ लेकर उत्तर प्रदेश सरकार में अपर मुख्य सचिव डॉ नितिन रमेश गोकर्ण का एक आदेश समस्त विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, समस्त विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं विनियमित क्षेत्र के सभी सक्षम प्राधिकारियों को जारी हुआ। जिसमें बेसमेंट के नियम अनुसार संचालन का निर्देश था। सही है ऐसा आदेश आना चाहिए। सरकार के लिए सुरक्षा पहली बात है, लेकिन हर आदेश के साथ एक जनहित का न्यायोचित संदर्भ जुड़ा होता है। तमाम संवेदनशीला व उसके संभावित परिणाम को देखा जाता है फिर कोई आदेश निर्गत किया जाता है। डॉक्टर गोकर्ण ने जो आदेश निर्गत किया है संभवत उन्होंने उसकी पूरी गहराई से समीक्षा व उसके परिणामों का पूर्वानुमान नहीं लगाया होगा, अगर लगाते तो पूरे प्रदेश में एक साथ सभी बेसमेंटों को खाली करने या नियमानुसार कार्यवाही करने का आदेश निर्गत नहीं करते।

आदेश को आते ही सभी विनियमित क्षेत्र के प्राधिकरण आदेश के क्रियान्वयन में लग गए। खासकर इतनी चुस्ती तो किसी भी आदेश के पालन में कभी नहीं दिखाई देती थी। बेसमेंट में आदेश के पालन हेतु सक्रियता से इसके कई दुष्परिणाम भी त्वरित रूप से दिखाई देने लगे हैं।

अनेक पुस्तकालय बंद कर दिए गए, कोचिंग संस्थान बंद हुए, जहां काफी भीड़ व बच्चों की अच्छी संख्या आती जाती थी। बेसमेंट के खिलाफ की गई इस कार्यवाही में कुछ मकान मालिकों का आंशिक नुकसान जो भी हुआ होगा लेकिन लघु व्यापारियों व छोटे उद्यमियों की व्यवस्था अचानक से चौपट हो गयी है। साथ ही वहां काम करने वाले सेवाकर्मियों की नौकरी भी नही रहीं।

सरकार के तमाम प्रयासों और रोजगार के कई उपक्रम विकसित करने के बाद भी बेरोजगारी की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है और इतनी बढ़ रही है कि समाज में गरीबी और दूसरी अन्य तरह की समस्याएं भी जो सामाजिक अराजकता को बढ़ाती हैं वह पनप रही हैं। ऐसे में बेसमेंट को तत्काल बंद कर देने का आदेश बेरोजगारी तथा उद्यमहीनता को और बढ़ा रहा है। स्थिति बद से बदतर हो रही है। दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश की बात करें तो कई लाख लोग अपने रोजगार के साधन, व्यवसाय व उद्यम से अचानक वंचित हो गए हैं और कहीं-कहीं वंचित होने का क्रम जारी है। प्रतिष्ठानों में सेवा देने वाले कर्मचारी भी कोरोना काल की आपदा की तरह या तो रोजगार रहित हो रहे हैं या हो चुके हैं। उनकी मिलने वाली तनख्वाह और मासिक आय का आगे क्या होगा अभी इसका कुछ भी स्पष्ट नहीं है। साथ ही ना ही प्रशासन इस बात की चिंता कर रहा है।
एक अध्ययन बता रहा है कि राजनीति में भी अभी तक किसी पार्टी की सरकार में बेसमेंट की इस तरह की प्रदेशव्यापी बंदी का आदेश व नियमानुसार संचालन का कठोर प्रतिबन्ध नहीं किया गया है।

एक मकान मालिक ने अपने नाम न छापने के वादे पर बताया कि पूरे प्रदेश में विकास प्राधिकरण के परिक्षेत्र में ही नहीं बल्कि गांव गांव में कई लाख लोग हैं जो बेसमेंट में स्थान लेकर व्यापार कर रहे हैं या तो वह स्थान उनका स्वयं का है या वह स्थान किराए पर लिए हैं।

प्राधिकरणों के परिक्षेत्र में आने वाले बेसमेंटों के लिए तमाम नियम व कायदे हैं लेकिन निर्माण के समय ऐसे प्राधिकरण घूस खाकर आंख मूंद लेते हैं। फिर धीरे-धीरे समाज अपने आय के स्रोतों की चाह में ऐसे स्थान पर कारोबार करने लगता है। बाद में सरकार अचानक किसी घटना विशेष का हवाला देकर पूरे समाज पर दबाव बना देती है। जिससे अचानक बेरोजगारी व रोजी का संकट उत्पन्न हो जाता है।

बनारस में भी अब वीडीए वाले गली-गली जांच कर रहे हैं और जांच में अनेक बेसमेंट के निर्माण गलत पाए जा रहे हैं, अथवा उनका संचालन गलत मिल रहा है। अनेक बेसमेंटों का तो नक्शा भी पास नहीं है। नक्शा पास करने के समय भी यही लोग घूस लेते हैं और नक्शा पास नहीं करते। मकान के निर्माण में इसी तरह कई समस्याएं आती हैं।

उसी मकान मालिक ने आगे बताया कि सबका मकान चेक किया जाए तो दो प्रतिशत लोगों का भी नक्शा पास कर शहर में मकान नहीं बनता और साथ ही बनता भी है तो कुछ ना कुछ अदल बदल जाता है। ऐसे में बेसमेंट में निर्माण और उसके प्रयोग पर कठोरता से नियम लागू करना अनेक लोगों के रोजी-रोजगार तथा जीवन को प्रभावित किया है। खासकर व्यापारियों के सामने सहसा रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

हालांकि अतीत में इस तरह की उग्र प्रशासनिक गतिविधि देखने को नहीं मिली है। समय-समय पर फुटपाथ पर व्यापार करने वाले व्यापारीजनों पर ऐसी कठोर कार्रवाई देखने को मिलती है लेकिन बेसमेंट पर अब तक ऐसा नहीं किया गया है।

सरकार चाहे जिसकी भी हो उसे इतनी जरूर परवाह रखनी चाहिए कि किसी भी आदेश/अध्यादेश के बाद नागरिक का जीवन रोटी प्रबन्ध ध्वस्त न हो। आदेश/अध्यादेश का समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन अवश्य किया जाना चाहिये। यह ध्यान रखना जरुरी है कि कोई आदेश/अध्यादेश इतना नकारात्मक ना हो कि किसी को जीवन बिताना भी मुश्किल हो जाए।

बेसमेंट में क्रियाकलाप करने पर प्रतिबंध लगाने के समय बेसमेंट का जोखिम परीक्षण होना चाहिए। साथ ही व्यापाररत आदमी के रोजी संकट का मूल्यांकन अवश्य किया जाना चाहिये। अगर संकट है तो कार्यवाही कितनी जरुरी क्यों न हो कुछ वक्त अथवा विस्थापन देना अनिवार्य होना चाहिये। सरकार को पत्रकारिता के शोर में फैसले न लेकर जन संरक्षण और समाज पोषण से लक्षित निर्णय लेना चाहिये।

प्रदेश क्षेत्र में ऐसे भी बेसमेंट हैं जो नाम मात्र के बेसमेंट हैं। उनका आधे से अधिक भाग ऊपर है और उसमें प्रवेश तथा निकाश के कई द्वार व रास्ते हैं। उनमें कई सीढ़ियां भी उतरती हैं। जिन बेसमेंटों में खतरा नहीं है उनके संचालन की सामयिक अनुमति दे दी जानी चाहिए। क्योंकि देश की स्थिति रोजगार को लेकर बड़ी खराब है। हालांकि सरकार कोई नियम थोपते समय इतना ध्यान नहीं दे पाती। सम्भवतः डॉक्टर गोकर्ण महोदय जब यह आदेश जारी किए होंगे तब उनका इसके परिणाम का वह अनुमान नहीं रहा होगा जो आज सामने है। उत्तर प्रदेश में इस बेसमेण्ट बन्दी का दुष्परिणाम व्यापक देखने को मिल रहा है।

हालांकि यहां एक दुखद पहलू और भी है। व्यापारिक हित के लिये प्रदेशभर में जो भी व्यापार मंडल संगठित व सक्रिय हैं वे भी इस विषय पर उदासीन हैं। सरकार के इस आदेश की मुखालफत करने में सभी व्यापार मण्डल डर रहे हैं।

उनको लगता होगा कि दिल्ली में तीन बच्चियों के मरने के बाद सरकार का यह आदेश उचित है। हालांकि सरकार का यह आदेश सामाजिक संदर्भ में और बेसमेंट निर्माण व रखरखाव नियमावली आधार पर उचित भी है।

लेकिन जीवन का अपना नियम है। ऐसे अनेक परिवार हैं जो शासन की इस शख्ती के बाद भुखमरी की कगार पर आ गये हैं। अनिवार्य प्रश्न यह है कि निस्कासितों के बाल-बच्चों के साथ अगर कोई मुसीबत होगी तो उसका जिम्मेदार किसको ठहराया जाएगा? बढ़ी बेरोजगारी के बाद घटनाओं की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या प्रकृति लेगी? या वह मकान मालिक लेंगे जिन्होंने धन कमाकर शख्ती से संचालन से हाथ खड़े कर लिया? या वह सरकार लेगी जो एक घटना के बाद दूसरे घटना को जन्म देने जा रही है?

समझना, जीना तथा कष्ट भोगना आम आदमी को है। इस आम आदमी में कुछ बेसमेंट में उद्योग धंधा लगाकर जीने वाले व्यापारीजन भी हैं। मैं सबके जीवन में शुभ मंगल हो ऐसी कामना करता हँू और आशा करता हूँ अंधा हुआ प्रशासन व शीर्श पर बैठे विद्वान लोग आम आदमी की पीड़ा को देखेंगे और योगी आदित्यनाथ भी इस गंभीर पहलू पर थोड़ी संवेदना दिखायेंगे। और तत्काल प्रभाव से स्थिति का सही मूल्यांकन कर केवल जोखिम भरे बेसमेंटों को बंद किया जाये, बाकी को जीविकोपार्जन के लिए संचालन यथावत करने दिया जाये। सबसे पहले जरुरी है कि सभी विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाएं। जलभराव न हो, पानी निकास सुव्यवस्थित हों।

मैं मानवतावादी होने के कारण हमेशा ‘जीवन’ के साथ खड़ा हूँ। जीवन अपने आप में एक नियम है और जीवन अपने आप में एक कानून है। जिसके लिए बेहद भावुकता की आवश्यकता पड़ती है। शासन स्तर पर भी और समाज स्तर पर भी।