कौन है सदगुरु?-डॉक्टर डी. आर. विश्वकर्मा
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर एक चिंतन
भारत की गणना एक ऋषि प्रधान देश में होती है। यहाँ की पावन धरा पर अनगिनत संत, महात्माओं, गुरुओं ने समय समय पर जन्म लिया है और जिनके द्वारा आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं की ऐसी नींव रखी गयी है कि जिस पर चल कर आज भी कोई व्यक्ति अपने जीवन के सर्वाेच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। इसीलिए आज भी हम सच्चे गुरुओं के प्रति आदर श्रद्धा और कृतज्ञता का भाव रखते हैं। भारतीय परम्परा में गुरु का अत्यधिक महत्व है। गुरु को एक शिक्षक मार्गदर्शक विशेषज्ञ और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाला एक श्रद्धेय व्यक्ति माना जाता है। गुरु को हम साधनाओं का स्रोत भी मानते हैं। व्यक्ति के चिंतन ज्ञान आध्यात्मिक विकास हेतु ही एक प्रतिनिधि सभ्यता का विकास हुआ जिसे गुरु परम्परा या संत परम्परा के नाम से जाना जाता है।
अब आइए! देखें गुरु कहते किसे हैं? गुरु संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है अंधकार को दूर करने वाला। गुरु का अर्थ भारी से भी लगाया जाता है। गुरु को कहीं-कहीं वर्णन करने वाला सुनाने वाले के रूप में भी परिभाषित किया जाता है।
सच्चा गुरु वही होता है जो धर्मज्ञ, धर्मपरायण, शास्त्र सम्मत उपदेश देने वाला, सत्य का अनुसरण करने वाला और ईश्वर में लीन रहता है। सच्चे गुरु में लोभ मोह अहंकार जैसे अवगुण नहीं होते वह अपने शिष्यों के प्रति समर्पित होकर धर्म नीति का पालन करते हुए कर्म करता है। वह निष्कपट दयालु, कृपालु, सरल, सहज होता है। वह अपनी आंतरिक शक्ति से शिष्य के अंधकार व अज्ञानता को दूर कर सकने में समर्थ होता है। वह लोगों को सत्य के प्रकाश को उद्घाटित कर अपने शिष्यों को आनन्द की अनुभूति कराने में सक्षम होता है।
गुरु शिष्य के आध्यात्मिक कल्याण के लिए उसके भाग्य का भार भी अपने ऊपर लेता है इसीलिए उसे महान आध्यात्मिक पिता कहा जाता है। गुरु की आंतरिक शक्ति व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना में बदलाव लाने में भी मदद करती है। सच्चे गुरु में कार्य करने वाली शक्ति अवयक्तिक एवं अनन्त होती है। गुरु अपने आस पास के लोगों में दिव्य शक्ति चेतना प्रकाश पवित्रता एवम् आनन्द बिखेरता है। वह ज्ञान और अनुभव में प्रतिष्ठित व्यक्तित्व रखता है।
सच्चा गुरु शिष्य की चेतना में प्रवेश करने और उसे सत्य के उच्चतर प्राप्ति के मार्ग पर भी ले जाने में समर्थ होता है। गुरु मौन में भी शिक्षा देने की हैसियत रखता है।उसकी शक्ति सभी जीवों के कल्याण के लिए होती है। वह “सर्वभूत हिते रतः”होता है। एक सच्चे गुरु में भूत वर्तमान और भविष्य को देखने की शक्ति होती है, इसीलिए वह त्रिकाल द्रष्टा कहलाता है। वह सद्भाव आंतरिक दिव्यता बोध के कारण चमकता रहता है।
अब थोड़ा सच्चे गुरु की कृपा पर भी दृष्टि पात कर लिया जाय। भ्राता श्री व बहनों हमारे ग्रंथों पुराणों में उसकी कृपा का विस्तार से चर्चा की गई है। कुछ का उद्धरण मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
मानव योनि में आध्यात्मिक मार्गदर्शन में गुरु कृपा का सर्वाेत्तम स्थान है। गुरु जब कृपा करते हैं, तो व्यक्ति सात्विक वृत्तियों से उन्नत होता हुआ गुणातीत अवस्था सहज ही प्राप्त कर लेता है। तपस्वियों ने सदैव गुरु को सर्वाेच्च स्थान दिया है।
श्री गुरं परमानन्दम बन्दे स्वानन्द विग्रहम।
यस्य सानिध्य मात्रेन चिदानंदायते तनुः।।
(गोरक्ष शतक -१)
भावार्थ-मैं अपने गुरुदेव की बन्दना करता हूँ जो साक्षात् परमानन्द है, जो सच्चिदानंद स्वरूप, आनन्दविग्रह अथवा मूर्तिमान आनन्द है,जिसके सानिध्य मात्र से यह शरीर चिदानन्द स्वरूप हो जाता है।
अधोश्वर भगवान राम का कथनः
सद्गुरू वह है जो अपने शिष्य को अपने जैसा सद गुरु बनाने की क्षमता प्रदान करता है।
मौलाना रूम का कथनः
यदि मालिक का दीदार चाहते हो तो जाकर गुरु के दरबार में बैठो।
चाणक्य का कथनः
साधु तीर्थ स्वरूप होते हैं।उनका दर्शन ही पुण्य है।तीर्थ का फल कुछ समय बाद मिलता है,पर साधु की संगति तत्काल फलदायीनी होती है।
कबीर दास जी कहते हैंः
तीरथ गये एक फल,सन्त मिले फल चारि।
सद गुरु मिले अनन्त फल,कहें कबीर विचारि।।
एक और कहावत-
संत मिलन को जाइए,तज ममता अभिमान।
ज्यों ज्यों पग आगे बढ़े,कोटिन्ह यज्ञ समान।।
पवित्र क़ुरान में वर्णित है
(हे मुहम्मद) मैंने तुमको और मनुष्यों के लिए(जो अच्छे कार्य करने वाले हैं) सुख संवाद सुनाने और बुरे कर्म करने वालों को बुरे परिणाम से) सचेत करने वाला बनाकर भेजा है, लेकिन अधिकांश लोग उस बात को नहीं समझते।
गुरु की महिमा पर एक दोहा यह भी कहता है-
यह तन विष की वेलरी,गुरु अमृत की ख़ान।
शीष दिये सद गुरु मिले,तो भी सस्ता जान।।
एक अंग्रेज़ी विद्वान ने लिखा है-
O, wise man! You associate with the best Guru who will keep you away from your enimies (lust,anger and greeds)
हमारे आर्ष ऋषियों का कहना-
गुरु बिन भव निधि तरे न कोई।
जौ विरंची शंकर सम होई।।
अब उपरोक्त विवेचन से हम सारांश तौर पर सच्चे गुरु की विशेषताएँ निम्नांकित रूप में उद्धृत कर सकते हैं-
१ सच्चा गुरु ज्ञानवान और सत्य का जानकार होता है।
२ वह कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का जानकार होता है।
३ उसकी वाणी शिष्यों के मन के संशय दूर करने में सक्षम होती है।
४ उसकी उपस्थिति मात्र से शिष्यों में प्रसन्नता और शांति का अनुभव होने लगता है।
५ वह शिष्यों और लोगों की भलाई हेतु ही संपर्क रखता है।
६ वह शिष्यों और अन्य लोगों से कुछ नहीं चाहता।
७ सच्चे गुरु का सब प्रयत्न शिष्यों अन्य लोगों और सभी जीव जंतुओं के कल्याण के लिए होता है।
८ सच्चे गुरु के सानिध्य में शिष्य की इच्छा लक्ष्य को पाने हेतु स्वयं बढ़ती है।
९ सच्चे गुरु के दर्शन मात्र से बुरे कार्य करने की मंशा समाप्त होने लगती है और अनिष्ट दूर हो जाता है।
इसीलिए कहते है कि गुरु की पूजा सभी पूजाओं से बढ़कर मानी जाती है, क्योंकि गुरु हमारा रक्षक और आश्रय दाता पालनकर्ता भी होता है। सच्चे गुरु की समीपता से भय भ्रम शोक दूर होता है, और लोगो को उसकी अहेतुकी कृपा प्राप्त होती है।कारण यही है कि वेद भी कहते हैं किःः-सर्वस्यम गुरुवे दद्यत।
अर्थात् सच्चे गुरु को सब कुछ अर्पित करना चाहिए।
सच्चा गुरु शिक्षा का सूत्रधार,ज्ञान का आगार,बुद्धि का द्वार व अच्छे समाज का आधार होता है।
लेखक पूर्व जिला विकास अधिकारी रहे हैं।