लघुकथा : अनुचित फीस : नीरज त्यागी
अनुचित फीस : नीरज त्यागी
लॉकडाउन के समय में अपने बच्चों की पढ़ाई खराब होने का डर शर्मा जी को लगातार हो रहा था। फिर कुछ खबर सी आई कि बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन होगी। अब शर्मा जी को कुछ तस्सली हुई। उन्हें लगा शायद अब बच्चों का 1 साल खराब होने से बच जाएगा। ऑनलाइन पढ़ाई शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही फीस की स्लिप भी मिल गयी। फीस स्लिप को देखकर शर्मा जी की खुशी का ठिकाना ना रहा। उन्होंने देखा फीस की स्लिप तो केवल 11000 रुपये की है। जबकि पिछले साल तो एक क्वार्टर की फीस 12000 रुपये थी।
शर्मा जी बहुत खुश थे कि चलो लॉकडाउन में स्कूल वालों ने कुछ तो फीस कम कर दी। तभी अचानक शर्मा जी का माथा ठनका। उन्होंने पिछले साल की स्कूल की फीस की स्लिप निकाली और उसमे 12000 रुपये की पूरी डिटेल देखने लगे। उसके बाद उन्हें समझ में आया कि वह तो बेकार ही खुश हो रहे थे। 12000 रुपये क्वार्टर की फीस में 2000 रुपये तो बस की फीस थी। बच्चे जब स्कूल नहीं जाएंगे और घर पर ही पढ़ाई करेंगे तो स्कूल की फीस के अलावा बस की फीस तो जाएगी ही नहीं, इसका मतलब इसकी स्लिप तो 10000 रुपये की आनी चाहिए थी। जो कि 11000 रुपये की थी। शर्मा जी अपनी शिकायत लेकर प्रिंसिपल से मिलने के लिए स्कूल पहुंचे।
प्रिंसिपल के सामने पहुंचने के बाद उन्होंने प्रिंसिपल मैडम से पूछा, मैडम अगर बस जानी है तो उसकी फीस काट कर एक क्वार्टर की फीस केवल 10000 रुपये ही बनती है। यह आपने एक हजार रुपये किस बात के बढ़ा दिए हैं। प्रिंसिपल साहिबा अचानक शर्मा जी के सवाल से सकपका गयीं। उन्होंने शर्मा जी को समझाने की नाकाम कोशिश की। देखिए सर बच्चों की पढ़ाई तो हो ही रही है। हर साल की तरह सभी टीचरों की सैलरी तो वैसी की वैसी ही देनी है और आपको पता ही है कि हर साल सभी को इन्क्रीमेंट भी देना होता है। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए फीस तो बढ़ानी ही पड़ती है।
मैडम मेरी बड़ी बहन भी आपके स्कूल में टीचर है और जहां तक मुझे जानकारी है इस साल कोरोना की वजह से आपने अपने किसी भी अध्यापक को इन्क्रीमेंट देने से मना किया और तो और मासिक मादेय भी नहीं दिया जा रहा है। अब ऐसे में आप किस बात के लिए फीस बढ़ा रही हैं। जबकि हम सभी के आय वाले काम कई माह से बंद हैं।
प्रिंसिपल साहिबा से कोई जवाब ना बन पाया और फीस में हुई इस वृद्धि का कोई भी उचित उत्तर ना होने के कारण उन्होंने शर्मा जी से कहा आपका दिल करे तो आप बच्चों को यहां पढ़ा लीजिये वरना उन्हें कहीं और पढ़ा लीजिए। फीस तो इससे कम नहीं होगी।
शर्मा जी प्रिंसिपल साहिबा की इन बातों को सुनकर अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस कर रहे थे। लेकिन कोरोना की इन विपरीत परिस्थितियों में वह किसी और स्कूल में बच्चों का दाखिला भी नहीं करा सकते थे। इसलिए बिला मतलब ही फीस वृद्धि का थप्पड़ खाकर गाल सहलाते हुए सब जानकर भी अनुचित लगाई गई फीस भरकर अपने घर वापस आ गए। और अपने बच्चों के भविष्य को सुव्यवस्थित हुआ मानकर संतोष अनुभव करने लगे।
लेखकीय संपर्क-
65/5 लाल क्वार्टर, राणा प्रताप स्कूल के सामने, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश 201001